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नकल पर रोक के लिए कड़े कानून की जरूरत

पिछले दिनों बोर्ड परीक्षा में नकल के मामले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तहलका मचा दिया. उससे जुड़े हर सवाल और चिंता वाजिब है कि आखिर कैसा होगा हमारा भविष्य. मूल सवाल है कि आखिर चोरी करनी ही क्यों पड़ती है? कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था में तो खामी नहीं है. इन्हीं सब बातों/ सवालों को हमने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 31, 2015 6:27 AM

पिछले दिनों बोर्ड परीक्षा में नकल के मामले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तहलका मचा दिया. उससे जुड़े हर सवाल और चिंता वाजिब है कि आखिर कैसा होगा हमारा भविष्य. मूल सवाल है कि आखिर चोरी करनी ही क्यों पड़ती है? कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था में तो खामी नहीं है.

इन्हीं सब बातों/ सवालों को हमने इस विशेष श्रृंखला नकल पर नकेल में समेटने का प्रयास किया है. इसी कड़ी में हमने राज्य के कुछ शिक्षाविदों से बात की. इनका मानना है कि इसे रोकने के लिए सख्त कानून होना जरूरी है, पर यह सवाल जितना व्यवस्था से जुड़ा है, उतना ही नैतिकता से भी. काफी हद तक आज की परीक्षा प्रणाली भी इसके लिए दोषी है, जिसमें बच्चे का ज्ञान आंकने से ज्यादा उसे कितने अंक मिले, यह महत्वपूर्ण माना जाता है.

अभिभावक, शिक्षक व समाज हैं जिम्मेवार

नकल के लिए हम शिक्षा प्रणाली को कहीं से दोषी या जिम्मेदार नहीं मानते हैं. इसके लिए बच्चों के अभिभावक, शिक्षक व जिस समाज में रह रहे हैं, वह जिम्मेवार हैं. बच्चों को आरंभ में ही संस्कार देना होगा. एक पिता यदि अपने बच्चे से कहे किसी भी हाल में वह नकल नहीं करे, भले ही वह फेल हो जाये. शिक्षक भी अपनी जिम्मेदारी के साथ बच्चे को सही शिक्षा व ज्ञान दे, तो इससे तकलीफ नहीं होगी. आज अभिभावक ही बच्चों को परीक्षा में नकल करवा रहे हैं.

आरंभ काल में ज्ञान प्राप्त करने के लिए जंगल जाना पड़ता था. आज डिग्री प्राप्त करने के लिए नकल कर रहे हैं. चोरी का ही दूसरा रूप नकल है. शिक्षा प्रणाली में कई कड़े कानून हैं. कानून का पालन होना चाहिए. यदि परीक्षक सजग रहें, तो वह नकल होने पर कार्रवाई कर सकते हैं. सुरक्षा में लगे जवान व पुलिस अधिकारी कड़ाई करे, तो नकल पर रोक लग सकती है. यदि नकल हो भी गया, तो सभी परीक्षार्थियों को जीरो अंक दिया जाये. यानि जब तक सभी लोग अपने कर्तव्य का पालन नहीं करेंगे, तब तक सुधार नहीं आयेगा. आदमी को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा. पिता अपने बच्चों को बतायें कि सत्य बोलने से बड़ा तप नहीं है, झूठ बोलने से बड़ा पाप नहीं है. जो हृदय से सत्य है, उसी के हृदय में ईश्वर है.

डॉ केके नाग, पूर्व कुलपति रांची विवि

शिक्षा प्रणाली को और प्रभावी बनाना होगा

शिक्षा के अधिकार अधिनियम में बच्चों के मूल्यांकन के लिए जो प्रणाली अपनायी गयी है, उसका अक्षरश: पालन नहीं किया जा रहा है. शिक्षा के अधिकार अधिनियम बनाने के दौरान यह देखा गया था कि स्कूल स्तर की परीक्षा में जितने बच्चे भारत में फेल होते हैं, उतना विश्व के किसी देश में नहीं होता.

यह बच्चों के प्रति अन्याय था. इसे देखते हुए शिक्षा के अधिकार अधिनियम में कक्षा आठ तक किसी बच्चे को फेल नहीं करने का प्रावधान किया गया. इसके अलावा बोर्ड परीक्षा को भी वैकल्पिक बनाया गया है. बोर्ड परीक्षा में अंक की जगह ग्रेड देने की बात कही गयी है, पर विभिन्न राज्यों की परीक्षा बोर्ड द्वारा इसे पूरी तरह से प्रभावी नहीं किया गया है.

