तकनीक के युग में राजनीतिक सदस्यता
राजनीति में जनता की भागीदारी जितनी अब सुगम है, कभी नहीं थी. बीजेपी ने दावा किया है कि 8.8 करोड़ सदस्यों के साथ वह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गयी है. इससे पहले सबसे बड़ी आबादीवाले देश चीन की सत्ता पर काबिज कम्युनिस्ट पार्टी 8.6 करोड़ सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी. बीजेपी […]
राजनीति में जनता की भागीदारी जितनी अब सुगम है, कभी नहीं थी. बीजेपी ने दावा किया है कि 8.8 करोड़ सदस्यों के साथ वह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गयी है. इससे पहले सबसे बड़ी आबादीवाले देश चीन की सत्ता पर काबिज कम्युनिस्ट पार्टी 8.6 करोड़ सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी.
बीजेपी ने पिछले आठ दिनों में ही करीब 1 करोड़ नये सदस्य जोड़े हैं, जो एक चमत्कार सरीखा लगता है. यह चमत्कार हुआ है सूचना प्रौद्योगिकी के बूते. सदस्य बनने के लिए अब बस एक फोन नंबर पर अपने मोबाइल से मिस कॉल देना होता है! बीजेपी की देखा-देखी कांग्रेस ने भी सदस्य संख्या बढ़ाने के लिए ऑनलाइन सेवा शुरू की है. संभव है, इससे उसकी सदस्य संख्या भी कुछ आगे बढ़े.
यहां गौर करनेवाली बात यह है कि संसद में सर्वाधिक सीटें जीतनेवाली बीजेपी और सर्वाधिक सीटें गंवानेवाली कांग्रेस, दोनों ही अपनी सदस्य संख्या बढ़ाने के लिए मोबाइल और इंटरनेट का सहारा ले रहे हैं. सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार ने राजनीति के स्वरूप और व्यवहार को बुनियादी तौर पर बदला है. देश में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या 90 करोड़ के पार पहुंच रही है. 12 करोड़ से ज्यादा घरों में टीवी सेट्स हैं. इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या भी 30 करोड़ के आसपास हो गयी है.
ऐसे में बात नीतियों की घोषणा हो, घोषणापत्र जारी करना हो या सदस्य बनाना, लोगों तक पहुंचने का पार्टियों का तरीका बदल रहा है. लेकिन जरा ठहर कर सोचें तो इस बदले हुए राजनीतिक व्यवहार ने राजनेता को छवियों-प्रतीकों और लोगों की राजनीतिक भागीदारी को एक उपभोक्ता व्यवहार में तब्दील कर दिया है.
मोबाइलधारक या टीवी दर्शक के रूप में लोगों की किसी राजनीतिक घटना में प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं हो पाती, फिर भी यह राजनीतिक घटनाओं के बारे में राय का निर्माण करती है. इसलिए अंदेशा रहता है कि राय को राजनीतिक निर्णय में बदलते समय गलती न हो जाये, क्योंकि छवि केंद्रित राजनीति संकेतों के महीन हेरफेर से लोगों को किसी प्रतीक या कार्यक्रम के बारे में ऐसी राय बनाने को उकसा सकती है, जो उनकी राजनीतिक हकीकतों या बुनियादी जरूरतों से मेल न खाता हो. इसलिए, सूचना प्रौद्योगिकी केंद्रित राजनीतिक सदस्यता अभियान को पर्याप्त सोच-विचार के साथ देखने की जरूरत है.