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विलक्षण व्यक्तित्व का सम्मान

पवन के वर्मा सांसद एवं पूर्व प्रशासक चूंकि अटल जी एक गंठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रहे थे, व्यावहारिकता की मांग थी कि राष्ट्रीय मामलों पर वे ऐसा रवैया अपनायें, जिससे उनके गंठबंधन के सहयोगी अलग-थलग न हों. लेकिन, दक्षिणपंथी पार्टी में स्वभाव से ही वे मध्यमार्गी थे. वे मानसिक रूप से उन लोगों […]

पवन के वर्मा

सांसद एवं पूर्व प्रशासक

चूंकि अटल जी एक गंठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रहे थे, व्यावहारिकता की मांग थी कि राष्ट्रीय मामलों पर वे ऐसा रवैया अपनायें, जिससे उनके गंठबंधन के सहयोगी अलग-थलग न हों. लेकिन, दक्षिणपंथी पार्टी में स्वभाव से ही वे मध्यमार्गी थे. वे मानसिक रूप से उन लोगों से खुद को नहीं जोड़ सकते थे, जो धार्मिक घृणा की विभाजक और भड़काऊ भाषा बोलते थे.

शुक्रवार, 27 मार्च को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी शालीनतापूर्वक अटल बिहारी वाजपेयी के निवास पर उन्हें राष्ट्र का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान करने गये थे. इससे भारत गौरवान्वित हुआ है. अगर यह सम्मान यूपीए सरकार द्वारा पहले दिया जाता, तो मुङो व्यक्तिगत रूप से अधिक प्रसन्नता होती. कुछ मामले दलगत राजनीति से परे होते हैं. अटली जी का कद ऐसा है कि उन्हें भारत रत्न दिये जाने के लिए भाजपा के सत्ता में आने का इंतजार नहीं किया जाना चाहिए था.

मुङो अटल जी को उनके प्रधानमंत्री रहते जानने का सौभाग्य और गौरव प्राप्त हुआ था. चूंकि मैं उस समय विदेश मंत्रलय में कार्यरत था, इस कारण कूटनीतिक मसलों पर उनके साथ विचार-विमर्श का अवसर भी प्राप्त हुआ था. लेकिन जिस कारण मैं उनसे व्यक्तिगत रूप से मिला और अकसर मिलता रहा, उसका कूटनीति से कोई लेना-देना नहीं था. अटल जी की इच्छा थी कि मैं उनकी कविताओं का अंगरेजी में अनुवाद करूं. इस संबंध में बातचीत करने के लिए प्रधानमंत्री निवास पर हुई बैठक को मैं कभी नहीं भूल सकता. रात के करीब आठ बजे थे, वे अपने चिर-परिचित पोशाक धोती-कुरते में औपचारिक अतिथि कक्ष में बैठे थे. जब उन्होंने अपना निवेदन रखा, तो मैंने कहा कि मुङो यह करने में बड़ी प्रसन्नता होगी, पर मेरी तीन शर्ते हैं. उन्होंने कहा, ‘कहिये’, और उनकी आंखें उस चमत्कारिक तरीके से चमक उठीं, जिसे उनसे मिलनेवाला कभी विस्मृत नहीं कर सकता.

मैंने कहा कि मैं उनकी ‘राजनीतिक’ कविताएं अनुदित करना पसंद नहीं करूंगा; दूसरा, बची हुई कविताओं में चयन मैं करूंगा; और अंतिम यह कि उन्हें तुरंत ‘हां’ नहीं करना चाहिए और निर्णय से पहले मेरे कुछ अनुवादों को देख लेना चाहिए. फिर, उनकी आंखों में चमक उभरी, और चेहरे पर मुस्कान लिये उन्होंने बस यही कहा, ‘मंजूर है’. और हुआ यह कि हिंदी में ‘इक्यावन कविताएं’ शीर्षक की मूल पुस्तक पेंग्विन द्वारा अंगरेजी संस्करण में ‘21 पोएम्स’ के नाम से छपी. पुस्तक के विमोचन के अवसर पर उन्होंने मेरी प्रति में अपने हाथों से लिखा : ‘पवन ने मेरी कविताओं का अनुवाद किया और उन्हें अधिक अर्थपूर्ण बना दिया’.

अटल जी के व्यक्तिगत संपर्क में आये लगभग हर किसी के पास उनके व्यक्तित्व की असाधारण गर्मजोशी के बारे में एक-दो कहानियां बताने के लिए जरूर होंगी. लगाव, परिहास, हाजिरजवाबी, हास्य, व्यंग्य और सुलभता के उनके गुण संयुक्त रूप से उन्हें उल्लेखनीय तौर पर आकर्षक व्यक्ति बनाते थे. परंतु, भारत रत्न पर उनका दावा इनसे अधिक ठोस कारणों पर आधारित है. पहला, वे अत्यंत उत्कृष्ट सांसद थे. भारत के लोकतांत्रिक वाद-विवाद के विकास में पांच दशकों तक उन्होंने जिस तरह से योगदान दिया, उसकी तुलना में बहुत कम उदाहरण मिलते हैं.

