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यूजीसी को समाप्त करने से पहले सोचें

लगता है योजना आयोग की तरह यूजीसी भी इतिहास बननेवाला है. यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष हरि गौतम की अध्यक्षता में बनी एक समिति ने सिफारिश की है कि इसमें सुधार के कदम कारगर नहीं होंगे, इसलिए यूजीसी को खत्म कर एक राष्ट्रीय उच्च शिक्षा प्राधिकरण बनाया जाये. समिति ने नये प्राधिकरण की विस्तृत रूपरेखा पेश […]

लगता है योजना आयोग की तरह यूजीसी भी इतिहास बननेवाला है. यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष हरि गौतम की अध्यक्षता में बनी एक समिति ने सिफारिश की है कि इसमें सुधार के कदम कारगर नहीं होंगे, इसलिए यूजीसी को खत्म कर एक राष्ट्रीय उच्च शिक्षा प्राधिकरण बनाया जाये.
समिति ने नये प्राधिकरण की विस्तृत रूपरेखा पेश नहीं की है, लेकिन कहा है कि जब तक प्राधिकरण नहीं बन जाता, उच्च शिक्षा की गुणवत्ता बनाये रखने और विश्विद्यालयी तंत्र के बीच समन्वय का काम खुद मानव संसाधन मंत्रलय प्रशासनिक आदेशों के जरिये कर सकता है. समिति की ऐसी सिफारिश आशंका जगाती है कि विश्वविद्यालय कहीं संविधान प्रदत्त स्वायत्तता तात्कालिक तौर पर खो न दें और उच्च शिक्षा की प्राथमिकताएं सीधे-सीधे नयी सरकार के वैचारिक रुझान से न तय होने लगें. समिति की कुछ अन्य सिफारिशें इस आशंका को बल देती हैं.
मसलन, सिफारिश है कि वीसी की नियुक्ति के लिए न्यूनतम 10 साल तक प्रोफेसर के पद पर अध्यापन के मानक को समाप्त किया जाये और विश्वविद्यालयों में योग-ध्यान के विभाग खोले जायें. इसमें शक नहीं कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता की बहाली के काम को यूजीसी कारगर ढंग से नहीं कर पा रहा है और इसका कामकाज विवादों में रहा है. विश्व के श्रेष्ठ 100 विश्वविद्यालयों में भारत का कोई विश्वविद्यालय शुमार नहीं है.
थोक में खुलते निजी व डीम्ड विश्वविद्यालयों की शिक्षा की गुणवत्ता की निगरानी का कारगर तंत्र भी यूजीसी के पास नहीं है. परंतु, शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट या विश्वविद्यालयी तंत्र में भ्रष्टाचार को आधार बना कर यूजीसी को खत्म करना कुछ वैसा ही कहलायेगा, जैसे मर्ज को लाइलाज मान कर मरीज को ही खत्म कर देना.
यह बात सौ दफे सोची जानी चाहिए कि लोकतंत्र संस्थाओं और प्रक्रियाओं के सहारे चलता है और संस्थाओं-प्रक्रियाओं को बनाने तथा उन पर लोगों का भरोसा कायम करने में बरसों लग जाते हैं. यह भी सोचा जाना चाहिए कि जिन विफलताओं का कारण यूजीसी को बताया जा रहा है, कहीं उनका संबंध उच्च शिक्षा संबंधी नीतियों से भी तो नहीं? जब तक उच्च शिक्षा संबंधी नीतियों पर एक व्यापक बहस नहीं हो जाती, अच्छा होता कि यूजीसी को ही वक्त के अनुरूप कारगर बनाने के उपाय किये जाते.

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