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गांवों पर किसी का ध्यान नहीं है

वैसे तो देश में ग्रामीण विकास की बात हर कोई करता है, लेकिन इसकी हकीकत जानने की चेष्टा कोई नहीं करता. जब यहां अंगरेजों का राज था तो गांव में खुशहाली थी, और आज देश आजाद है तो ग्रामीण बदहाल हैं. आज परिस्थितियां प्रतिकूल हो गयी हैं. अब गांव में कोई रहना नहीं चाहता, क्योंकि […]

वैसे तो देश में ग्रामीण विकास की बात हर कोई करता है, लेकिन इसकी हकीकत जानने की चेष्टा कोई नहीं करता. जब यहां अंगरेजों का राज था तो गांव में खुशहाली थी, और आज देश आजाद है तो ग्रामीण बदहाल हैं.
आज परिस्थितियां प्रतिकूल हो गयी हैं. अब गांव में कोई रहना नहीं चाहता, क्योंकि वहां आमदनी का जरिया नहीं है. लोग मौसमी बेरोजगारी नहीं, बल्कि बेरोजगारी का लंबा दंश ङोल रहे हैं. शहर में पानी, बिजली, सड़क आदि की व्यवस्था न होने पर हाहाकार मच जाता है, लेकिन गांव में बिजलीकरण नहीं हुआ तो इसकी सुध किसी को नहीं है. आज तक किसी गांव में सड़क नहीं बनी, तो कोई जांचने नहीं जाता.
नेता तो नेता, अधिकारी भी किसी की सुध नहीं लेते. शहरी लोगों को काम पर जाने के लिए तमाम तरह की सुविधाएं दी जाती हैं, लेकिन ग्रामीण कई किलोमीटर तक पैदल चल कर काम करने जाते हैं. वहां शिक्षा, रोजगार, प्रशिक्षण आदि के साधन नहीं हैं. ग्रामीण अंचलों में शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा तनख्वाह भी कम दी जाती है. काम का कोई घंटा तय नहीं है. आठ घंटे के नाम पर लोगों से 12-12 घंटे तक काम लिया जाता है. यदि ग्रामीण व्यक्ति काम के स्थल पर ही किराये के मकान में रहना शुरू कर देता है, तो उसका गुजारा नहीं होता है. इस कार्य विभिन्नता की वजह से देशवासियों की परेशानी बढ़ गयी है.
सरकार भी ग्रामीण अंचलों पर ध्यान आकर्षित करने के बजाय शहरी क्षेत्रों के विकास पर ज्यादा ध्यान देती है. सरकार के रवैये से तो ऐसा लगता है कि एक ही देश में दो-दो भारत हो गया है. एक शहरी आबादी का इंडिया और दूसरा ग्रामीणों का भारत. सरकार इस पर ध्यान दे.
डॉ मनीला कुमार, जमशेदपुर

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