परिजन ही छुपा लेते हैं घटनाओं को
बलात्कार और मनुष्यता के सामाजिक एवं नैतिक पतन विषय में मैं यही कहना चाहूंगा कि यह आधुनिक युग की बढ़ती हुई समस्या है. भारतीय कानून की धारा 375 इसे बहुत ही बेहतर ढंग से परिभाषित करती है. अब भारत महिलाओं के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं रहा. हमारी संस्कृति महिलाओं को जननी, नारी शक्ति आदि […]
बलात्कार और मनुष्यता के सामाजिक एवं नैतिक पतन विषय में मैं यही कहना चाहूंगा कि यह आधुनिक युग की बढ़ती हुई समस्या है. भारतीय कानून की धारा 375 इसे बहुत ही बेहतर ढंग से परिभाषित करती है.
अब भारत महिलाओं के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं रहा. हमारी संस्कृति महिलाओं को जननी, नारी शक्ति आदि शब्दों से सुशोभित करती रही है, लेकिन आज इन्हीं नारियों के देश में इनका ही शोषण हो रहा है. 16 दिसंबर, 2012 की घटना हमारे देश के इतिहास में काले दिन के रूप में जानी जाती है.
विश्व भर में इस घटना की घोर निंदा की गयी. बलात्कार पर नये कानून बनाये गये. इसके विपरीत बलात्कार की घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ती ही गयीं. आज हजारों निर्भयाओं के दर्द को उनके परिजन नहीं सुनते, क्योंकि 98 प्रतिशत ऐसी घटनाएं परिजनों द्वारा ही दबा दी जाती हैं.
मसब बिन असद, रांची