इस संघर्ष से मजबूत हो रही है ”आप”
प्रो अश्विनी कुमार राजनीतिक विश्लेषक आम आदमी पार्टी में जिस तरह की उठापटक चल रही है, या हाल के दिनों में जैसा खींचतान सामने आ रहा है, हो सकता है कि यह पार्टी के कार्यकर्ताओं में निराशा भर रहा हो, और ऐसा भाव भी आ रहा हो कि सबकुछ खत्म हो गया, लेकिन मुझे लगता […]
प्रो अश्विनी कुमार
राजनीतिक विश्लेषक
आम आदमी पार्टी में जिस तरह की उठापटक चल रही है, या हाल के दिनों में जैसा खींचतान सामने आ रहा है, हो सकता है कि यह पार्टी के कार्यकर्ताओं में निराशा भर रहा हो, और ऐसा भाव भी आ रहा हो कि सबकुछ खत्म हो गया, लेकिन मुझे लगता है कि तमाम तरह की आशंकाओं के बावजूद अभी जो घटित हो रहा है वह सुराज और स्वराज का ही हिस्सा है. आम आदमी पार्टी को हाल में हुए विधानसभा चुनाव में जिस तरह का बहुमत दिल्ली की जनता ने दिया, उससे साफ है कि जनता सरकार के स्तर पर उनके सुराज के एजेंडे को स्वीकार करती है.
दिल्ली में सरकार बनने के एक माह के अंदर ही पार्टी में जिस तरह के स्वर सुनाई दे रहे हैं, उससे यह साफ हो गया है कि पार्टी में भी सुराज और स्वराज की लड़ाई शुरू हो गयी है, और इससे एक राजनीतिक दल के रूप में आप आनेवाले दिनों में और मजबूत होकर उभरेगी. देश के ज्यादतर राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है. ऐसे समय में आप के दो धड़ों (हालांकि इन्हें धड़ा कहना जल्दबाजी होगी) के बीच पार्टी को नया स्वरूप देने के लिए संघर्ष चल रहा है, हालांकि ये सब बातें बंद कमरे तक सीमित नहीं हैं, बल्कि खुल कर बाहर आ गयी हैं. लोग अपनी राय रख रहे हैं, जनता के सामने सारे तथ्य निकल कर आ रहे हैं, ऐसा लोकतंत्र तो किसी भी दल में नहीं है.
आम आदमी पार्टी एक सामाजिक आंदोलन से निकली हुई पार्टी है. नागर समाज के विभिन्न धड़ों, जिनके हित समूह अलग-अलग रहे हैं, ने एक मंच पर आकर राजनीतिक दलों में व्याप्त भ्रष्टाचार, जिसकी कीमत आम जनता चुका रही थी, से निपटने के लिए अलग राजनीतिक दल बनाया. जनता ने इनके मुद्दों को अपना मानते हुए इन्हें व्यापक समर्थन दिया. देश भर से लोग इनके साथ जुड़े. इस दल से जुड़े लोग, वे चाहे योगेंद्र यादव हों या प्रशांत भूषण या ऐसी ही पृष्ठभूमि से या फिर अलग-अलग पृष्टभूमि से आये विभिन्न नेता, सबकी अलग-अलग स्तर पर सामाजिक पहचान रही है, और लोकतंत्र में इनकी गहरी आस्था है. ऐसे विभिन्न वैचारिक पृष्ठभूमि से आये लोग अगर किसी दल विशेष के जरिये राजनीति में एक मंच पर आते हैं, तो वैचारिक स्तर पर बहस स्वाभाविक है.
अब तक आप में वैचारिक स्तर पर कोई बहस नहीं हुई है. जनता ने तात्कालिक मुद्दे पर अपनी राय दी और निर्विवाद रूप से अरविंद केजरीवाल को अन्य दलों के नेताओं के मुकाबले बेहतर माना और उन्हें दिल्ली की गद्दी सौंपी. दिल्ली की जीत न तो योगेंद्र यादव की जीत है, और न ही किसी अन्य नेता की, यह अरविंद केजरीवाल की जीत है, जिसके ईद-गिर्द पूरा चुनावी अभियान चला. लेकिन, अब पार्टी के अंदर विभिन्न सवालों को लेकर जो बहस शुरू हुई है, इससे पार्टी एक लोकतांत्रिक राजनीतिक पार्टी के रूप में मजबूत हो रही है. एक राजनीतिक दल के रूप में पार्टी को विकसित और विस्तारित होने में ऐसे वैचारिक टकराव और बातचीत से काफी मदद मिलेगी.
