लाभ-हानि के गणित में शर्म-निरपेक्ष पीढ़ी
।।लोकनाथ तिवारी, प्रभात खबर, रांची।।काका आज सुबह से ही गंभीर मुद्रा में थे. सुबह-सुबह अपनी पोती के सामने उनकी बोलती जो बंद हो गयी थी. बड़े-बड़े ‘बोल-बच्चन’ वालों की बोलती पर अपने अनुभव का ढक्कन लगानेवाले काका किशोर उम्र की पोती का जवाब नहीं दे पाये थे. हुआ यूं कि राखी पर गांव के बाबा […]
।।लोकनाथ तिवारी, प्रभात खबर, रांची।।
काका आज सुबह से ही गंभीर मुद्रा में थे. सुबह-सुबह अपनी पोती के सामने उनकी बोलती जो बंद हो गयी थी. बड़े-बड़े ‘बोल-बच्चन’ वालों की बोलती पर अपने अनुभव का ढक्कन लगानेवाले काका किशोर उम्र की पोती का जवाब नहीं दे पाये थे. हुआ यूं कि राखी पर गांव के बाबा जी शहर में यजमानों को राखी बांधने आये थे. हर वर्ष की तरह इस बार भी उन्होंने काका के घर में ही डेरा डाला. यहीं से हर जगह घूम-घूम कर गांव-जवार के लोगों को रंगीन सूत की राखी बांधने जाते हैं. बदले में अच्छी-खासी दक्षिणा का जुगाड़ हो जाता है. बाबा जी को नुकसान न हो इसके लिए काका कथा भी करवाते हैं. कुल मिला कर भदवारी में बाबा को शहर से निराश नहीं लौटना पड़ता. बाबा के आगमन पर काका ने उनका चरण स्पर्श किया. पोती को भी ऐसा करने को कहा, तो वह दूर से ही हाथ लहराते हुए बोली- हैलो बाबा जी! काका को यह पसंद नहीं आया, तो उसने कहा, हैलो बोल कर ग्रीट करने और चरण छूने में क्या अंतर है? चरण छूने से आखिर मुङो क्या लाभ मिलेगा?
बेचारे काका कैसे बतायें कि भौतिक लाभ के लिए चरण नहीं छुए जाते. सो, वह भी पोती से सवाल कर बैठे, अपने बाप को पहले बाबूजी कहती थी. फिर पापा कहने लगी. अब डैड कहने से तुम लोगों को क्या लाभ मिल जाता है? लेकिन हाइब्रिड संस्कृति की महिमा के सामने यहां भी काका को मुंह की खानी पड़ी. उनकी कॉलेज गोइंग बेटी ने लाजवाब कर देनेवाला जवाब चिपका दिया, बाबूजी व पापा का उच्चारण होंठ मिला कर करना पड़ता है. इससे लिपस्टिक खराब हो जाती है, जबकि डैड बोलने में यह समस्या नहीं होती. अब काका का मुंह देखने लायक था. उनकी पीढ़ी ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया था. जबकि बचपन में गांव की पाठशाला में पंडीजी ने उच्चरण, वर्तनी और सुलेख सुधारने के लिए बेहया के सैकड़ों डंडे उनकी पीठ पर तोड़ डाले थे.
काका को अपने बचपन का एक वाकया याद आने लगा. उनकी भी ऐसी ही किशोर उम्र थी. मैली धोती-गंजी पहने, नंगे पैर द्वार पर आये एक बुजुर्ग का पैर छूने में उन्होंने आनाकानी की थी. इस पर पिता ने न केवल फटकार लगायी, बल्कि बिवाई फटे उनके पैर भी धुलवाये. बात न मानने पर जोरदार पिटाई होनी तय थी.. लेकिन आज! हर चीज में लाभ तलाशनेवाली पीढ़ी उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया है. वह तो कभी कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि पैर छूने, माता-पिता की सेवा करने, सच बोलने, दुखियारों की मदद करने, पूजा करने, घर, समाज, गांव, जवार व देश हित की कल्पना करने में लाभ की बात सोची जा सकती है. वह सोच रहे थे कि उनकी पीढ़ी से क्या गलती हो गयी कि वर्तमान पीढ़ी हर बात में नफा ढूंढ़ने लगी.