अरब संकट पर हो अंतरराष्ट्रीय पहल

वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में एक कोने में हो रही घटनाएं स्वाभाविक रूप से दूसरे कोने में चल रही गतिविधियों को प्रभावित करती हैं. यमन में आंतरिक युद्ध और सऊदी अरब के नेतृत्व में सैन्य हमले ने अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें बढ़ा दी हैं और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के निराशाजनक प्रदर्शन के कारण तेज बिकवाली से वैश्विक शेयर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 28, 2015 5:41 AM
वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में एक कोने में हो रही घटनाएं स्वाभाविक रूप से दूसरे कोने में चल रही गतिविधियों को प्रभावित करती हैं. यमन में आंतरिक युद्ध और सऊदी अरब के नेतृत्व में सैन्य हमले ने अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतें बढ़ा दी हैं और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के निराशाजनक प्रदर्शन के कारण तेज बिकवाली से वैश्विक शेयर बाजारों में गिरावट देखी जा रही है.
इन कारकों के फलस्वरूप गुरुवार को बंबई स्टॉक एक्सचेंज विगत दो महीने के सबसे निचले स्तर पर आ गया और रुपये की कीमत में भी 35 पैसे की गिरावट दर्ज की गयी. हालांकि, शुक्रवार को स्थिति में कुछ सुधार के संकेत मिले हैं, परंतु आर्थिक जानकारों के अनुसार, बाजार में अस्थिरता बनी रह सकती है.
यमन की सरकार के विरुद्ध संघर्षरत विद्रोहियों पर सऊदी अरब के हमले को जहां अमेरिका समेत अनेक पश्चिमी राष्ट्रों ने न सिर्फ सही ठहराया है, बल्कि इस अभियान में उनका सक्रिय सहयोग भी है. उधर ईरान ने इस हमले की निंदा करते हुए मध्य-पूर्व में खून-खराबे की चेतावनी दी है. माना जाता है कि आनेवाले दिनों में तेल की कीमतें और बढ़ सकती हैं. निवेशकों में बेचैनी के कारण सोने की कीमतें भी बढ़ी हैं. एक तरफ डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है, तो डॉलर में भी यूरो और येन के मुकाबले गिरावट आयी है.
अन्य एशियाई मुद्राएं भी कमजोर बनी हुई हैं. मौजूदा वित्तीय वर्ष का अंतिम सप्ताह होने का दबाव भी है. यमन का संकट अरब में पिछले कुछ समय से जारी भयानक हिंसा में नया अध्याय है. सऊदी अरब और अन्य अरबी देशों के साथ पाकिस्तान के भी इस हमले में शामिल होने की संभावना है. ईरान भी विद्रोहियों के साथ खड़ा हो सकता है.
इसलामिक स्टेट और अल कायदा भी इस संघर्ष के घटक हैं. ऐसे में अमेरिकी व अन्य पश्चिमी देशों का इस संकट के समाधान में भूमिका निभाने की जगह युद्ध की स्थिति पैदा करने में सहायक होना दुर्भाग्यपूर्ण है. यमन, सीरिया, इराक, लीबिया आदि के गृहयुद्धों में हुई बड़ी संख्या में मौतें और शरणार्थियों की दुर्दशा गंभीर मानवीय संकट हैं. समय की मांग है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अपने तात्कालिक उद्देश्यों और स्वार्थो से ऊपर उठ कर अरब में दीर्घकालिक शांति के लिए ठोस पहल करे.

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