गरीबों की दवा की भी कोई सुधि ले

बिहार के सरकारी अस्पतालों में एक बार फिर दवाओं की किल्लत है. यह नौबत करीब 14 करोड़ रुपये के दवा घोटाले की वजह से सामने आयी है, जो पिछले साल उजागर हुआ था. घोटाले के बाद केंद्रीकृत रूप से दवा की सरकारी खरीद की प्रक्रिया इतनी दुरूह बन गयी है कि उसमें लंबा समय लगता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 30, 2015 6:24 AM

बिहार के सरकारी अस्पतालों में एक बार फिर दवाओं की किल्लत है. यह नौबत करीब 14 करोड़ रुपये के दवा घोटाले की वजह से सामने आयी है, जो पिछले साल उजागर हुआ था. घोटाले के बाद केंद्रीकृत रूप से दवा की सरकारी खरीद की प्रक्रिया इतनी दुरूह बन गयी है कि उसमें लंबा समय लगता है.

दूसरी तरफ स्थानीय स्तर पर दवा खरीद के लिए जो व्यवस्था बनी है, वह जमीन पर नहीं उतर पायी है. जिस कमेटी को दवाओं की खरीदारी करनी है, उसमें शामिल डॉक्टर व अफसर इस आशंका से फैसला लेने में कतरा रहे हैं कि कहीं कोई गड़बड़ी न हो जाये. ऐसे में मरीजों को परेशानी ङोलनी पड़ रही है. हालत यह है कि मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में हीमोफीलिया की दवा और एंटी रैबीज सूई खत्म हो चुकी है. इनडोर के मरीजों को 122 प्रकार की दवाएं दिये जाने का प्रावधान है, उसकी जगह सिर्फ 25 दवाएं ही उपलब्ध हैं.

दवा की केंद्रीकृत खरीद करनेवाली सरकारी एजेंसी बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड का कहना है कि दवा की खरीद में कम-से-कम डेढ़ माह लगेंगे. दवाओं के लिए अभी टेंडर निकाला गया है. खरीद के बाद उसकी जांच होगी. यानी सरकारी अस्पतालों में 15 मई तक दवा पहुंच पायेगी. यह चिंताजनक स्थिति ब्यूरोक्रेसी के कामकाज के तरीके और जिम्मेवार डॉक्टरों व अफसरों की मानसिकता दिखाती है. दवा खरीद की प्रक्रिया से किनारा कर लेने वालों का तर्क भी समझ से परे है.

क्या इस आशंका के आधार पर बांधों, सड़कों और पुलों का निर्माण बंद कर दिया जाये कि उसमें घोटाला हो जायेगा? अलबत्ता इसकी प्रक्रिया को दुरुस्त किया जाना चाहिए. दवा खरीद के लिए जिम्मेवार अफसरों को यह बात समझनी चाहिए कि रोगी को दवा की जरूरत तत्काल होती है. सरकारी फाइल की अपनी गति हो सकती है, लेकिन कोई बीमारी दवा के लिए डेढ़ माह का इंतजार नहीं कर सकती है. यदि दवा खरीद में गड़बड़ी हुई, तो इसके लिए खरीद की प्रक्रिया और संबंधित अफसर-कर्मचारी, महकमा या कोई कंपनी जिम्मेवार हो सकता है. किसी और की गलती का खमियाजा कोई गरीब मरीज क्यों भुगतें? मरीजों को समय पर मुफ्त दवा मिले, इसकी व्यवस्था तो होनी ही चाहिए.

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