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सुधारों की जरूरत तो आइएमएफ को है
राजीव रंजन झा संपादक, शेयर मंथन जिस तरह आइएमएफ भारत को उपदेश देता है कि उदारीकरण कार्यक्रम पर ठीक से अमल हो, उसी तरह से भारत को अब दबाव बढ़ाना चाहिए कि आइएमएफ के अंदर उदारीकरण पर अमल तेज हो.आइएमएफ की एमडी क्रिस्टीन लेगार्ड इस सोमवार और मंगलवार को दो दिनों के भारत दौरे पर […]
राजीव रंजन झा
संपादक, शेयर मंथन
जिस तरह आइएमएफ भारत को उपदेश देता है कि उदारीकरण कार्यक्रम पर ठीक से अमल हो, उसी तरह से भारत को अब दबाव बढ़ाना चाहिए कि आइएमएफ के अंदर उदारीकरण पर अमल तेज हो.आइएमएफ की एमडी क्रिस्टीन लेगार्ड इस सोमवार और मंगलवार को दो दिनों के भारत दौरे पर आयीं.
सोमवार को वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली से मिलीं. उन्होंने कहा कि दुनिया की विकास दर मंद है, लेकिन भारत की विकास दर चीन से भी तेज होनेवाली है. हम उनकी इस भविष्यवाणी पर प्रफुल्लित हो सकते हैं. वैसे दो दिन भारत में बिताने के बाद वे पांच दिन के लिए चीन भी जानेवाली हैं. आइएमएफ के लिए दोनों देशों में से कौन ज्यादा अहमियत रखता है, यह दोनों जगहों पर उनकी ओर से बिताये जानेवाले समय से समझ में आ जाता है.
अंतरराष्ट्रीय संगठनों की बातों को सुनते समय हमें आंख-कान के साथ-साथ दिमाग भी खुले रखने चाहिए. कहने को भले ही ये वैश्विक संगठन होते हैं, लेकिन अमूमन वे पश्चिमी विकसित देशों के दृष्टिकोण, उनकी अपेक्षाओं और हितों को ही सामने रखा करते हैं. हालांकि यह कहना थोड़ा कटु लग सकता है, मगर कई बार वे पश्चिमी विकसित देशों के कूटनीतिक-वाणिज्यिक दूत जैसी भूमिका निभाते हैं.
इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए ही हमें यह देखना-समझना चाहिए कि किस अंतरराष्ट्रीय संस्था ने हमारे बारे में क्या कहा है और हमें किस तरह के सुझाव दिये हैं. उनके सुझाव भी अकसर पश्चिमी देशों की मांग-सूची से मेल खाते हैं. उन्हें सुझाव कहना दरअसल परोक्ष रूप में ऋण और सहायता के लिए शर्तो के बदले एक उदार शब्द पेश करना होता है. उनके ये सुझाव अकसर कुछ मीठी बातों की चाशनी में लिपटे होते हैं.
आइएमएफ का, और वास्तव में पश्चिमी विकसित देशों का, भारत से यह कहना है कि भाई, अपने बाजार में हमारे लिए सारी बाधाएं खत्म कर दो. उन्हें भारत का बीमा बाजार अपने लिए खुला चाहिए, खुदरा बाजार खुला चाहिए, रक्षा का बाजार खुला चाहिए. जहां भी, जिस भी बाजार में उन्हें जाने की इच्छा हो, वह एकदम खुला चाहिए.
इसीलिए आइएमएफ पहली सांस में यह कहता है कि भारत में विश्व की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने की क्षमता है. आइएमएफ ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत की विकास दर 2014-15 में 7.2 प्रतिशत और अगले कारोबारी साल यानी 2015-16 में 7.5 प्रतिशत होगी. साथ ही, दूसरी सांस में आइएमएफ यह भी कहता है कि इसके लिए आर्थिक सुधारों पर अमल जरूरी है.
उनके आर्थिक सुधारों का मतलब केवल एक ही है कि अपने हर बाजार को पूरी तरह से खोल दो. क्रिस्टीन लेगार्ड कहती हैं कि विश्व अर्थव्यवस्था में भारत एक चमकता केंद्र है. पूरी दुनिया को भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा है. वे खुशी जताती हैं कि भारत सरकार राजकोषीय घाटे (फिस्कल डेफिसिट) को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है. भारत अच्छी गति से विकास कर रहा है और आगे इससे भी तेज विकास कर सकता है, यह समझाते हुए आइएमएफ हमें साथ-साथ यह भी बता देता है कि भाई, आपको इसके लिए श्रम-सुधार भी करने हैं और भूमि अधिग्रहण को भी आसान बनाना है. क्रिस्टीन लेगार्ड जता देती हैं कि साहसिक सुधार करने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है कि आर्थिक उदारीकरण कार्यक्रम पर ठीक से अमल हो.
