नयी राजधानी के बिना गुजारा नहीं
नयी राजधानी और ग्रेटर रांची के लिए तेजी से प्रयास हो रहा है. खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास पहल कर रहे हैं. खाका तैयार है. मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि नयी राजधानी चंडीगढ़ और रायपुर की तर्ज पर बनेगी. पर सबसे अहम सवाल यह है कि नयी राजधानी कहां बनेगी? जब तक स्थल का चयन […]
नयी राजधानी और ग्रेटर रांची के लिए तेजी से प्रयास हो रहा है. खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास पहल कर रहे हैं. खाका तैयार है. मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि नयी राजधानी चंडीगढ़ और रायपुर की तर्ज पर बनेगी. पर सबसे अहम सवाल यह है कि नयी राजधानी कहां बनेगी?
जब तक स्थल का चयन अंतिम रूप से नहीं हो जाता, काम आगे बढ़ना मुश्किल है. खुद मुख्यमंत्री ने रिंग रोड के आसपास कई स्थलों को देखा था, लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है. काम कठिन है क्योंकि नयी राजधानी के लिए 20-25 हजार एकड़ जमीन एक जगह चाहिए, जो आसान नहीं है.
यह भी सच है कि बगैर नयी राजधानी बने काम भी नहीं चलेगा. वर्तमान रांची की स्थिति ऐसी है कि चलना मुश्किल है. ट्रैफिक जाम से लोग परेशान हैं. रांची एक पुराना शहर है जो बिना योजना के बसा है.
कोई और शहर होता तो फ्लाइओवर बना कर यातायात ठीक किया जा सकता था, पर रांची में यह भी संभव नहीं लगता. मेन रोड, सकरुलर रोड को अगर 10-10 फुट भी और चौड़ा करना हो, तो सारी दुकानें साफ हो जायेंगी. कोई भी सरकार राजनीतिक कारणों से यह जोखिम नहीं लेना चाहेगी. इसलिए इसका एकमात्र उपाय है नया शहर बसाना.
इसी रांची से कुछ दूर. पहले जगह तय हो. फिर सरकार नयी राजधानी/ग्रेटर रांची को विकसित करने के लिए योजना बनाये. नीति बनाये. सरकारी कार्यालयों को दूर ले जाने से शहर पर से भार कम होगा. नीति ऐसी बने जिसमें बाहर बसनेवाले, बाहर मॉल/ मार्केटिंग कांप्लेक्स, शैक्षणिक संस्थान खोलनेवालों को सुविधा मिले. अभी हाल यह है कि हर व्यवसायी मेन रोड, अपर बाजार में ही अपना व्यवसाय करना चाहता है.
मेन रोड पर चलने की जगह है नहीं, पर नये होटल-रेस्टोरेंट बनते जा रहे हैं. नये निर्माण पर रोक नहीं लगाने से शहर में यातायात की स्थिति और खराब होगी. बेहतर होगा जितना जल्द हो सके, नयी राजधानी पर फैसला हो जाये. सरकार के सामने चुनौतियां हैं. सरकारी जमीन इतनी एकसाथ है नहीं, रैयत देने को तैयार नहीं. इसलिए अब लोगों को खुद सामने आना होगा. अगर बेहतर रांची चाहिए तो सहयोग करना होगा. विकास तभी हो सकता है जब हर किसी की भागीदारी हो. बेहतर भविष्य के लिए कड़े फैसले भी लेने होंगे.