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ऐसी बधाई और शोक से खुदा बचाये

जन्म लेना और मर जाना, इंसान के जीवन से जुड़े दो सबसे बड़े सच हैं. बच्चे के जन्म लेने पर मां-बाप और परिवार को बधाई तथा किसी की मृत्यु होने पर शोक व्यक्त करने की परंपरा रही है, देश-दुनिया में. आदिकाल में इसका बहुत महत्व रहा होगा, लेकिन वर्तमान के हालात तो पूछिए मत! फेसबुक, […]

जन्म लेना और मर जाना, इंसान के जीवन से जुड़े दो सबसे बड़े सच हैं. बच्चे के जन्म लेने पर मां-बाप और परिवार को बधाई तथा किसी की मृत्यु होने पर शोक व्यक्त करने की परंपरा रही है, देश-दुनिया में. आदिकाल में इसका बहुत महत्व रहा होगा, लेकिन वर्तमान के हालात तो पूछिए मत! फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप और न जाने कितनी ही सोशल वेबसाइटों ने बधाई देने और शोक व्यक्त करने की परिभाषा ही बदल दी है.

इन सोशल साइटों का प्रभाव या ताकत देखिए कि बच्चे के पैदा होने की खबर पिता से पहले सोशल मीडिया में पहुंच जाती है. जब तक अपना काम खत्म कर डाक्टर पिता को खुशखबरी देने के लिए लेबर रूम (प्रसव कक्ष) से बाहर निकलता है, तब तक तो पिता के 20-25 दोस्त उसे फोन पर बधाई दे चुके होते हैं, सैकड़ों बधाई के संदेश मोबाइल पर आ चुके होते हैं और मिनटों पहले बच्चे की मां ने फेसबुक पर बच्चे के जन्म देने की सूचना पोस्ट की थी, उसे हजारों लाइक और कमेंट मिल चुके होते हैं.

इसी तरह आदमी चाहे शराबी हो या जुआरी हो, क्रिकेट का खिलाड़ी हो या राजनीति का अनाड़ी हो, नर हो या नारी हो, आजकल उसके मरने की खबर यमराज से पहले फेसबुक या अन्य सोशल साइटों को मिल जाती है. कई बार मुझे लगता है कि यमराज को भी फेसबुक-ट्विटर से ही पता चलता होगा कि कौन पैदा हुआ और कौन मरा? मरा तो कैसे मरा? किसी ने फे सबुक पर किसी के मरने की सूचना पोस्ट की नहीं कि दनादन शोक संदेश के कमेंट मिलने शुरू हो जाते हैं. कई लोग तो किसी बड़े आदमी के मरने की सूचना ऐसे देते हैं, जैसे उनका अपना कोई सगा मरा हो. इस पर मेरे मित्र ने एक किस्सा सुनाया.

किसी शहर में एक शरारती तत्व ने शहर के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति की तस्वीर फेसबुक पर डाल कर लिख दिया कि दिल का दौरा पड़ने के कारण फलाने बाबू अब हमारे बीच नहीं रहे. हालांकि फलाने बाबू जीवित थे, लेकिन शहर में यह खबर आग की तरफ फैल गयी. दनादन शोक संदेश, कमेंट के रूप में उस पोस्ट पर आने लगे. कई लोगों ने शेयर किया. शहर के बड़े वीवीआइपी लोग भी ‘आरआइपी’ (रेस्ट इन पीस) लिखने में पीछे नहीं रहे. पूरा शहर इस दुख की घड़ी में उनके परिवार के साथ ऐसे खड़ा था, जैसे अर्थी को कंधा यही लोग लगायेंगे. जब तक पुष्टि हुई कि फलाने बाबू जीवित हैं और उनके मरने की खबर महज अफवाह है, तब तक उनके मरने की झूठी खबर को इतने लाइक, कमेंट और शेयर्स मिले कि अगले दिन के अखबार के हेडलाइन में इस पोस्ट को जगह मिल गयी. दरअसल, कई फेसबुकिये उस बेवकूफ की तरह हैं, जिसे कह दो कि कौआ आपका कान लेकर उड़ गया, तो पहले अपना कान देखने की जगह वे कौवे के पीछे भागते हैं.

पंकज कुमार पाठक

प्रभात खबर, रांची

pankaj.pathak@prabhatkhabar.in

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