अनियोजित विकास और बाढ़ का रिश्ता
जम्मू-कश्मीर में बारिश से बने बाढ़ के हालात बीते सितंबर की याद ताजा कर रहे हैं, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का पूरा मंत्रिमंडल बाढ़ की चपेट में था और उन्हें असहाय होकर कहना पड़ा था कि मेरे मंत्री इस घड़ी कहां हैं, मुङो नहीं मालूम. कटरा, रामबन, बनिहाल, पहलगाम, श्रीनगर, गुलमर्ग, भद्रवाह और डोडा […]
जम्मू-कश्मीर में बारिश से बने बाढ़ के हालात बीते सितंबर की याद ताजा कर रहे हैं, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का पूरा मंत्रिमंडल बाढ़ की चपेट में था और उन्हें असहाय होकर कहना पड़ा था कि मेरे मंत्री इस घड़ी कहां हैं, मुङो नहीं मालूम. कटरा, रामबन, बनिहाल, पहलगाम, श्रीनगर, गुलमर्ग, भद्रवाह और डोडा में बीते दो दिनों में 50 से 140 मिमी के बीच बारिश हुई है.
इतनी बारिश बाढ़ जैसी स्थिति पैदा करने के लिए भले काफी न लगे, पर निर्माण-कार्य के क्रम में पारिस्थितिकी से हुई छेड़छाड़ ने जल निकासी के मार्गो को बाधित कर दिया है. ऐसे में घरों के ढहने, लोगों के दबने और पशुओं के बहने की खबरों के बीच अनियंत्रित विकास-कार्य फिर से सुर्खियां बटोर रहे हैं. जम्मू-कश्मीर में बाढ़ पहले भी आती रही है, पर हाल की बाढ़ में नुकसान ज्यादा हुआ है. इसकी बड़ी वजह है अनियोजित विकास, जिसमें लालचवश नदियों-झीलों के तटवर्ती इलाकों की पारिस्थितिकी का ध्यान नहीं रखा गया. पर्यटकों को प्रिय श्रीनगर का ही उदाहरण लें.
बीते सौ सालों में यहां के 50 प्रतिशत से ज्यादा झील, तालाब और अन्य जलाशय सड़कों व इमारतों के निर्माण में समा गये हैं. मीठे पानी की सबसे बड़ी झीलों में शुमार मशहूर वूलर और डल झील अपने मूल आकार से कई गुना छोटी हो गयी है. ङोलम नदी का कगार भी हड़प का शिकार हुआ है. 1911 में श्रीनगर में झील तथा तालाब सरीखे खुले जलस्नेतों का कुल आकार चार हजार हेक्टेयर था और कुल आद्रभूमि 13,425 हेक्टेयर थी. तब तक कुल 1,745 हेक्टेयर भूमि पर ही निर्माण कार्य हुआ था. लेकिन, बीसवीं सदी के बीतते-बीतते परिदृश्य बदल गया. 2004 में झील व तालाब सरीखे खुले जलस्नेतों का आकार घट कर 3,065 हेक्टेयर हो गया और आद्रभूमि 6,407 हेक्टेयर रह गयी, जबकि निर्माण-कार्य युक्त भूमि 10,791 हेक्टेयर हो गयी.
इससे इलाके में पानी के निकास की प्राकृतिक क्षमता पर भारी असर पड़ा है. अनियंत्रित विकास के बीच यह बात भी ध्यान देने की है कि जम्मू-कश्मीर में बाढ़ के पुर्वानुमान के लिए कोई सुव्यवस्थित तंत्र नहीं है और आपदा से निपटने की तैयारियां भी कुछ खास नहीं हैं. ऐसे में बारिश के बाद जलजमाव जान-माल की भारी क्षति का कारण बन रहा है.