बरी हो जाने के विश्वास का राज

।। कहां गयीं फाइलें!।।क्या आपने कभी यह सोचा है कि हमारे देश में लगातार हो रहे घोटालों का राज क्या है? कहीं इसकी वजह हमारे देश के ऊंचे और असरदार लोगों के अंदर का यह आत्मविश्वास तो नहीं कि वे बच निकलने का, आरोपों से पाक-साफ बरी हो जाने का कोई न कोई रास्ता निकाल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 19, 2013 3:19 AM

।। कहां गयीं फाइलें!।।
क्या आपने कभी यह सोचा है कि हमारे देश में लगातार हो रहे घोटालों का राज क्या है? कहीं इसकी वजह हमारे देश के ऊंचे और असरदार लोगों के अंदर का यह आत्मविश्वास तो नहीं कि वे बच निकलने का, आरोपों से पाक-साफ बरी हो जाने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे! आरोपों के दाग को एक अदद क्लीन चिट से साफ कर लेंगे! क्लीन चिट’ पा लेने का यह भरोसा इतना गहरा क्यों है? अगर आप इन सवालों के जवाब चाहते हैं, तो आपको कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले की जांच में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) के सामने पेश आ रही मुश्किलों पर गौर करना चाहिए. खासतौर पर इसलिए क्योंकि यह जांच सीधे सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही है. ज्यादा दिन नहीं बीते जब सीबीआइ के कामकाज में दखलंदाजी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की जम कर लानत-मलामत की थी और सीबीआइ को सरकारी पिंजरे से मुक्त करने को कहा था.

कोर्ट के सख्त रुख को देखते हुए यह उम्मीद जगी थी कि शायद कोयला घोटाले का सच हमारे सामने आ सकेगा. लेकिन इस घोटाले की जांच में सरकारी असहयोग की खबरें ऐसी किसी खुशफहमी पर सवालिया निशान लगा रही हैं. खबर है कि सीबीआइ के बार-बार अनुरोधों के बावजूद कोल ब्लॉक आवंटन के फैसलों से जुड़ी अहम फाइलें उसे अब तक उपलब्ध नहीं करायी गयी हैं. सीबीआइ ने 31 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वर्ष 2006 से 2009 के बीच की पांच महत्वपूर्ण फाइलें उसे अब तक नहीं सौंपी गयी हैं. इसके अतिरिक्त सांसद विजय दर्डा की अनुशंसा वाली वह चिट्ठी भी गायब है, जिसे प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा आगे बढ़ाया गया था. इतना ही नहीं, 1993 से अब तक हुए कोल ब्लॉक आवंटन से जुड़े कई अन्य अहम कागजात भी गुम बताये जा रहे हैं. शनिवार को कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने स्वीकार किया कि वर्ष 1993-2004 के बीच किये गये कोल ब्लॉक आवंटन संबंधी कई फाइलें गायब हैं.

क्या इसे महज सरकारी लापरवाही का मामला माना जा सकता है? जिस देश के सरकारी महकमे कागजी कार्यवाही के प्रति अपने अतिशय प्रेम के लिए विख्यात हैं, वहां जांच के लिए जरूरी फाइलों का गायब हो जाना क्या महज संयोग हो सकता है? ऐसी खबरों के बीच अगर किसी के मन में साक्ष्यों को जानबूझ कर नष्ट किये जाने का संदेह उमड़े, तो उसे सिर्फ मनगढ़ंत आरोप कह कर खारिज नहीं किया जा सकता. फाइलों के इस तरह से गुम होने में शायद इस सवाल का जवाब भी छिपा है कि हमारे देश में घोटाला करनेवाला आत्मविश्वास से भरा हुआ क्यों नजर आता है!

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