सामाजिक समानता का अर्थ
।। डॉ भरत झुनझुनवाला।। (लेखक अर्थशास्त्री हैं) प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम दिये गये भाषण में कहा कि उनकी सरकार सामाजिक समानता तथा आर्थिक अवसरों की समानता स्थापित करने का प्रयास कर रही है. तात्पर्य यह है कि सामाजिक समानता तो होगी, लेकिन आर्थिक असमानता बनी रहेगी. केवल आर्थिक अवसरों […]
।। डॉ भरत झुनझुनवाला।।
(लेखक अर्थशास्त्री हैं)
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम दिये गये भाषण में कहा कि उनकी सरकार सामाजिक समानता तथा आर्थिक अवसरों की समानता स्थापित करने का प्रयास कर रही है. तात्पर्य यह है कि सामाजिक समानता तो होगी, लेकिन आर्थिक असमानता बनी रहेगी. केवल आर्थिक अवसरों की उपलब्धता की समानता होगी.
जैसे दलित और सवर्ण दोनों को एथलेटिक्स की दौड़ में भाग लेने का अवसर रहेगा. यह सामाजिक समानता हुई. किंतु दलित को दौड़ में ‘हैंडीकैप’ नहीं दिया जायेगा, बावजूद इसके कि वह बचपन में कुपोषण से ग्रस्त था.
इस तरीके के सरकारी प्रयासों से असमानता नहीं दूर होगी और न ही इसके एवज में उसे हैंडीकैप दिया जा सकेगा.
दलित इस बात को नहीं समझ रहे हैं. उनके लिए समानता का अर्थ केवल सरकारी नौकरियों में प्रवेश पाने तक सीमित है. लेकिन वे भूल रहे हैं कि सरकारी नौकर बन कर वे अपने कुनबे को उठाने का नहीं, बल्कि दबे रहने का कार्य करते हैं. आज जल, जंगल और जमीन से गरीब का हित छीना जा रहा है.
उसे बीपीएल कार्ड धारक का अपमानजनक दर्जा दिया जा रहा है. नेता और सरकारी कर्मी संपूर्ण जनता को लूट रहे हैं. ऐसे में दलित अनजाने में चाह रहे हैं कि वे भी लुटेरों की गैंग में शामिल हो जायें. ऐसे में दलित बुद्घिजीवियों की विशेष जिम्मेदारी है. उनके द्वारा आरक्षण को उद्घार का रास्ता बताने पर पूरे दलित समाज का ध्यान मूल समस्या से भटक जाता है.
मेरे दलित मित्र बताते हैं कि दलित अधिकारियों का दलितों के प्रति रुख ज्यादा ही क्रूर होता है. उनका प्रयास अपने को अपने कुनबे से अलग करके ऊंची जातियों के साथ जोड़ने का होता है. इसलिए प्रमोशन में आरक्षण असफल है.
वास्तविक समानता स्थापित करने का सही उपाय अच्छी शिक्षा का फैलाव है. यह आरक्षण के माध्यम से संभव नहीं है. कम क्षमता वाले छात्र दलित कोटा से चयनित हो जायें तो भी आगे नहीं बढ़ पाते. चूंकि उनमें अच्छी शिक्षा को ग्रहण करने की मानसिक तैयारी का अभाव रहता है.
अत: दलितों को शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए हैंडीकैप लाभ देना चाहिए, जिससे वे अपनी क्षमता के अनुसार शिक्षा ग्रहण कर सकें. मसलन, यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन द्वारा कालों, हिस्पैनिकों एवं रेड इंडियनों को प्रवेश में 20 अंक दिये जा रहे थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछड़े वर्ग को सुविधा देना उचित है, परंतु सभी व्यक्तियों को किसी कोरे फार्मूले के अंतर्गत सुविधा नहीं दी जा सकती है. आशय है कि ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लिए एक सीमा के आगे प्रायश्चित नहीं किया जाता. जैसे किसी ने गाली दे दी तो उसे आजीवन बंधुआ मजदूर नहीं बनाया जाता.
इन तर्को के बावजूद मैं दलितों के आरक्षण का समर्थन करता हूं. कारण कि उनके मन में यह बात बैठ गयी है कि उनके प्रति द्वेष रखा जाता है. उनकी यह भावना समाज को विघटन की ओर ले जायेगी. समाज को जोड़े रखना हमारी प्राथमिकता है. वोट बैंक का आरोप भी स्वीकार नहीं है.
वोट बैंक का ही नाम लोकतंत्र है. कोशिश होनी चाहिए कि दलितों को समझ आ जाये कि आरक्षण से उनका उद्घार नहीं होगा.
दलितों की मूल समस्या आर्थिक है. आर्थिक स्थिति मजबूत होती है तो व्यक्ति अच्छी शिक्षा और भोजन स्वयं हासिल कर लेता है. सुझाव है कि सफल दलितों की जीवनियों को लिखवाना और उनको टीवी पर प्रसारित करना चाहिए. दूसरे, दलितों के लिए श्रेष्ठतम स्कूल की फीस सरकार द्वारा भरा जाना चाहिए. निजी अंगरेजी माध्यम स्कूल की फीस आजकल पांच हजार रुपये प्रतिमाह के लगभग है.
यह रकम सरकार के द्वारा दी जानी चाहिए. तीसरे, तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं को बंद करके इस राशि को देश के प्रत्येक नागरिक को जीवन के अधिकार के रूप में देना चाहिए, जिससे दलितों को भी यह रकम स्वत: मिल जायेगी और उन पर ‘दलित’ का ठप्पा भी नहीं लगेगा.
मनमोहन सिंह को समझना चाहिए कि आर्थिक समानता से सामाजिक समानता स्वत: स्थापित होगी. आरक्षण की उपयोगिता सामाजिक अथवा आर्थिक समानता स्थापित करने में तनिक भी सक्षम नहीं है. इसकी उपयोगिता यही है कि दलितों के मन में बैठा क्रोध समाप्त हो जाये.
अत: हमें दलितों को उनकी क्षमता के अनुरूप अच्छे विद्यालयों में प्रवेश दिलाने का प्रयास करना चाहिए. प्रधानमंत्री जी को समझना चाहिए कि आर्थिक अवसरों की समानता मात्र से बात नहीं बनती. इनका उपयोग करने के लिए दलितों की मदद करनी चाहिए. इससे सामाजिक समानता स्वयं स्थापित हो जायेगी.