मिस्र में सत्ता का खूनी खेल

।।डॉ गौरीशंकर राजहंस।।(पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत) दो वर्ष पहले जब सैनिक क्रांति में हुस्नी मुबारक को सेना ने सत्ताच्युत किया था, उस समय ऐसा लग रहा था कि देश से भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार देश में समृद्धि लायेगी. परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ और जिन लोगों ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 19, 2013 3:05 AM

।।डॉ गौरीशंकर राजहंस।।
(पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत)

दो वर्ष पहले जब सैनिक क्रांति में हुस्नी मुबारक को सेना ने सत्ताच्युत किया था, उस समय ऐसा लग रहा था कि देश से भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा और लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार देश में समृद्धि लायेगी. परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ और जिन लोगों ने हुस्नी मुबारक को सत्ताच्युत किया था, वे ही आपस में लड़ने लगे. मुबारक को सत्ताच्युत करने के बाद सेना ने मार्च, 2011 में संविधान में संशोधन किया और पहली बार जनता ने मतदान किया. मुसलिम ब्रदरहुड ने आधी से ज्यादा सीटों पर कब्जा किया और मोहम्मद मुरसी देश के राष्ट्रपति बने.

गत तीन जुलाई को मिस्र की सेना ने राष्ट्रपति मोहम्मद मुरसी को एक सैनिक क्रांति में सत्ताच्युत कर उन्हें तथा उनके समर्थक मुख्य नेताओं को एक अनजान जगह पर कारागार में डाल दिया. उसके बाद मुरसी के समर्थकों ने पूरे देश में सैनिक सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. जगह-जगह सेना और पुलिस के ठिकानों पर मुरसी के समर्थक मुसलिम ब्रदरहुड के कार्यकर्ताओं ने धावा बोल दिया और बहुत से पुलिस-कर्मियों को जिंदा जला डाला. गत आठ जुलाई से मिस्र में गृहयुद्ध का जो खूनी खेल शुरू हुआ, वह और भी उग्र होता जा रहा है.

मुरसी के समर्थकों ने अमेरिकी सरकार से अपील की कि मिस्र की सैनिक सरकार को अमेरिका की तरफ से जो आर्थिक सहायता दी जा रही है उसे बंद किया जाये, परंतु अमेरिकी सरकार ने इसे ठुकरा दिया. इसलिए मुरसी समर्थकों ने पूरे देश में अमेरिका के खिलाफ भी प्रदर्शन शुरू कर दिया. अमेरिकी सरकार का मानना है कि अभी स्थिति साफ नहीं है कि गृहयुद्ध के बाद कौन सत्ता में रहेगा, सेना या मुरसी समर्थक? इसलिए उसकी कोशिश है कि आगे जो भी सत्ता में रहे, उससे अमेरिका का बेहतर संबंध बना रहे. हालांकि इस कोशिश में उसने पिछले कुछ समय में मिस्र से जुड़े जितने भी कूटनीतिक कदम उठाये हैं, वे प्रभावहीन रहे हैं. मुरसी के तख्तापलट के बाद अमेरिकी उप विदेश मंत्री बिल बर्न्‍स सेना और मुसलिम ब्रदरहुड के बीच समझौता कराने के लिए दो बार काहिरा गये, लेकिन वहां आजकल अमेरिका की सुनने-माननेवाला कोई नहीं है.

मुरसी के समर्थक मुसलिम ब्रदरहुड के कार्यकर्ता दिनोंदिन उग्र हो रहे हैं. यह देख कर मिस्र की सैनिक सरकार ने कुछ दिनों पहले देश में इमरजेंसी लागू कर दिया और सेना को यह हिदायत दे दी कि पूरे देश में जहां भी मुरसी समर्थक प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें गोली मार दी जाये. सेना ने धरने पर बैठे लोगों को हटाने के लिए पहले तो बुलडोजर और आंसू गैस का सहारा लिया और जब स्थिति नियंत्रण में नहीं आयी तो उन पर जमकर गोलियां बरसायी. सैनिक सरकार का कहना है कि इस ऑपरेशन में 600 लोग मारे गये हैं, जबकि मुसलिम ब्रदरहुड के समर्थकों का कहना है कि कम से कम 2200 लोग मारे गये हैं और पांच हजार से ज्यादा लोग घायल हैं.

सेना की जो अंतरिम सरकार बनी थी, उसमें नोबेल पुरस्कार विजेता अल बरदेई उपराष्ट्रपति थे. जिस तरह से सेना निदरेष लोगों की हत्या कर रही है, उसे देखते हुए उपराष्ट्रपति अल बरदेई ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, ईरान, तुर्की और जर्मनी ने मिस्र में सेना की बर्बरतापूर्वक निर्दोषों की हत्या की निंदा की है और अपने नागरिकों को वहां नहीं जाने की सलाह दी है. मिस्र के सभी पर्यटन स्थल बंद कर दिये गये हैं और कई दिनों से बैंक भी बंद हैं. देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है. डॉलर के मुकाबले में मिस्र की करेंसी, जिसे इजिप्शियन पाउंड कहते हैं, वह आज सबसे निचले स्तर पर है. हुस्नी मुबारक को जब अपदस्थ किया गया था, उस समय देश का मुद्रा भंडार 36 बिलियन डॉलर था, जो अब घट कर मात्र 10 बिलियन डॉलर रह गया है. यह मुद्रा भंडार तेजी से समाप्त हो रहा है. कोई भी विदेशी मिस्र में न तो निवेश करने के लिए तैयार है और न मिस्र की सैनिक सरकार को आर्थिक सहायता देने के लिए. ऐसे में डर यह है कि आगामी पांच-सात महीनों में मिस्र की जनता दाने-दाने को मोहताज हो जायेगी.

जब हुस्नी मुबारक की भ्रष्ट सरकार को पदच्युत किया गया था, तब यह आशा बंधी थी कि देश में जनता द्वारा निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार आयेगी, जो लोगों के कल्याण के लिए काम करेगी. परंतु सत्ता लोलुप विभिन्न पार्टियां आपस में ही लड़ने लगीं, जिससे एक फलते-फूलते देश मिस्र का भविष्य अंधकारमय हो गया. मिस्र का गृहयुद्ध जिस तरह दिनोंदिन हिंसक होता जा रहा है, उससे यह कहना कठिन है कि उस देश का भविष्य आखिर क्या होगा?

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