इनके आगे भकुआ जइसे..
।। राजेंद्र तिवारी ।। (कारपोरेट संपादक, प्रभात खबर) इस बार 15 अगस्त को जितनी बेचैनी देश में दिखायी दी, उतनी मेरी याददाश्त में पहले कभी नहीं दिखी. चीजें खराब हैं, खराब हो रही हैं. इनको लेकर बेचैनी किसी भी समाज के लिए एक अच्छा संकेत माना जाना चाहिए. आइए, उन घटनाओं पर नजर डालें जो […]
।। राजेंद्र तिवारी ।।
(कारपोरेट संपादक, प्रभात खबर)
इस बार 15 अगस्त को जितनी बेचैनी देश में दिखायी दी, उतनी मेरी याददाश्त में पहले कभी नहीं दिखी. चीजें खराब हैं, खराब हो रही हैं. इनको लेकर बेचैनी किसी भी समाज के लिए एक अच्छा संकेत माना जाना चाहिए. आइए, उन घटनाओं पर नजर डालें जो पिछले एक माह के दौरान हुईं. उत्तर प्रदेश में एक आइएएस अफसर को अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य निर्वहन के लिए निलंबित किया गया.
उत्तर प्रदेश में ही एक लेखक को गिरफ्तार कर लिया गया, क्योंकि उसने फेसबुक पर एक ऐसी टिप्पणी लिख दी जो नेताओं को अच्छी नहीं लगी. बिहार में बेतिया और नवादा में हिंसा की घटनाएं. जम्मू–कश्मीर के किश्तवाड़ कस्बे में हिंसा और फिर पूरे राज्य में जगह–जगह बंद. दलितों द्वारा झंडा फहराने की कोशिश को लेकर विवाद और एक की मौत. स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री का भाषण और भुज से जवाबी भाषण. विश्व के 500 शीर्ष विश्वविद्यालयों की सूची में सिर्फ एक भारतीय संस्थान. रुपये का रिकार्ड निचले स्तर पर जाना और शेयर बाजार का करीब 800 अंक लुढ़कना. इन सब घटनाओं पर लोगों की चिंताएं, प्रतिक्रियाएं और टिप्पणियां. टीवी, ट्विटर, फेसबुक से लेकर वेबसाइटों के कमेंट बाक्स भरे पड़े हैं. बेचैनी ही बेचैनी. इतनी बेचैनी कि अपने देश, जमीन व संस्कृति की न्यूनतम, सामान्य शिष्टता भी गायब हो गयी. इतनी अशिष्टता तो बंटवारे के समय भी न रही होगी! सबसे बड़ी चिंता की बात है, हमारी इस बेचैनी के प्रवाह की दिशा. यह दिशा उस तरफ ले जाने वाली तो नहीं जो कभी हमारी संस्कृति की दिशा रही ही नहीं?
आज हालात बेचैन करनेवाले हैं. लेकिन यह भी उतना ही सच है कि यह बेचैनी उन ताकतों के हाथों में जा रही है जो हमारे देश–समाज की समष्टि– सोच से मेल नहीं खातीं. आज एक शब्द भी यदि आप अपनी समझ से मौजूदा हालात पर बोलें और वह इन ताकतों की सोच से मेल न खाता हो, तो आपको राष्ट्रद्रोही करार देने में देर न लगेगी. यदि आप कहें कि मैं सभी धर्मों का आदर करता हूं तो आपको देश की बदइंतजामी के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जायेगा.
आप गांधी की बात करें तो आपको बंटवारे का जिम्मेदार ठहरा दिया जायेगा. आप नेहरू की बात करें तो आपको कश्मीर की अशांति का जिम्मेदार बता दिया जायेगा. यदि आप लोहिया–जेपी की बात करें तो आपको लालू–मुलायम के हर कृत्य के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जायेगा. यदि आप देश में स्वस्थ लोकतंत्र की वकालत करते हैं तो आपको समाजवादियों का पुछल्ला कहा जाने लगेगा. यदि आप गरीबों की बात करें तो कम्युनिस्टों की हर कमी और बंगाल की माली हालत के लिए आपसे जवाब तलब किये जाने लगेंगे. और तो और, यदि आप नोबेल अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की ‘रिडिस्ट्रीब्यूशन थ्योरी’ के पक्ष में हैं तो आपसे गैर जिम्मेदार भारतीय शायद ही कोई हो जो टैक्सपेयरों का पैसा गरीबों में लुटा कर देश की अर्थव्यवस्था रसातल में ले जाने का पक्षधर है.
आप एक समुदाय के किसी आदमी को फिरकापरस्त बतायें तो आप पर सवाल खड़े किये जायेंगे कि दूसरे समुदाय के अमुक आदमी के बारे में आप क्यों नहीं बोले. आप राजकुमार पर सवाल उठायें तो मुश्किल और आप महाराजकुमार पर सवाल उठायें तो भी मुश्किल. दोनों पर उठायें तब तो देश का अहित चाहने वाला आप से बड़ा कोई दूसरा कहां मिलेगा.
सबसे आश्चर्यजनक यह है कि जो तर्क दिये जाते हैं, जो आंकड़े दिये जाते हैं, जो घटनाएं सुनायी जाती हैं, उनमें से अधिकतर गढ़ी हुई होती हैं. इसकी पोल खुलती है फेसबुक पर, जहां झूठे प्रोपेगेंडा के लिए एक ही मैटीरियल अलग–अलग जगहों के नाम के साथ अलग–अलग समय पर चस्पां किया जा रहा है. ताजा उदाहरण– फेसबुक पर एक तस्वीर बहुत तेजी से शेयर की जा रही है, जिसमें दिखाया गया है कि एक समुदाय के लोग हरा झंडा लिये लाइन से जा रहे हैं. इस पर लिखा गया है कि यह तस्वीर केरल में स्वतंत्रता दिवस पर एक जुलूस की है. जुलाई में यही तस्वीर किसी और व्यक्ति ने किसी और संदर्भ में डाली थी. एक जानकारी और है फेसबुक पर कि यह तस्वीर बांग्लादेश में कुछ माह पहले निकले एक जुलूस की है.
मुझे तो लगता है कि बेचैनी इस माहौल को लेकर होनी चाहिए, हर उस इंसान के भीतर जो अपनी मातृभूमि, अपने समाज, अपने देश से प्यार करता है. सोचिए, पूछिए और बताइए कि आखिर यह माहौल बना कैसे और कौन है इसके लिए जिम्मेदार?
– और अंत में..
पढ़िए, कैलाश गौतम की प्रसिद्ध कविता ‘गान्ही जी’ की कुछ पंक्तियां :
जे अललै बेइमान इहां ऊ डकरै किरिया खाला/ लंबा टीका, मधुरी बानी, पंच बनावल जाला.
चाम सोहारी, काम सरौता, पेटैपेट घोटाला/ एक्को करम न छूटल लेकिन, चउचक कंठी माला.
कथा कीर्तन बाहर, भीतर जुआ चलत हौ, गान्ही जी/ माल गलत हौ दुई नंबर क, दाल गलत हौ, गान्ही जी.
चाल गलत, चउपाल गलत, हर फाल गलत हौ, गान्ही जी/ताल गलत, हड़ताल गलत, पड़ताल गलत हौ, गान्ही जी.
घूस पैरवी जोर सिफारिश झूठ नकल मक्कारी वाले/ देखतै देखत चार दिन में भइलैं महल अटारी वाले.
इनके आगे भकुआ जइसे फरसा अउर कुदारी वाले/ देहलैं खून पसीना देहलैं तब्बौ बहिन मतारी वाले.