विभिन्न राज्यों के कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा में 20 से 25 फीसदी तक बच्चे फेल हो जाते हैं. यह बच्चों के साथ अन्याय है. प्रत्येक बच्चों में कुछ न कुछ प्रतिभा होती है. जो अच्छे अंक लाते हैं, वहीं बेहतर कर सकते ऐसी बात नहीं है. देश व राज्य में लागू वर्तमान शिक्षा प्रणाली को नकल के लिए जिम्मेदार तो नहीं माना जा सकता, पर जो प्रणाली लागू है, उसे प्रभावी नहीं बनना परीक्षा में नकल को बढ़ावा दे रहा है. नकल रोकने के लिए हमें अपने सोच में भी बदलाव लाना होगा. अभिभावकों को भी जागरूक होना होगा.

विनय पटनायक, यूनिसेफ झारखंड के शिक्षा विभाग प्रमुख

शिक्षा प्रणाली नहीं, व्यवस्था जिम्मेदार

नकल के लिए वर्तमान शिक्षा प्रणाली नहीं, बल्कि व्यवस्था अधिक जिम्मेदार है. शिक्षा प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए हमारे शिक्षण संस्थानों में आवश्यक संसाधन नहीं है. इससे पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है. बच्चों को बेसिक जानकारी का अभाव है. प्रारंभिक शिक्षा की नीव कमजोर होने के कारण बच्चे आगे भी कमजोर होते चले जाते हैं. शिक्षा व्यवस्था में प्रायोगिक कक्षा व परीक्षा का प्रावधान किया गया है, पर अधिकतर स्कूल-कॉलेजों में प्रायोगिक कक्षा नहीं होती, पर परीक्षा होती है.

ऐसे में जब पढ़ाई ही नहीं होगी, तो बच्चे परीक्षा में जवाब कैसे लिखेंगे. करोड़ों खर्च के बाद भी हम सरकारी शिक्षण संस्थानों को संसाधन युक्त नहीं कर सके. विद्यालय से लेकर कॉलेज तक की स्थिति खराब है. स्कूल-कॉलेजों में प्रयोगशाला व पुस्तकालय नहीं है. जहां है वह भी निर्धारित मापदंड को पूरा नहीं करता. शिक्षक की भी कमी है. जो शिक्षक हैं वह भी निर्धारित योग्यता को पूरा नहीं करते. संसाधन व शिक्षकों की कमी के कारण पढ़ाई प्रभावित हो रही है. पढ़ाई नहीं होने के कारण नकल को बढ़ावा मिल रहा है. राज्य में सबसे खराब स्थिति प्लस टू शिक्षा की है, जबकि प्लस टू किसी भी विद्यार्थी के जीवन का कैरियर प्वाइंट होता है.

डॉ एए खान, पूर्व कुलपति रांची विश्वविद्यालय

नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन भी है जिम्मेवार

परीक्षा में कदाचार किस तरह से व्याप्त है, यह समाचार पत्रों एवं टीवी पर देखने को मिल रहा है. इस बार जिस तरह कदाचार का वीभत्स रूप परीक्षाओं में दिखाई दिया, वैसा कभी देखने को नहीं मिला. एक मंत्री जी गांव में लोगों को संबोधित करने गये. भीड़ कम होने पर मंत्री जी ने पूछा, तो पता चला कि अभी लोग (अभिभावक) नहीं मिल रहे हैं. क्योंकि वे अपने लाडलों की सहायता करने अपना धर्म समझ कर परीक्षा केंद्र पर गये हुए हैं. अब विचारनीय विषय यह है कि इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? जब हम अपने समय की परीक्षाओं को देखते हैं, तो यह नहीं कह सकते हैं कि उस समय परीक्षाएं कदाचार मुक्त थी फिर भी वर्तमान की तरह भयावह स्थिति नहीं थी.

एक तो परीक्षा प्रणाली भिन्न थी. अधिकतर प्रश्न ऐसे पूछे जाते थे, जिनके उत्तर लंबे हुआ करते थे. अभी परीक्षा प्रणाली परिवर्तित हो गयी है. अधिकतर प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में लिखने होते हैं. इन प्रश्नों के उत्तर आसानी से परीक्षार्थियों तक पहुंचाये जा सकते हैं. आज अंकों की महत्ता बढ़ गयी है और नौकरियों में सर्टिफिकेट की मांग की जाती है. तात्पर्य है कि आज की परीक्षा प्रणाली नकल करने के लिए जम्मेदार हैं. लेकिन मेरी समझ में नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन भी इसके लिए जिम्मेदार है.

डीआर सिंह, प्राचार्य, टॉरियन वर्ल्ड स्कूल, रांची

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