जब वे बोलते थे, तो सदन- और राष्ट्र- सुनता था, क्योंकि वे संतुलन और सत्व के साथ बोलते थे तथा जान-बूझ कर तीक्ष्ण और सतही दलीय भावना को दबा जाते थे, जो कि अब संसदीय बहसों की मुख्य विशेषता बनती जा रही है. अर्थभरे ठहरावों और महीन भाषिक दक्षता से लबरेज उनकी वक्तृत्व कला किसी भी श्रोता को मंत्रमुग्ध कर सकती थी. पहले जनसंघ, और फिर भारतीय जनता पार्टी के नेता के तौर पर वे मजबूत आलोचक हुआ करते थे.

लेकिन उन्होंने मसलों के गुण-दोषों के आधार पर अपना पक्ष रखा, और जब भी उन्हें लगा कि कोई मसला देशहित में है, तो उन्होंने सरकार का समर्थन किया. उन्होंने 1971 में पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध में उनके नेतृत्व के लिए इंदिरा गांधी की प्रशंसा की जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ था. उन्होंने नरसिम्हा राव और डॉ मनमोहन सिंह का समर्थन किया, जब वे 1991 में आर्थिक सुधारों की ओर उन्मुख हो रहे थे. वे एक ऐसे नेता थे, जिनके लिए राष्ट्र पहले था, और राजनीतिक लाभ बाद में.

दूसरा, प्रधानमंत्री के रूप में, अटल जी की ऐतिहासिक भूमिका इस कोशिश में थी कि भाजपा को मुख्यधारा में लाया जाये. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विस्तृत संघ परिवार के रूढ़िवादी तत्वों को नियंत्रण में रखा, जिसके व्यावहारिक और ठोस कारण थे. चूंकि वे एक गंठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रहे थे, व्यावहारिकता की मांग थी कि राष्ट्रीय मामलों पर वे ऐसा रवैया अपनायें, जिससे उनके गंठबंधन के सहयोगी अलग-थलग न हों. लेकिन, दक्षिणपंथी पार्टी में स्वभाव से ही वे मध्यमार्गी थे. वे मानसिक रूप से उन लोगों से खुद को नहीं जोड़ सकते थे, जो धार्मिक घृणा की विभाजक और भड़काऊ भाषा बोलते थे.

यह सही है कि वे लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राम जन्मभूमि अभियान शुरू किये जाने के निर्णय में शामिल थे, किंतु यह बहस का विषय है कि वे बाबरी मसजिद के विध्वंस के पक्ष में थे या नहीं. इसी तरह 2002 में गुजरात नरसंहार के समय उन्होंने नरेंद्र मोदी को राजधर्म निभाने की सलाह दी थी, हालांकि बाद में उन्होंने दबाव के कारण उनके मुख्यमंत्री बने रहने पर सहमति दे दी थी. आलोचक कह सकते हैं कि उन्हें झुकना नहीं चाहिए था, पर कुछ ही लोग इस पर संदेह करेंगे कि राजधर्म निभाने की उनकी सलाह सही थी.

तीसरा, एक स्तर पर, अटल जी की क्षमता यह थी कि वे अपनी पार्टी और संघ को पार कर सके थे. यह क्षमता विद्रोह में परिणत नहीं हुई, पर यह प्रतिबद्धता के उनके व्यक्तिगत साहस को भी न बुझा सकी. हल्के-फुल्के अंदाज में एक और व्यक्तिगत संस्मरण सुनाने की अनुमति लेते हुए बताना चाहूंगा कि एक बार गुनु (उनकी दत्तक पुत्री) कहीं मुझसे मिलीं और कहा कि बाप जी (अटल जी के लिए संबोधन) कह रहे थे कि ‘पवन जी तो अब हमारी स्पीच लिखते नहीं हैं. शायद वो हमारी पार्टी से नाराज हैं. तो उनसे कहना कि हम अपनी पार्टी से कौन-सा बहुत खुश हैं!’ उनकी विनोदप्रियता, उनकी प्रतिबद्धता और उन्हें छोट दिखानेवाले लोगों की तुलना में उनके निश्चित बड़प्पन पर आधारित उनकी ऐसी टिप्पणियां उन्हें बाकियों से मजबूती से ऊंचे स्तर पर स्थापित करती हैं.

अटल जी की कविताओं को अनुदित करने के दौरान मुङो साइप्रस में उच्चायुक्त के रूप में पदस्थापित कर दिया गया. जाने से पहले मैं उनसे विदा लेने गया, तो उन्होंने रहस्यात्मक अंदाज में कहा : ‘आप चलिए, मैं आता हूं.’ मैंने तब उनकी टिप्पणी को गंभीरता से नहीं लिया था, लेकिन अगले वर्ष न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की बैठक में जाते हुए अटल जी साइप्रस की राजकीय यात्रा पर आये. जब मैंने उनकी आगवानी की, तो उन्होंने बड़ी मुस्कुराहट के साथ कहा : ‘मैंने अपना वादा पूरा किया’. अटल जी को भारत रत्न का सम्मान देकर राष्ट्र ने उनसे किया हुआ अपना विलंबित वादा पूरा किया है.

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