फाइलों में हों न हों, वे हमारे दिल में हैं..

।।जावेद इस्लाम।।प्रभात खबर, रांचीकभी-कभी पुरखों की खता की सजा उनके वारिसों को भुगतनी पड़ती है. केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. उन्हें एक ऐसे मामले से दो-चार होना पड़ रहा है, जिसके लिए उन्हें पुरानी सरकारी फाइलों की धूल फांकनी पड़ रही है. तमाम पुरानी, बोशीदा, दीमक खायी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 23, 2013 3:55 AM

।।जावेद इस्लाम।।
प्रभात खबर, रांची
कभी-कभी पुरखों की खता की सजा उनके वारिसों को भुगतनी पड़ती है. केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. उन्हें एक ऐसे मामले से दो-चार होना पड़ रहा है, जिसके लिए उन्हें पुरानी सरकारी फाइलों की धूल फांकनी पड़ रही है. तमाम पुरानी, बोशीदा, दीमक खायी फाइलें उलट-पुलट डालीं, पर वह कमबख्त फाइल मिल ही नहीं रही है, जिसकी तलाश है.

वैसे इतनी पुरानी फाइल मिल ही जायेगी इसकी क्या गारंटी. जब चंद सालों पहले की कोयला घोटाले की फाइलें ढूंढ़ें नहीं मिल रही हैं, तो वह तो दशकों पुरानी फाइल है! खैर, अगर फाइल मिल गयी तो मंत्री जी पढ़ कर देखेंगे कि उसमें उनके पुरखों ने क्या दर्ज किया है. शहीदे-आजम भगत सिंह को शहीद का दरजा दिया भी है या नहीं? आखिर यह फर्ज तो आजाद भारत की प्रथम सरकार का ही था. अब अंगरेज बहादुर तो उन्हें शहीद का दरजा देने से रहे होंगे, क्योंकि उनके लिए भगत सिंह क्रांतिकारी नहीं, आतंकवादी थे, तभी तो देशवासियों की प्रबल भावना की अनदेखी कर 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी दे दी थी.

भला जो आतंकवादी माने वह शहीद का दरजा क्यों दे? अमेरिका ओसामा को शहीद का दरजा देगा क्या? अब मंत्री जी के पुरखों ने भगत सिंह को शहीद का दरजा दिया है या नहीं, यह इस वक्त उन्हें नहीं पता है, तो वे क्या करें पुरानी फाइलों के उत्खनन के सिवा. उनसे किसी ने पूछा नहीं, पर पूछना चाहिए था कि आपके पुरखे भगत सिंह को क्या मानते थे, क्रांतिकारी या आतंकवादी? हो सकता है मंत्री जी का जवाब होता, इतिहास की किताबें देख कर बतायेंगे. जैसे संसद में किसी ने भगत सिंह के शहीद के दरजे पर सवाल किया, तो जवाब दिया,पुरानी फाइलें देख कर बतायेंगे. खैर, उन्हें फाइल खोजने दें और जवाब का इंतजार करें.

इस बीच, हम चाहें तो भगत सिंह की फांसी के मामले में मंत्रीजी के पुरखों की ईमानदारी का जायजा ले सकते हैं. क्या 1931 के गोल मेज सम्मेलन में भगत सिंह की फांसी टालने की मांग सख्ती से कर उन्हें फांसी से नहीं बचाया जा सकता था? अगर ऐसा हुआ होता, तो आज मंत्री जी को पुरानी फाइलों के पीछे हलकान नहीं होना पड़ता. अब भुगतिए पुरखों की करतूत की सजा. देश तो पहले ही भुगत रहा है. चलिए मान लिया कि फाइल मिल गयी और उसमें शहीद का दरजा नहीं हुआ तो? मंत्री जी का कौल है कि शहीद का दरजा दे देंगे. वाह! बड़ा एहसान होगा. भगत सिंह को इस सरकार की सनद की बहुत जरूरत है. फिर तो शहीदों के मजारों पर मेले लगेंगे. संसद में कुछ वर्षो पहले भगत सिंह की मूर्ति लगा कर एक एहसान तो पहले ही किया जा चुका है. ऐसी प्रतिमा जिसे देखने से लगता ही नहीं कि भगत सिंह की है.

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