दवा कंपनियों का खेल!

।। सुभाष चंद्र कुशवाहा ।। (स्वतंत्र टिप्पणीकार) भारतीय बाल रोग परिषद (द इंडियन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स) की 2012 की वार्षिक रिपोर्ट, दवा कंपनियों के व्यूह जाल, खरीद–फरोख्त और प्रलोभनों के सहारे पूरे चिकित्सा तंत्र को अपनी गिरफ्त में लेने की एक अत्यंत षडय़ंत्रकारी तसवीर प्रस्तुत करती है. साथ ही साथ कुछ भारतीय चिकित्सा संगठनों के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 24, 2013 3:32 AM

।। सुभाष चंद्र कुशवाहा ।।

(स्वतंत्र टिप्पणीकार)

भारतीय बाल रोग परिषद ( इंडियन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स) की 2012 की वार्षिक रिपोर्ट, दवा कंपनियों के व्यूह जाल, खरीदफरोख्त और प्रलोभनों के सहारे पूरे चिकित्सा तंत्र को अपनी गिरफ्त में लेने की एक अत्यंत षडय़ंत्रकारी तसवीर प्रस्तुत करती है.

साथ ही साथ कुछ भारतीय चिकित्सा संगठनों के नामों को अपने उत्पादों के साथ जोड़ कर या समर्थन में उनकी संस्तुति का हवाला देकर, गैरजरूरी उत्पादों की वैधता स्थापित करती है. दवा कंपनियों द्वारा तैयार स्वास्थ्य संबंधी अनावश्यक जागरूकता की गिरफ्त में मुल्क की आम जनता ही नहीं, मध्यम वर्ग का व्यापक तबका शामिल हो जाता है.

ये कंपनियां जरूरी जागरूकता को जहां ढंकने का काम करती हैं, वहीं बाध्यकारी चेतावनियों को अस्पष्ट रूप में प्रस्तुत कर हमारी स्मृति से ओझल कर देती हैं.

कल्पना कीजिए, बच्चों की सेहत के लिए बने किसी गैरजरूरी उत्पाद की वकालत, बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी डॉक्टरों की शीर्ष संस्था, भारतीय बाल रोग परिषदकरे तो क्या होगा? बाजार की चकाचौंध में बहने वाला मध्यम वर्ग तुरंत अपने लाडले की सेहत के लिए, अपने दूसरे जरूरी बजट को तिलांजलि दे, उस उत्पाद को खरीदेगा. इसी मानसिकता को आज दवा कंपनियां भुना रही हैं.

यहां यह बताना जरूरी है कि भारतीय बाल रोग परिषद, देश के बाल रोग विशेषज्ञों की एक संस्था है और भारतीय चिकित्सा संगठन (आइएमए) की नजर में उसके द्वारा दवा कंपनियों के उत्पादों के विज्ञापन में अपना नाम देना, या उनसे धन लेना अनुचित है.

ऐसे में, आइएमए के दृष्टिकोण पर विचार करते हुए, प्रवाशाली कानून बना कर इस व्यवहार को रोका जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा अब तक नहीं हो पाया है और दवा कंपनियों का खेल बेरोकटोक जारी है.

2012 में भारतीय दवा कंपनियों ने भारतीय बाल रोग परिषद को कुल 267.2 लाख रुपये किस उद्देश्य से दिये हैं, इसे आप देश की दवा कंपनियों या बच्चों के लिए विभिन्न उत्पाद बनानेवाली कंपनियों के विज्ञापनों के साथ इंडियन पीडियाट्रिक्स एसोसिएशन द्वारा प्रमाणित या अनुमोदितजैसे वाक्य लिखा देख कर समझ सकते हैं.

इस 267.2 लाख में जॉनसन एंड जॉनसन का 118.2, मर्क का 98.6, व्येथ का 13.3, सनोफी पास्चर का 11.4, जुवेंट्स का 11, ग्लैक्सो स्मीथ लाइन का 5, एक्सरे बेकाम का 4.5, सीरम इंस्टीट्यूट का 3 और फाइजर का 2 लाख शामिल है. आखिर यह धनराशि, घूस मानी जायेगी या नहीं या इसकी व्याख्या कानून की धाराओं में उलझ कर रह जायेगी, कहा नहीं जा सकता.

यह भी सच है कि ऐसा घूस, भ्रष्टाचार के लिए चलाये गये किसी भी आंदोलन के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा. इसके लिए भारतीय चिकित्सा संगठन द्वारा बनाये गये नियम 6.8.1 में ही खामी दिखती है, जो चिकित्सा क्षेत्र में जुड़े डॉक्टरों के द्वारा दवा कंपनियों से उपहार, किराया सुविधा या नकद धन सुविधा लेने को रोकने की वकालत तो करता है, लेकिन सहकारिता अधिनियम की धारा 1860 के अंतर्गत पंजीकृत संस्थानों पर यह लागू नहीं माना जाता.

एक दूसरा मुद्दा यह है कि भारतीय बालरोग परिषद, राष्ट्रीय प्रतिरक्षण सलाहकार समूह (नेशनल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्यूनाइजेशन) का सदस्य है, ऐसे में क्या वह अपने चहेती कंपनियों के उत्पादों के हित में ऐसी नीतियां नहीं लागू करा सकता है जो उनके हितों के अनुकूल हों? और क्या यह एक प्रकार से, सहकारिता अधिनियम के अंतर्गत संस्थाओं को पंजीकृत करा कर घूस को कानून सम्मत बनाना नहीं है? क्या यह जनहित के विरुद्घ और कॉरपोरेट लूट के पक्ष में नहीं है?

पद्मश्री डॉ केके अग्रवाल ने दवा कंपनियों के खेल पर कई जरूरी सवाल उठाये हैं. मसलन, बच्चों के लिए बाजार में जो तमाम उत्पाद विज्ञापित किये जाते हैं, यह सब दवा कंपनियों के झूठे प्रचार पर आधारित अकूत धन कमाने का एक षड्यंत्र है. अन्यथा जो काम सामान्य साबुन और तेल करते हैं, वही ये विशेष प्रकार के उत्पाद हमारी जेबों पर डाका डालने के बाद भी करते दिखते हैं.

इतना ही नहीं, कुछ पाउडर तो बच्चे को नुकसान भी पहुंचाते हैं. : माह तक मां के दूध का कोई विकल्प होते हुए भी, बच्चों के भोजन के दूसरे उत्पादों से बाजार भरे पड़े हैं और : माह के बाद, जो प्रभाव दाल या उबली तरल सब्जियों का होता है, उतना बाजारू उत्पादों का नहीं होता, लेकिन बाजार की चकाचौंध में हमारा मध्यम वर्ग ऐसे उत्पादों का प्रयोग कर, अपनी हैसियत पर मगरूर होने का लोभ नहीं रोक पाता.

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