ऐसे तो प्यासे रह जायेंगे हम लोग

झारखंड की धरती को कुदरत ने अपार खनिज संपदा और प्राकृतिक संसाधन दिये हैं. इन्हीं प्राकृतिक संपदाओं में से एक बालू भी है. प्रकृति की अथक साधना के बाद बालू का निर्माण होता है. यहां की नदियों में बालू का ढेर है. नदियों का यह बालू जलस्तर को ऊंचा बनाये रखता है. इंसान अपनी जरूरत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 1, 2015 4:45 AM
झारखंड की धरती को कुदरत ने अपार खनिज संपदा और प्राकृतिक संसाधन दिये हैं. इन्हीं प्राकृतिक संपदाओं में से एक बालू भी है. प्रकृति की अथक साधना के बाद बालू का निर्माण होता है. यहां की नदियों में बालू का ढेर है. नदियों का यह बालू जलस्तर को ऊंचा बनाये रखता है.
इंसान अपनी जरूरत के हिसाब से प्रकृति पर निर्भर है. आवश्यकता पड़ने पर जरूरत से भी अधिक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता है. आज झारखंड की नदियों में लगे बालू के ढेर पर सबकी नजर टिकी है. प्रशासन भी इसे राजस्व वसूलने का खजाना मानता है.
कहते हैं कि चीजें एक-दूसरे से जुड़ी रहती हैं. आज झारखंड की नदियों का अस्तित्व खतरे में है. इसकी अहम वजह नदियों से बालू का अंधाधुंध उठाव है. इससे लोगों की जिंदगी प्रभावित हो रही है. नदियों का जलस्तर नीचे जाने के साथ ही उसके आसपास के क्षेत्र का जमीनी जलस्तर भी सैकड़ों मीटर नीचे चला गया है. वैश्विक स्तर पर जलसंकट को लेकर चर्चाएं की जा रही हैं.
आशंका जाहिर की जा रही है कि दुनिया में तृतीय विश्व युद्ध पानी के कारण ही होगा. आज नदियों से बालू के उठाव से उसमें रहनेवाले जीव-जंतु विलुप्त हो रहे हैं, जो प्राकृतिक संतुलन को बनाये रखते हैं. गरमी में भी धरती और जनसमूह के गले को तर करनेवाली प्रवाहित नदियां भी सूखने लगी हैं. नदियों में प्रवाहित जल बालू के अभाव में स्वच्छ नहीं हो पा रहा है, क्योंकि उसे फिल्टर करनेवाली प्राकृति मशीन कम हो रही हैं.
नदियों के सूखते ही आसपास के कुंए भी सूख रहे हैं. हालांकि, रेत खनन संबंधी दिशा-निर्देश भी जारी किये गये हैं, लेकिन उसका अनुपालन नहीं हो रहा है. यदि यही हाल रहा, तब तो हम सभी प्यासे रह जायेंगे.
हेमंत कुमार महतो, बुंडू, रांची

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