कुरसी के लिए देश को न तोड़ें
मामला चाहे देश के अंदरूनी हिस्से का हो या फिर देश के बाहर का, यहां के राजनेता देशहित की ही राजनीति करें, तो उससे सबकी भलाई होगी. यह दुख की बात है कि आज धर्म और जाति के नाम पर राजनीति की जा रही है, जो देश को विखंडित करने का काम कर रही है. […]
मामला चाहे देश के अंदरूनी हिस्से का हो या फिर देश के बाहर का, यहां के राजनेता देशहित की ही राजनीति करें, तो उससे सबकी भलाई होगी. यह दुख की बात है कि आज धर्म और जाति के नाम पर राजनीति की जा रही है, जो देश को विखंडित करने का काम कर रही है.
कभी पैदाइशी हिंदू और मुसलमान के मसले को हवा दी जा रही है, तो कभी कौन कितने बच्चे पैदा करे के मसले को छेड़ा जा रहा है. आखिर इन बातों से किसे लाभ होगा? क्या यह सब सिर्फ कुर्सी के लिए नहीं किया जा रहा है? कुर्सियों पर बैठ कर तो यह सब बातें करना आसान है, लेकिन कभी किसी ने जमीन पर आकर इंसानियत की बात की है.
लखवी की रिहाई पर पूरी दुनिया चुप है और मसर्रत की रिहाई पर विपक्ष हंगामा कर रहा है और सत्तापक्ष चुप है. लोग यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि पहले कुर्सी या पहले लोग.
त्रिदीप महतो, जमशेदपुर