मेरा सिर झुका है झुका ही रहेगा..
पंकज कुमार पाठक प्रभात खबर, रांची मैं कुछ ऐसे लोगों को जानता हूं, जो मुझसे मिलते हैं तो मेरे सामने अपना सिर झुकाये खड़े रहते हैं या बैठे रहते हैं. बातचीत में भी सिर झुका कर ही बात करते हैं. नहीं.. नहीं.. आप गलत समझ रहे हैं. मैं कोई पुलिस अफसर, बड़ा नेता या किसी […]
पंकज कुमार पाठक
प्रभात खबर, रांची
मैं कुछ ऐसे लोगों को जानता हूं, जो मुझसे मिलते हैं तो मेरे सामने अपना सिर झुकाये खड़े रहते हैं या बैठे रहते हैं. बातचीत में भी सिर झुका कर ही बात करते हैं. नहीं.. नहीं.. आप गलत समझ रहे हैं. मैं कोई पुलिस अफसर, बड़ा नेता या किसी रियासत का राजकुमार नहीं हूं.
ऐसा भी नहीं है कि मुझसे मिलनेवाले लोगों में आत्मसम्मान नहीं है. दरअसल, मैं जिन लोगों की बात कर रहा हूं, वो स्मार्टफोन यूजर्स हैं. ऐसे लोग सिर्फ मेरे सामने ही नहीं, किसी के भी सामने, चाहे वो दरवाजे पर खड़ा भिखारी हो, ठेले पर सब्जी बेचने वाला हो या फुटपाथ दुकानदार, अपना सिर झुकाये ही खड़े रहते हैं.
मुझे यकीन है, आप भी कई ऐसे ‘कट्टर’ स्मार्टफोन यूजर्स को जानते होंगे, जिन्हें देख कर आपका दिल कहता होगा कि ये लोग सर कटा सकते हैं, लेकिन सर उठा सकते नहीं. मेरे एक मित्र, जिन्हें प्यार से मैं ‘मोबाइल गुरु’ कहता हूं, वह स्मार्टफोन का जिक्र करते हुए, प्रवचन देने के अंदाज में कहते हैं कि ‘‘इस स्मार्टफोन युग में वही आदमी धरती पर सिर उठा के खड़ा हो सकता है या चल सकता है, जिसके पास स्मार्टफोन नहीं है.’’
स्मार्टफोन यूजर्स का सिर हर समय ऐसे झुका रहता है, जैसे भगवान ने उन्हें आंखें सिर्फ नीचे देखने के लिए ही दी हों. ऐसे स्मार्टफोन ‘पीड़ितों’ को नहाने के बाद अपने बालों में कंघी भी करनी होती है, तो पहले अपनी जेब से समार्टफोन निकालते हैं. फ्रंट कैमरे (सेल्फी कैमरा) की मदद से अपना चेहरा अपने स्मार्टफोन के स्क्रीन पर देखते हैं, फिर बालों में कंघी करते हैं. स्मार्टफोन, 21वीं सदी के लोगों की सबसे बड़ी और पहली जरूरत बन गया है. आज आदमी भीख मांग कर खा सकता है, किराये के मकान में रह सकता है, लेकिन स्मार्टफोन के बिना एक पल नहीं जी सकता. स्मार्टफोन यूजर, भीड़भाड़ वाली सड़कों पर भी बेखौफ, सिर झुकाये अपनी ही धुन में ऐसे चलता है, जैसे किसी खुले मैदान में अकेला घूम रहा हो. दरअसल, यह जमाना बिन स्मार्टफोन सब सून का है. भूख-प्यास, घर-परिवार, पास-पड़ोस एक तरफ और स्मार्टफोन एक तरफ.
स्मार्टफोनधारक, ब्लड प्रेशर ‘लो’ हो जाने से परेशान नहीं होता, लेकिन फोन की बैटरी ‘लो’ होने पर बैचैन हो जाता है. कम ही लोग जानते हैं कि आज की ‘मार्डन मॉम’ यानी आधुनिक माताएं, अपने बच्चों को लोरी सुना कर नहीं सुलाती, बल्कि अपने स्मार्टफोन पर हनी सिंह के गाने बजा कर सुलाती हैं.
स्मार्टफोन को अपनी उंगलियों पर नचानेवाले ये ‘बेवकूफ’ नहीं जानते कि असल में स्मार्टफोन ने ही इन्हें अपना गुलाम बना रखा है. हालांकि कई ऐसे ‘स्मार्ट’ लोग भी हैं, जो स्मार्टफोन को जरूरत के हिसाब से ही इस्तेमाल करते हैं. ऐसे लोग आज की दुनिया में सिर्फ महान नहीं, बल्कि ‘पूज्यनीय’ है. इनसे हमें सीखना चाहिए.