इंडिया अगेंस्ट करप्शन से निकल कर एक राजनीतिक दल आम आदमी पार्टी बनी, उस वक्त इसके सदस्यों में इस बात को लेकर एका थी कि पारदर्शिता, जवाबदेही और स्वराज के मुद्दे पर पार्टी काम करेगी. सरकार के स्तर पर तो मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल इन विषयों पर काम कर ही रहे हैं. इन्हीं मुद्दों को लेकर अगर पार्टी में बात हो रही है या टकराव दिख रहा है, तो इसमें बुरा क्या है? हां, दोनों धड़ों में द्वंद भी दिख रहा है. अब वे सिर्फ सामाजिक आंदोलन नहीं रहे, बल्कि पूरा राजनीतिक दल बनने की दिशा में आगे बढ़ चुके हैं.
यह राजनीतिक खींचतान आदर्शवाद, मोरॉलिटी और शासन के बीच है. चूंकि दिल्ली की जनता ने दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नाम पर वोट दिया और वे सरकार में हैं, इसलिए वे मजबूत स्थिति में हैं. लेकिन, पार्टी के अंदर अपनी स्वीकार्यता को लेकर केजरीवाल के सामने चुनौतियां हैं, और यदि ये मिल बैठ कर वैचारिक स्तर पर सभी चुनौतियों का समाधान ढूंढते हैं तो पार्टी और मजबूत होगी और इनका विस्तार भी होगा.
केजरीवाल के सामने दोहरी लड़ाई है, दिल्ली में गर्वनेंस के स्तर को सुधारना है, और पार्टी को भी सामाजिक आंदोलन से आगे बढ़ कर राजनीतिक दल बनने के दौरान आ रही चुनौतियों का मुकाबला करना है. अगर वे पार्टी के स्तर पर ऐसा करने में सफल नहीं होते हैं और सबको एकजुट रख कर नहीं बढ़ते हैं, तो सरकार की वैधता पर असर होगा और अरविंद की लोकप्रियता में भी कमी आयेगी.
विभिन्न धड़ों के बीच संघर्ष लगभग हरेक दल में होता है. जब इंदिरा गांधी को उनके दल में चुनौती मिली तो वे खुलेआम बाहर जाकर लड़ाई लड़ीं. उन्होंने प्रिवीपर्स खत्म करने, गरीबी हटाओ, और दूसरे धड़े पर कॉरपोरेट और पूंजीपति का समर्थक होने जैसा आरोप लगाया. इससे साफ है कि राजनीतिक दल में विभिन्न स्तर पर वैचारिक टकराहट होती है, इसका मतलब ये नहीं कि इससे पार्टी खत्म हो जायेगी, या उसके आदर्श मिट जायेंगे. ऐसे विचारों से पार्टी और मजबूत होकर निकलती है.
जहां तक केजरीवाल या पार्टी के अन्य नेताओं के खिलाफ स्टिंग सामने आने और विभिन्न स्तर पर जारी बयानबाजी का सवाल है, मुझे लगता है कि जिस स्टिंग रूपी खेल को आप ने शुरू किया था, उन्हें अब इसे रोक देना चाहिए, और अपनी बातों को रखने के लिए राजनीतिक स्तर पर बेहतर भाषा का इस्तेमाल करने की परंपरा विकसित करनी चाहिए. अभी आप को दिल्ली में छोटी जीत मिली है. जिस राजनीतिक सपने के साथ आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था, उसे पूरा करने के लिए आग से खेलने की तरकीब विकसित करनी होगी, तभी आम आदमी पार्टी अपने आदर्शों को देशव्यापी विस्तार दे सकती है.
(संतोष कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित)