चीन के साथ व्यापार के विरोधाभास
डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री भारत सरकार देश को गिरवी रख कर जनता को अमेरिकी सेब खिला रही है, जबकि चीन अपनी जनता की इच्छाओं पर अंकुश लगा कर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अपनी पैठ बना रहा है. डर है कि मोदी का देश को सुपर पावर बनाने का सपना कहीं देश को सुपर ऋणी न बना […]
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
भारत सरकार देश को गिरवी रख कर जनता को अमेरिकी सेब खिला रही है, जबकि चीन अपनी जनता की इच्छाओं पर अंकुश लगा कर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अपनी पैठ बना रहा है. डर है कि मोदी का देश को सुपर पावर बनाने का सपना कहीं देश को सुपर ऋणी न बना दे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मई में चीन की यात्र पर जानेवाले हैं. यात्र का एक बिंदु सीमा विवाद को सुलझाने का है. दूसरा बिंदु आपसी व्यापार का है. चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है. हमने चीन से 54 अरब डॉलर के आयात किये, जबकि निर्यात मात्र 17 अरब डॉलर के किये.
इस घाटे को पाटने के लिए सरकार ने चीन से आग्रह किया है कि वह भारत में विदेशी निवेश बढ़ाये. गत वर्ष राष्ट्रपति शी चिनपिंग की भारत यात्र के दौरान चीन ने देश में निवेश करने में रुचि दिखायी थी.
भारत चाहता है कि चीन के बाजार को भारतीय निर्यातों के लिए खोला जाये, विशेषकर दवाओं, कृषि उत्पादों एवं सॉफ्टवेयर के लिए, जिससे चीन के साथ व्यापार में संतुलन बने. साथ-साथ भारत चाहता है कि चीन द्वारा भारत में अधिक मात्र में निवेश किया जाये, ताकि भारत के आर्थिक विकास को गति मिले.
हमारी विदेशी मुद्रा के मुख्य स्नेत निर्यात तथा विदेशी निवेश हैं. निर्यातों का पेमेंट हमें डॉलर में मिलता है. विदेशी निवेशक भी भारतीय बैंकों में डॉलर जमा कराते हैं.
इन डॉलरों का उपयोग भारत द्वारा माल का आयात करने के लिए किया जाता है. भारत की पॉलिसी है कि विदेशी निवेश से डॉलर अजिर्त किये जायें और इनका उपयोग तेल, चीनी खिलौनों या अमेरिकी सेब आयात के लिए किया जाये. अत: प्रधानमंत्री मोदी ने चीनी राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि वे भारत में निवेश बढ़ायें.
चीन और भारत की नीति में गहरा अंतर है. चीन द्वारा निर्यातों को बढ़ावा देकर तथा आयातों को महंगा बना कर घरेलू जनता के द्वारा विदेशी माल की खपत को कम किया जाता है. निर्यातों से अजिर्त डॉलर का उपयोग अमेरिका पर वर्चस्व बनाने के लिए किया जा रहा है.
अपनी जनता की खपत कम करके चीन अमेरिका पर अपना दबदबा बना रहा है. दुर्भाग्यवश भारत की नीति इसके विपरीत है. भारत विदेशी निवेशकों को अधिकाधिक मात्र में आकर्षित करके अजिर्त किये गये डॉलर का उपयोग खपत में यानी खिलौने, सेब और तेल खरीदने में कर रहा है. विदेशी निवेश एक प्रकार का ऋण होता है.
भारत सरकार निवेशक को सुनिश्चित करती है कि निवेशक अपनी सुविधानुसार अपनी फैक्ट्री अथवा शेयरों को बेच कर पूंजी को अपने देश वापस ले जा सकते है. भारत सरकार देश को गिरवी रख कर जनता को अमेरिकी सेब खिला रही है, जबकि चीन अपनी जनता की इच्छाओं पर अंकुश लगा कर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अपनी पैठ बना रहा है. इस विलासितापरक विदेश नीति को मोदी का संरक्षण प्राप्त है.
अत: वे चीन से आग्रह कर रहे हैं कि भारत में निवेश बढ़ाये. डर है कि मोदी का देश को सुपर पावर बनाने का सपना कहीं देश को सुपर ऋणी बनाने में तब्दील न हो जाये.
हमें रुपये का अवमूल्यन होने देना चाहिए. रुपया यदि 75 रुपये प्रति डॉलर पर गिर जायेगा, तो आयात स्वत: घटेंगे और निर्यात बढ़ेंगे. वर्तमान में विश्व बाजार में कोयले और तेल के दाम घट रहे हैं. इन गिरे हुए दामों का उपयोग जनता द्वारा खपत बढ़ाने के लिए नहीं करना चाहिए. सरकार को चाहिए कि इन पर भारी ‘ऊर्जा’ टैक्स लगा कर इनके मूल्य बढ़ाये. इस टैक्स के कारण डीजल और बिजली के दाम चढ़ेंगे. तेल और कोयले के बढ़े दाम का छोटे किसान तथा गरीब मतदाता पर विपरीत प्रभाव न पड़े, इसके लिए ऊर्जा टैक्स का वितरण करना चाहिए. देश के हर गरीब परिवार के बैंक खाते में हर माह 1,000 से 2,000 रुपये जमा करा देना चाहिए, ताकि गरीब महंगे माल को पूर्ववत् खरीद सके. ऐसा करने से मोदी की साख बढ़ेगी.
मोदी को चीन द्वारा आकर्षित किये जा रहे विदेशी निवेश से भ्रमित नहीं होना चाहिए. चीन द्वारा जितनी मात्र में विदेशी निवेश लिया जाता है, लगभग उतना विदेशी मुद्रा भंडार बनाया जाता है. जबकि भारत विदेशी निवेशकों से मिली रकम का उपयोग जनता की खपत बढ़ाने के लिए कर रहा है.
अतएव भारत ऋण से दबता जा रहा है. भारत की अर्थव्यवस्था विदेशी निवेशकों के हाथ गिरवी रख दी गयी है. पूर्व में कई बार ऐसा हुआ है कि विदेशी निवेशकों ने बिकवाली की है. फलस्वरूप हमारे शेयर बाजार और रुपया दोनों टूटे हैं. अत: मोदीजी को विदेशी निवेशकों के सम्मोहन से बाहर आना चाहिए. ऋणं कृत्वा घृतं पित्वा से देश सुपर पावर नहीं बनेगा. अत: विदेशी निवेश रूपी ऋण और सस्ते तेल की बढ़ती खपत से बचना चाहिए. सुपर पावर बनने के लिए विश्व अर्थव्यवस्था पर अपना वर्चस्व बनाने की रणनीति बनानी चाहिए.
चीन पर चीन के बाजार को भारतीय निर्यातों के लिए खोलने पर दबाव अवश्य बनाना चाहिए. चीन अपनी नदियों, वायु और भूमि को नष्ट करके सस्ता माल बना रहा है और बाजार पर अपना कब्जा स्थापित कर रहा है. चीन की इस दुष्ट नीति का सामना करने के लिए चीन के सस्ते माल पर ‘पर्यावरण आयात कर’ आरोपित करना चाहिए.