आर्थिक संकट की पड़ताल जरूरी

एक नये कारोबारी हफ्ते की शुरुआत भी बेहद निराशाजनक रही. सोमवार को बाजार खुलते ही सेंसेक्स और लुढ़क गया, जबकि पिछले हफ्ते के आखिरी दिन भी शेयर बाजार बड़ी गिरावट के साथ बंद हुआ था.साथ ही डॉलर के मुकाबले बीते कई महीनों से लगातार कमजोर हो रहा रुपया भी 62 के पार एक नये रसातल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 20, 2013 4:20 AM

एक नये कारोबारी हफ्ते की शुरुआत भी बेहद निराशाजनक रही. सोमवार को बाजार खुलते ही सेंसेक्स और लुढ़क गया, जबकि पिछले हफ्ते के आखिरी दिन भी शेयर बाजार बड़ी गिरावट के साथ बंद हुआ था.साथ ही डॉलर के मुकाबले बीते कई महीनों से लगातार कमजोर हो रहा रुपया भी 62 के पार एक नये रसातल में पहुंच गया.

बेलगाम महंगाई की मार तो अपनी जगह कायम है ही. साफ है, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब देश की आर्थिक सेहत के बारे में भरोसा दिलाने की जितनी कोशिशें करते हैं, नतीजा उतना ही विपरीत नजर आता है.

पिछले शनिवार को ही उन्होंने दावा किया था कि देश 1991 के भुगतान संकट जैसी स्थिति में नहीं है. इससे पहले 15 अगस्त को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में भी उन्होंने देश को एक बेहतर आर्थिक भविष्य का भरोसा दिलाया था. लेकिन आर्थिक जगत की खबरें इस भरोसे को तारतार करती दिख रही हैं.

पिछले वर्षो में जब शेयर बाजार में गिरावट आती थी, तब दोष वैश्विक कारणों पर मढ़ा जाता था. हालांकि तब भी भूमंडलीकरण पर सवाल उठा कर आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने की ही घोषणा होती रही थी. अब जबकि डॉलर की मजबूती के साथ अमेरिकी बाजार में स्थिरता दिख रही है, भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत और भी खराब हो रही है. इसे भूमंडलीकरण की विडंबना ही कहेंगे कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था जब मंदी का शिकार होती है, दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर उसका नकारात्मक असर पड़ता है और जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तब भी बाकी देशों में विदेशी निवेशकों की बेरुखी की चिंता सताने लगती है! गौरतलब है कि भारत अपनी खपत का करीब तीन चौथाई कच्चा तेल आयात करता है.

रुपये के अवमूल्यन से आयात खर्च काफी बढ़ गया है. इससे परिवहन खर्च बढ़ने के कारण महंगाई काबू में नहीं रही है. इतना ही नहीं, डब्ल्यूटीओ के दबाव में हम बहुत सी ऐसी चीजों का भी आयात करने लगे हैं, जिसके बिना हमारा काम चल रहा था. इससे निर्यात की तुलना में आयात अधिक हो रहा है.

जाहिर है, मौजूदा आर्थिक संकट के लिए भूमंडलीकरण की नीतियां तो जिम्मेवार हैं ही, इसकी काफी वजहें घरेलू आर्थिक नीतियों में भी छिपी हैं. भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगना इसमें आग में घीजैसा काम कर रहा है. पूछा तो यह भी जाना चाहिए कि मंदी से उबरने के लिए कॉरपोरेट घरानों को दी गयी अरबों रुपये की छूट से क्या हासिल हुआ? जाहिर है, मौजूदा आर्थिक संकट के वास्तविक कारणों की ईमानदारी से पड़ताल करने और उसे जनता के सामने लाने की जरूरत है.

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