सिर्फ गंगा की सफाई पर जोर क्यों?
नर्मदा, कृष्णा, कावेरी, ब्रह्मपुत्र और यमुना नदियां भी तो गंगा की तरह ही या उससे भी अधिक गंदी हैं. तो फिर इन नदियों के बारे में सरकार और सुप्रीम कोर्ट को ऐसी चिंता क्यों नहीं है? आनेवाली पीढ़ियों को इन नदियों की ‘पुरानी भव्यता’ क्यों नहीं देखनी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सप्ताह पहले सरकार […]
नर्मदा, कृष्णा, कावेरी, ब्रह्मपुत्र और यमुना नदियां भी तो गंगा की तरह ही या उससे भी अधिक गंदी हैं. तो फिर इन नदियों के बारे में सरकार और सुप्रीम कोर्ट को ऐसी चिंता क्यों नहीं है? आनेवाली पीढ़ियों को इन नदियों की ‘पुरानी भव्यता’ क्यों नहीं देखनी चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सप्ताह पहले सरकार की खिंचाई करते हुए कहा- ‘गंगा की सफाई पिछले तीस वर्षो से जारी है और इस पर अब तक करीब 2000 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं. आप इस काम को इसी कार्यकाल में पूरा करना चाहते हैं या फिर अगले कार्यकाल के लिए भी इस मुद्दे को जिंदा रखना चाहते हैं?’ एक रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने इससे पहले टिप्पणी की थी- ‘आपकी कार्ययोजना को देख कर लगता है कि गंगा अगले 200 वर्षो में भी साफ नहीं हो पायेगी. आपको ऐसे कदम उठाने चाहिए, जिससे गंगा अपनी ‘पुरानी भव्यता’ वापस प्राप्त कर सके और आनेवाली पीढ़ी उसे देख सके. हम नहीं जानते कि हम गंगा की वह भव्यता देख पाएंगे या नहीं.’ जवाब में सरकार की ओर से कोर्ट में बताया गया है कि ‘गंगा की सफाई का काम 2018 तक पूरा हो सकता है यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वर्तमान कार्यकाल तक. इस सिलसिले में गंगा नदी के किनारे स्थित प्रदूषण फैलानेवाले 118 शहरों को चिह्न्ति किया गया है और संबंधित नगरपालिकाओं को जरूरी कार्रवाई करने के निर्देश दे दिये गये हैं.’
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट गंगा को साफ करने के लिए श्रीधरन जैसे एक नौकरशाह की तलाश कर रहा है. कोर्ट ने कहा है कि गंगा को साफ करने की योजना लगातार विफल रही है, इसलिए इसके प्रमुख को निश्चित रूप से बदल देना चाहिए. उल्लेखनीय है कि सेवानिवृत्त नौकरशाह श्रीधरन ने दिल्ली में मेट्रो रेल के मुश्किल प्रोजेक्ट को कुशलता पूर्वक पूरा कराया है. खबरों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट गंगा की सफाई की योजना पर लंबे समय से जोर दे रहा है. उसने सरकार को एक हलफनामा दायर करने के लिए भी कहा है, जिसमें बताया जाना है कि गंगा सफाई की मौजूदा योजनाओं की स्थिति क्या है और वे कब तक पूरी हो जाएंगी. इसके अलावा सरकार को एक ठोस कार्ययोजना भी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें सिर्फ ‘नौकरशाही का शब्दजाल’ न हो. अदालत ने टिप्पणी की है कि गंगा की सफाई के प्रति यदि आप इतने प्रतिबद्ध हैं, तो आपको इस बारे में हमसे ज्यादा चिंता होनी चाहिए.
लेकिन, यहां मेरा सवाल है कि इतनी चिंता क्यों? क्यों सरकार और सुप्रीम कोर्ट को सिर्फ गंगा की सफाई के प्रति इतनी चिंता करनी चाहिए? केवल इसी नदी को साफ करने के प्रति यह जोर क्यों? क्या गंगा को साफ कर देने से ही पूरा भारत साफ हो जायेगा? नहीं, इससे पूरे भारत की सफाई नहीं हो सकेगी. गंगा भारत के 90 फीसदी राज्यों से नहीं गुजरती है. यह नदी देश की अधिकतर आबादी के पास नहीं पहुंचती है. तो फिर केवल एक नदी को साफ करने के लिए हम इतना अधिक संसाधन और प्रशासनिक समय क्यों लगाएं?
