विकास की मुख्यधारा और आदिवासी

।।नियमगिरि में रायशुमारी।।ओड़िशा की नियमगिरि पहाड़ी पर बसा डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय नियमगिरि पहाड़ी को अपना ईश्वर समझता है. यह पहाड़ी प्रकृति पर आधारित उनके जीवन का आधार तो है ही, उनकी धार्मिक आस्था का केंद्र भी है. डोंगरिया कोंध आदिवासी लंबे समय से नियमगिरि पहाड़ी पर ब्रिटेन की वेदांता कंपनी की बॉक्साइट खनन परियोजना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 21, 2013 2:54 AM

।।नियमगिरि में रायशुमारी।।
ओड़िशा की नियमगिरि पहाड़ी पर बसा डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय नियमगिरि पहाड़ी को अपना ईश्वर समझता है. यह पहाड़ी प्रकृति पर आधारित उनके जीवन का आधार तो है ही, उनकी धार्मिक आस्था का केंद्र भी है. डोंगरिया कोंध आदिवासी लंबे समय से नियमगिरि पहाड़ी पर ब्रिटेन की वेदांता कंपनी की बॉक्साइट खनन परियोजना का विरोध कर रहे हैं. इस साल अप्रैल महीने में सुप्रीम कोर्ट ने अपने देवता की उपासना करने के इन आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा किये जाने की वकालत करते हुए खनन परियोजना पर स्थानीय लोगों से रायशुमारी करवाने का आदेश दिया था.

इस रायशुमारी के लिए चुनी गयी सभी 12 ग्राम सभाओं ने एक स्वर से इस परियोजना को खारिज कर दिया है. इसे दुनियाभर में चल रही मूल निवासियों के अधिकारों की लड़ाई में एक अहम मोड़ माना जा रहा है. लेकिन, यहीं यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि क्या कोई ऐसा रास्ता नहीं है, जो आदिवासी अस्मिता, पहचान, उनकी धार्मिक मान्यताओं को बचाते हुए विकास के लक्ष्य की ओर जाता हो! क्या मुख्यधारा और आदिवासी जीवन पद्धति के बीच सामंजस्य के द्वीप की तलाश नहीं की जा सकती? इस सवाल का जवाब कठिन है.

एक सच्चई यह है कि पिछले सौ वर्षो में विकास के पैरोकारों द्वारा मुख्यधारा में शामिल करने के नाम पर आदिवासियों को छला गया है. उन्हें उनके जंगल-जमीन से विस्थापित किया गया है. उनकी प्रकृति और पर्यावरण का विनाश किया गया है. उनके जंगलों में छिपे संसाधनों का फायदा चाहे किसी को मिला हो, उन्हें नहीं मिला है. यही कारण है कि मुख्यधारा में शामिल करने के वादों को आदिवासी समाज एक फरेब के तौर पर देखता है.

विकास जरूरी है, लेकिन यह स्थानीय समुदायों की सहभागिता से ही संभव है. इसके लिए जरूरी है कि आदिवासियों को विकास का लाभ प्राप्त करनेवालों की जगह विकास के साझीदार के तौर पर देखा जाये. जब तक ऐसा नहीं होगा, ऐसी परियोजनाओं को लेकर आदिवासियों का संदेह बना रहेगा. नियमगिरि के आदिवासियों का फैसला वास्तव में विकास के नक्शे में आदिवासियों की चिंताओं को शामिल करने की मांग कर रहा है. नियमगिरि का सवाल सिर्फ धार्मिक विश्वास का सवाल नहीं है, जैसा कि इसे बताया जा रहा है. यह एक समुदाय के पूरे जीवन और जीवन-पद्धति का सवाल है. इससे भी बढ़ कर यह उस ऐतिहासिक अन्याय से जुड़ा है, जो पिछली एक सदी में आदिवासियों के साथ किया गया है. जब तक इन सवालों का जवाब नहीं खोजा जायेगा, एक नहीं, कई नियमगिरि हमारे सामने उपस्थित होते रहेंगे.

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