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धर्म के तवे पर न सेंकें सियासी रोटी
जिस प्रकार बीते दिनों देश में सांसदों और विधायकों द्वारा जाति, धर्म और संप्रदाय के नाम पर अपशब्दों का विषवमन किया जा रहा है, वह देशहित में नहीं है. मोटे तौर पर यह एक सोची-समझी राजनीति का हिस्सा है. यह स्वयं के बयानों से एक समुदाय को चोटिल कर दूसरे से राजनीतिक सहानुभूति प्राप्त करने […]
जिस प्रकार बीते दिनों देश में सांसदों और विधायकों द्वारा जाति, धर्म और संप्रदाय के नाम पर अपशब्दों का विषवमन किया जा रहा है, वह देशहित में नहीं है. मोटे तौर पर यह एक सोची-समझी राजनीति का हिस्सा है. यह स्वयं के बयानों से एक समुदाय को चोटिल कर दूसरे से राजनीतिक सहानुभूति प्राप्त करने के अलावा कुछ नहीं है.
कई बार ऐसा देखा गया है कि किसी नेता के भड़काऊ बयान की आड़ में असामाजिक तत्वों ने सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की भरपूर कोशिश की है या फिर उन्हें सफलता भी मिली है. नतीजतन देश को कई बार सांप्रदायिक दंगों का सामना करना पड़ा है, जिससे सैकड़ों निदरेषों की जान जाने के साथ आर्थिक क्षति भी हुई है. इस तरह की घटित अप्रिय घटनाओं से विश्व समुदाय की नजरों में भारतीय सभ्यता और संस्कृति कलंकित हुई है. एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की सुंदर बगिया में एक साथ अमन-चैन से रहनेवाले अलग-अलग धर्म-संप्रदाय के लोगों से बेपरवाह स्वार्थी राजनेता धर्म के तवे पर सियासत की रोटी न सेंकें. अन्यथा देश की भोली-भाली जनता कभी माफ नहीं करेगी.
शायद आनेवाले दिनों में अभद्र शब्दों का इस्तेमाल और सांप्रदायिक जहर उगलनेवाले नेताओं को देश की जनता यदि सबक सिखाये, तो अनुचित नहीं होगा. वर्तमान समय में कुछ नेताओं द्वारा घर वापसी और धर्मातरण के नाम पर सांप्रदायिक जिहाद छेड़ा जा रहा है, जो देश की सेहत के लिए अच्छा नहीं है. किसी भी धर्म की छतरी के नीचे बैठा फरिश्ता एक ही है. सिर्फ लोगों के देखने का नजरिया और उन तक पहुंचने के रास्ते अलग-अलग हैं. यह विडंबना ही है कि धर्मातरण की आड़ में लोगों ने मानवता की सेवा करनेवाली मदर टेरेसा को भी नहीं बख्शा.
बैजनाथ महतो, बोकारो
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