ऐसी भी क्या भक्ति जो सबसे दूर कर दे

अजीत पांडेय प्रभात खबर, रांची ‘भक्तों से डर लगता है’- मैंने सिर्फ इतना लिखा था कि भक्तों ने फेसबुक पर सवालों की बौछार कर दी : कैसा डर, किसका डर और क्यों लग रहा है डर? बहुत समझाया कि बस चुटकी लेने का इरादा था, पर वो कहां मानने वाले. सोशल नेटवर्किग साइटों पर एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 21, 2015 5:33 AM

अजीत पांडेय

प्रभात खबर, रांची

‘भक्तों से डर लगता है’- मैंने सिर्फ इतना लिखा था कि भक्तों ने फेसबुक पर सवालों की बौछार कर दी : कैसा डर, किसका डर और क्यों लग रहा है डर? बहुत समझाया कि बस चुटकी लेने का इरादा था, पर वो कहां मानने वाले. सोशल नेटवर्किग साइटों पर एक खास विचारधारा के लोगों को आजकल ‘भक्त’ कहा जाता है. मने कि ‘साहेब’ का भक्त. कबीर वाले साहेब का नहीं, राजनीति वाले साहेब का.

भक्तों की खासियत यह होती है कि ये बस एक ही सुर और राग में बतियाते हैं. बस अपनी ही जोते रहते हैं. सामनेवाले की बात ही नहीं समझना चाहते. गोया कि आप इनसे सहमत हैं तो देशभक्त, नहीं तो देशद्रोही. ‘साहेब’ के खिलाफ एक शब्द भी बोल दो, तो लगते हैं कोसने. दरअसल भक्त कहा ही उन्हें जाता है जो अपने ‘भगवान’ के खिलाफ कुछ नहीं सुनें.

लेकिन मुझे यह हजम नहीं होता. अरे भाई, इतना भी क्या असहिष्णु हो जाना! हमारा जिला पूर्वाचल के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार है. बुनियादी सुविधाओं की घोर कमी है. सड़कों की हालत इतनी बुरी है कि 90 के दशक का बिहार लगता है. लेकिन बिल्ली के भाग्य से छींका फूटा और हमारे जिले के सांसद केंद्र में राज्यमंत्री बन गये. फिर क्या था, हर तरफ सांसद की बिरादरी के लोग मुखर हो गये. बड़ी-बड़ी बातें करने लगे. उन्हें जनप्रिय-लोकप्रिय बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते.

फेसबुक पर किसी मित्र ने सड़कों की दुर्दशा पर कुछ लिख दिया, बस भक्त उस बेचारे पर पिल पड़े. सिरफिरा, विकास विरोधी और न जाने क्या-क्या कहने लगे. एक सज्जन तो यहां तक कह दिया कि ‘जिन्हें गाजीपुर का विकास नहीं दिखता वो बदायूं चले जायें.’ आम चुनावों के समय ‘साहेब’ के एक सिपहसालार ने भी कुछ ऐसा ही कहा था कि जो साहेब का विरोध करते हैं वो पाकिस्तान चले जायें. आज हमारी मानसिकता इतनी संकीर्ण हो गयी है कि हम वैचारिक रूप से कट्टर होते जा रहे हैं.

अपने से अलग विचार को ‘दुश्मन’ मान लेते हैं. होना यह चाहिए कि जो बातें सही लगें उनका समर्थन करें और जो गलत लगें उनका विरोध. विचार, चर्चा और बहस में सभी को विनम्रता के साथ अपनी बात रखनी चाहिए, ताकि वह सार्थक हो सके. नहीं तो बस सिरफुटौवल होगा. मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि वर्तमान नेताओं में सर्वाधिक तार्किक और विनम्र नेता मुझे योगेंद्र यादव लगते हैं.

अब इसका कोई यह मतलब निकाल ले कि मैं ‘आपिया’ हूं, तो गलत होगा. अरे मैं तो नेता जी से लेकर बहन जी तक का प्रशंसक हूं. हर नेता में मुझे कुछ अच्छी बातें, कुछ बुरी बातें दिखती हैं. किसी में अच्छा सीएम, तो किसी में अच्छा नेता और साहेब में मोटीवेटर दिखता है. लेकिन हां, भक्त बनने से मुझे तो परहेज है. सभी को बेवजह की आक्रामकता, दंभ और कट्टरपंथ से बचना चाहिए.

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