जी हां, भारत को पता है कि घाटा कम करना जरूरी है. यह भी पता है कि पुराने सोच से बने श्रम कानूनों में सुधार की जरूरत है और भूमि अधिग्रहण तो इस समय हमारी राजनीति के केंद्र में है. पर इन सब चीजों के लिए हमें क्या वाकई आइएमएफ के चश्मे की जरूरत है? भारत को अपनी नीतियां बनाते समय अपने हितों का खुद ध्यान रखना है.
दूसरी ओर खुद जहां आइएमएफ को सुधार करने की जरूरत है, उसकी ओर प्रधानमंत्री मोदी ने इशारा कर दिया है. लेगार्ड जब मोदी से मिलने गयीं, तो उन्होंने आइएमएफ के डिप्टी एमडी के पद पर किसी भारतीय को जगह मिलने का सवाल उठाया. आइएमएफ के संगठन में शीर्ष पदों पर भारत को ज्यादा हिस्सेदारी चाहिए. उन्होंने यह खुद ही उम्मीद रख दी कि एक दिन इस संस्था के प्रमुख का पद कोई भारतीय संभालेगा. लेकिन, उससे पहले कम-से-कम आइएमएफ में भारत को ज्यादा हिस्सेदारी तो मिले, भारत की बात को ज्यादा वजन तो मिले.
यह ठीक है कि भारत की बदलती आर्थिक स्थिति के साथ-साथ आइएमएफ जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए इसे नजरअंदाज करना मुश्किल हो गया है. लेकिन, आइएमएफ की तारीफों पर मुग्ध होने के बदले भारत को इस बदलाव का अपने पक्ष में पूरा इस्तेमाल करना चाहिए और इसमें अपने लिए उचित जगह बनानी चाहिए. इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कार्यकाल के बिल्कुल शुरुआती दौर में ही दूसरे ढंग से दबाव बनाया. उन्होंने ब्रिक्स देशों के संगठन को ज्यादा तवज्जो दी. ब्रिक्स बैंक का गठन इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
आइएमएफ के अंदर कोटा सुधारों की बहस तेज हो चुकी है. साल 2010 में ही इन पर सहमति बनी थी. इनके लागू होने से आइएमएफ में विकासशील देशों को ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलेगा. इन सुधारों पर अमल से भारत आइएमएफ में शीर्ष 10 शेयरधारकों में शामिल हो जायेगा. लेकिन खुद लेगार्ड ने इस दौरे में लेडी श्रीराम कॉलेज में अपने व्याख्यान में कहा कि अमेरिका अपने वीटो से इन सुधारों को अटका रहा है.
उनके मुंह से यह सुनना अच्छा लगता है कि आइएमएफ जैसे वैश्विक बहुपक्षीय संगठन में भारत जैसे देशों को ज्यादा बड़ी भूमिका मिलनी चाहिए. लेकिन, जिस तरह आइएमएफ भारत को उपदेश देता है कि उदारीकरण कार्यक्रम पर ठीक से अमल हो, उसी तरह से भारत को अब दबाव बढ़ाना चाहिए कि आइएमएफ के अंदर उदारीकरण पर अमल तेज हो. जिस तरह आइएमएफ चाहता है कि भारत पूरी तेजी से आर्थिक सुधारों को लागू करे, वही तेज रफ्तार अब आइएमएफ को भी दिखानी चाहिए अपने अंदरूनी ढांचे का उदारीकरण करने में.
आइएमएफ प्रमुख खुद यह मान रही हैं कि उनकी संस्था में भारत का प्रतिनिधित्व हास्यास्पद ढंग से कम स्तर पर है और यही हाल चीन का भी है. दूसरी ओर कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व अनुपात से ज्यादा है. क्रिस्टीन लेगार्ड खुद कह रही हैं कि यह स्थिति बदलने की जरूरत है. लेकिन, अब यह बात कहने की नहीं, करने की है. समस्या को स्वीकार कर लेना अच्छी बात है, पर जरूरी यह है कि उस समस्या को दूर करने के लिए जरूरी कदम उठाये जायें.
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