सवाल गंगा-जमुनी तहजीब का है

।।चौरासी कोसी यात्रा।।एक ऊंघता-सा शांत शहर है अयोध्या. जानकार बताते हैं कि रामजन्मभूमि मुहिम से पहले इस शहर के आसमान पर सांप्रदायिक तनाव के काले बादल शायद ही कभी छाये थे. बाबरी मसजिद के विध्वंस के बाद उठे सांप्रदायिक गुबार को भी इस शहर ने जल्द ही जज्ब कर लिया और अपनी पुरानी रौ में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 26, 2013 2:11 AM

।।चौरासी कोसी यात्रा।।
एक ऊंघता-सा शांत शहर है अयोध्या. जानकार बताते हैं कि रामजन्मभूमि मुहिम से पहले इस शहर के आसमान पर सांप्रदायिक तनाव के काले बादल शायद ही कभी छाये थे. बाबरी मसजिद के विध्वंस के बाद उठे सांप्रदायिक गुबार को भी इस शहर ने जल्द ही जज्ब कर लिया और अपनी पुरानी रौ में लौट आया. पिछले साल जब बाबरी विध्वंस के बीस वर्ष पूरे होने पर देश के मीडिया का ध्यान एक बार फिर अयोध्या की ओर गया, तो उम्मीदों के विपरीत यह शहर सरयू की मंद लहरों के समान अपनी ही लय में खोयी किसी प्राचीन नगरी के रूप में दुनिया से रू-ब-रू हुआ था. लेकिन, अयोध्या शहर की यह लय धर्म के नाम पर राजनीतिक रोटी सेंकनेवालों को रास नहीं आती है. बार-बार यह कोशिश की जाती है कि इस लय को भंग कर एक सांप्रदायिक ज्वार पैदा किया जाये, जिस पर सवारी करके प्रदेश और केंद्र की सत्ता की ओर छलांग लगायी जा सके.

विश्व हिंदू परिषद द्वारा रविवार को अयोध्या से चौरासी कोसी यात्रा शुरू करने की बहुप्रचारित कवायद को ऐसी ही एक कोशिश कहा जा सकता है. यह कवायद अपने भीतर भविष्य के कुछ अहम संकेतों को छिपाये हुए है. हालांकि, हमारे देश का संविधान हर नागरिक को अभिव्यक्ति, शांतिपूर्ण सम्मेलन और धर्म को मानने की स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह स्वतंत्रता शर्तो के अधीन है. लोक-व्यवस्था को बहाल रखने के लिए इस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है. उत्तर प्रदेश की सपा सरकार द्वारा इस यात्र पर प्रतिबंध लगाने के पीछे की राजनीतिक मंशा से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन सच यह भी है कि इलाहाबाद हाइकोर्ट ने भी यूपी सरकार के इस फैसले को सही ठहराया था.

हाइकोर्ट के निर्देश के बाद भी जिस तरह विहिप के शीर्ष नेता- अयोध्या से चौरासी कोसी यात्रा शुरू करने को लेकर आक्रामक रूप से प्रतिबद्ध दिखे, उससे इस संदेह का गहराना लाजिमी है कि इस यात्रा के आयोजन के पीछे एक सुनियोजित राजनीतिक मंशा काम कर रही है, जिसका मकसद यूपी के समाज का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना है. 2014 के लोकसभा चुनाव में इस ध्रुवीकरण से किसे फायदा पहुंच सकता है, यह किसी से छिपा नहीं है. संभव है, आनेवाले समय में हम ऐसी और कोशिशों और जवाबी कोशिशों का दौर देखें. यह सही है कि आज की राजनीति नैतिकताओं से बेपरवाह है, लेकिन देश के आम आदमी को ऐसी कोशिशों के पीछे की नीयत पर जरूर गौर करना चाहिए और यह भी समझना चाहिए कि देश की गंगा-जमुनी तहजीब हर कीमत पर रक्षा की जानेवाली धरोहर है. इसे हम स्वार्थी राजनीति के हाथों गिरवी नहीं रख सकते.

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