जन-भागीदारी के बिना विकास नहीं

यह केंद्र तथा राज्य की सरकारों के उन सभी प्रबल वादों पर सवाल खड़े करता है, जिनके बल पर उन्होंने चुनावी राजनीति में बहुमत हासिल किया. भारत एक ऐसा देश है, जो अपनी स्वतंत्रता के 68 वर्ष बाद भी गरीबी, पिछड़ेपन व बेरोजगारी का शिकार है. यहां शिक्षा, स्वास्थ्य व तमाम बड़े विभागों में भ्रष्टाचार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 28, 2015 5:39 AM
यह केंद्र तथा राज्य की सरकारों के उन सभी प्रबल वादों पर सवाल खड़े करता है, जिनके बल पर उन्होंने चुनावी राजनीति में बहुमत हासिल किया. भारत एक ऐसा देश है, जो अपनी स्वतंत्रता के 68 वर्ष बाद भी गरीबी, पिछड़ेपन व बेरोजगारी का शिकार है. यहां शिक्षा, स्वास्थ्य व तमाम बड़े विभागों में भ्रष्टाचार का रोग लगा हुआ है, जो दिन-ब-दिन इसकी व्यवस्था को खोखला करते जा रहा है.
दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली के कारण हजारों शिक्षित बेरोजगार हैं, जो रोजगार की तलाश में रोज भटकते रहते हैं. ऐसे में क्या भारत अपने विकासात्मक लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होगा? क्या मोदी जी के बड़े भाषण तथा वादे देश की नैया को पार लगा सकेंगे? आज भारत के अनेक गांवों में बिजली, पानी तथा स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है. गरीब बच्चे घर की दयनीय आर्थिक स्थिति के कारण पढ़ नहीं पाते. वे घर के कामों में हाथ बंटाने के लिए बाल श्रम करने को मजबूर हैं.
इन सभी तथ्यों से यह स्पष्ट है कि भारत में गरीबी, बेरोजगारी तथा अशिक्षा अत्यधिक है, जो इसके विकास में मूल बाधक तत्व बने हुए हैं. यदि भारत को विकास चाहिए, तो सर्वप्रथम उसे इन तत्वों से निजात पाकर अपनी व्यवस्था को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है.
इसके अलावा बढ़ती जनसंख्या भी एक प्रमुख समस्या है. अत: यह कहा जा सकता है कि भारत को विकास की राह में आगे बढ़ाने के लिए एक संयुक्त जन-कार्रवाई की आवश्यकता है, जो सरकार के साथ जन-भागीदारी के माध्यम से पूर्ण की जा सकती है. विकास के मायनों को धरातल पर लाने के लिए भ्रष्टाचार को समाप्त करना होगा, जिसके लिए जनता की जागरूकता जरूरी है.
सुब्रत नंद, तेलाई, सरायकेल खरसावां

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