झारखंड में नयी सरकार आने के बाद तंत्र में थोड़ा सुधार दिखने लगा है. खास कर पुलिस तंत्र ने लातेहार के पास जंगल में सटीक सूचना पर नक्सलियों के दस्ते को घेर कर बिना नुकसान कोई उठाये जिस तरह दो उग्रवादियों को ढेर कर दिया और एक घायल महिला नक्सली को दबोच लिया. यह काबिले-तारीफ है. मुठभेड़ स्थल से बड़ी संख्या में बरामद हथियार और गोला-बारूद भी पुलिस की सफलता की कहानी खुद कह रहे हैं.
याद रहे कि करीब एक सप्ताह पहले नक्सलियों के इसी दस्ते ने पड़ोसी लोहरदगा के जंगल में एक राजनीतिक परिवार के तीन सदस्यों की हत्या कर दी थी. लोहरदगा की वारदात के बाद से ही पुलिस इस दस्ते की टोह ले रही थी और अंतत: सफलता हाथ लगी. लेकिन दस्ते का प्रमुख अपने कुछ साथियों के साथ भागने में सफल हो गया. यह शायद किसी खामी के वजह से हुआ. फिर भी पुलिस अब ज्यादा मुस्तैद है. उसके खबरी भी सही समय पर सूचनाएं दे रहे हैं. यही वजह है कि हाल के दिनों में पूरे राज्य में नक्सली कोई बड़ी वारदात अंजाम नहीं दे पा रहे हैं.
राज्य के मुखिया रघुवर दास पुलिस का मनोबल बढ़ाने में जुटे हैं. लेकिन जरूरत है कि बड़े अफसर भी अपने जवानों में समाज विरोधी लोगों के खिलाफ हौसला पैदा करें, जिससे आम नागरिक अमन-चैन से रह सके. अधिकारियों का फर्ज है कि वे नक्सलियों के ठिकानों और उनके विचरण की सूचना मिलने का तंत्र विकसित करने और उनकी सटीक घेराबंदी के लिए अपने स्तर से पहल करें. हां, एक बात और, अधिकारी अपने जवानों को संयम की भी सलाह दें. खबरें मिली हैं कि लातेहार में मुठभेड़ के बाद पुलिस बल नक्सली होने के संदेह या नक्सली समर्थक मान कर आम नागरिकों को परेशान कर रहा है, उनकी पिटाई भी हुई है. इसके विरोध में जनता में काफी गुस्सा है.
लोगों ने सड़क जाम कर अपने गुस्से का इजहार भी किया है. इसे तुरंत रोका जाना चाहिए. सर्च ऑपरेशन के नाम पर आम लोगों को परेशान करने से जनता का रोष अंतत: सरकार के खिलाफ जायेगा. लोगों का पुलिस बल से भरोसा उठेगा, इसका असर दूरगामी होगा. इस लिए सरकार को ऐसे मामलों में बहुत शालीन कदम उठाने की जरूरत है. नक्सली हिंसा से मुक्ति के नाम पर पुलिस बल जब खुद हिंसा करेगा, तो आखिर जनता किस पर भरोसा करेगी. पुलिस अपना काम करे, लेकिन उसे भी थोड़ा सब्र की जरूरत है.