निश्चित रूप से कोर्ट इस तथ्य से प्रभावित नहीं हुआ होगा कि अधिकतर हिंदू गंगा को एक पवित्र नदी मानते हैं. हालांकि गंगा की सफाई का वादा करके मोदी सरकार हिंदुओं के वोट पाना चाहती है, लेकिन यह उनकी राजनीति है. इस राजनीति की छाप पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण देने से इनकार (पिछड़े मुसलिम उतने ही गरीब और पिछड़े हैं, जितने कि पिछड़े हिंदू, लेकिन उन्हें सिर्फ इसलिए उपेक्षित रखा गया है, क्योंकि उनके पुरखों ने अलग धर्म अपना लिया था) और गोवध पर प्रतिबंध लगाने जैसी कार्रवाइयों में भी दिखती है. भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में इतना भर तो अपेक्षित है और इस संदर्भ में उनकी मंशा समझने में मुङो कोई परेशानी नहीं है, क्योंकि दशकों से उसकी नीतियां इसी लीक पर चल रही हैं. लेकिन, मुङो परेशानी इस सवाल से है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या कर रहा है? क्यों कोई धार्मिक भावना और मिथक सुप्रीम कोर्ट की प्राथमिकताओं को प्रभावित कर रहा है? क्या सर्वोच्च अदालत हिंदुओं की अन्य भावनाओं, जैसे मंदिर या कुछ और, को लेकर भी इसी तरह की कार्रवाई करेगा? और क्या भारत की अन्य धार्मिक भावनाओं को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट का यही रुख होगा और वह सरकार को जल्द एवं ठोस कार्रवाई करने का आदेश देगा?
एक गुजराती होने के नाते मुङो इस बात पर भी ताज्जुब है कि तापी नदी को वह फोकस क्यों नहीं मिला है. हम जैसे बहुत से सूरतवालों के लिए यह नदी भी पूजनीय है. मेरी मां नर्मदा का बहुत आदर करती थी. यदि हिंदुओं को खुश करना है, तो नर्मदा नदी की चिंता क्यों नहीं? दक्षिण भारत में रहनेवाले किसी भी भारतीय की तरह मैं कृष्णा और कावेरी नदी पर भी उतना ही धन और ऊर्जा खर्च होते देखना चाहूंगा. उन दो नदियों के बारे में चिंता क्यों नहीं? ब्रह्मपुत्र और यमुना नदी, जो गंगा की तरह ही या उससे भी अधिक गंदी है, के बारे में ऐसी चिंता क्यों नहीं है? आनेवाली पीढ़ियों को इन नदियों की ‘पुरानी भव्यता’ (कोर्ट की टिप्पणी में शामिल इस शब्द का जो भी मतलब हो) क्यों नहीं देखनी चाहिए?
एक रिपोर्ट के मुताबिक गंगा के किनारे स्थित 118 शहरों (जिनका जिक्र पहले भी किया गया है) में पैदा होनेवाले गंदे पानी का करीब दो तिहाई हिस्सा परिशोधन के बिना ही देश की इस राष्ट्रीय नदी में प्रवाहित किया जा रहा है, जो नदी के पुनरोद्धार के कार्य को जटिल बना रहा है. विभिन्न सरकारी एजेंसियों के विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा हाल में तैयार रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के पांच राज्यों में स्थित ये सभी शहर मिल कर कुल 363.6 करोड़ लीटर से अधिक गंदा पानी रोज पैदा करते हैं, जबकि यहां स्थित 55 परिशोधन प्लांटों की कुल क्षमता करीब 102.7 करोड़ लीटर ही है. जाहिर है, गंगा को साफ करने का मतलब है पहले इन शहरों को साफ करना और यहां के निवासियों को बेहतर सीवरेज एवं सफाई व्यवस्था मुहैया कराना. इस तरीके से गंगा की सफाई होने में किसी को आपत्ति नहीं होगी, लेकिन देश के अन्य शहरों काक्या? क्या उनके साथ इसलिए सौतेला व्यवहार होना चाहिए, क्योंकि वे एक पवित्र नदी को गंदा करने की स्थिति में नहीं हैं?
एक हिंदू होने के नाते भी मुङो चिंता हो रही है कि धर्मनिरपेक्ष भावना वाले हिंदू, गैर हिंदू और नास्तिक भारतीयों में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से यह धारणा बनेगी कि पौराणिक कथाओं में शामिल होने के कारण ही गंगा नदी विशेष ध्यान पाने की हकदार है. मुङो यह तथ्य भी परेशान करता है कि मीडिया में भी इस बात को लेकर कुछ खास सवाल उठते नहीं दिख रहे हैं, कि गंगा पर विशेष ध्यान इसलिए दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह एक खास नदी है!
आकार पटेल
वरिष्ठ पत्रकार
aakar.patel@me.com