एक राज की बात बताता हूं. मैं बड़ा ही डरपोक इनसान हूं. सच बोल रहा हूं भाई. देखो न, भारत सेमीफाइनल में हार कर वल्र्ड कप से बाहर हुआ, तो मुझमें हिम्मत ही नहीं थी कि हार को पचा सकूं. यह तो भला हो अनुष्का शर्मा का कि वह फाइनल मैच देखने पहुंच ही गयी और मुङो बहाना मिल गया हार का ठीकरा उनके सिर पर फोड़ने का.
मैं कभी इस बात को नहीं मानना चाहता कि हमारी टीम अपनी गलतियों की वजह से या महज इत्तफाक की वजह से हारी. मैं कभी यह भी नहीं मानना चाहूंगा कि अनुष्का अपना रिश्ता निभाते हुए विराट कोहली का उत्साह बढ़ाने ऑस्ट्रेलिया पहुंचीं. पता नहीं क्यों मुङो सच्चई से इतना डर क्यों लगता है? मैं अपनी लेन में गाड़ी नहीं चलाता. और अगर कोई मेरी गाड़ी को धक्का मार देता है, तो अपनी गलती माने बिना मैं उससे लड़ पड़ता हूं, लेकिन अंदर से मैं डरा हुआ रहता हूं कि कहीं मुङो अपनी गलती अंत में स्वीकार न करनी पड़े. मैं कर चोरी करता हूं.
बिजली का बिल समय पर नहीं भरता. पानी बरबाद करता हूं.. लेकिन मुझमें अपनी गलती पर शर्मिदा होने का साहस नहीं है. मैं अपनी गलतियों पर परदा डालने के लिए सरकार और प्रशासन को दोषी ठहराने को तैयार हूं, पर मुझसे खुद को दोषी मानने को मत कहिए क्योंकि मैं बड़ा ही डरपोक हूं. मुङो दूसरों की पीठ पीछे उनकी बुराई करना पसंद है. खुद को ऊंचा और दूसरों को नीचा बताने में मुङो बड़ा आनंद आता है, लेकिन उनके सामने उनके बारे में बुरा बोलने की मुझमें हिम्मत नहीं है. उनके पीछे मैं उनकी कितनी ही निंदा क्यों न कर लूं, लेकिन उनके सामने मैं ऐसे पेश आता हूं कि जैसे मेरे से बड़ा उनका शुभचिंतक कोई और है ही नहीं. सच में मैं बड़ा ही डरपोक हूं. मैं मेहनत नहीं करता. मन लगा कर पढ़ाई नहीं करता. परीक्षा में फेल हो जाता हूं.
फिर भी मुङो खुद पर अफसोस करने में डर लगता है. इस डर की वजह से मैं स्कूल को, शिक्षाकों को या फिर कठिन प्रश्नपत्रों को ही दोषी ठहरा देता हूं. मैं लड़कियों को छेड़ता हूं. उनके साथ दुष्कर्म करता हूं. उन पर तेजाब फेंकता हूं, लेकिन फिर भी अपने डर की वजह से मैं उन्हें ही दोषी ठहराता हूं कि वे छोटे-छोटे कपड़े पहन कर मुङो उकसा रही थीं. छेड़ने पर उन्हें मेरा विरोध नहीं करना चाहिए था, इसलिए मैंने उन पर तेजाब फेंक दिया. सच में बहुत डर लगता है मुङो. मैं केवल बेटा चाहता हूं. मुङो बेटी नहीं चाहिए. बेटी हो भी गयी, तो मैं बस उसे किसी तरह बड़ा कर उसकी शादी कर देना चाहता हूं. उसकी पसंद-नापसंद की मुङो परवाह नहीं. समाज में बस मेरी नाक बची रहनी चाहिए, क्योंकि डर की वजह से मैंने अपनी इज्जत को सिर्फ अपनी बेटी से जोड़ दिया है. चाहे इसके लिए उसकी आजादी ही क्यों न छिन जाये. उसका जीवन नरक ही क्यों न बन जाये. मुझमें अपनी कमियों को देखने को हिम्मत नहीं. मेरी ये सब बातें प्लीज किसी को बताना मत. आखिर मैं एक डरपोक इनसान जो ठहरा.
शैलेश कुमार
प्रभात खबर, पटना
shaileshfeatures@gmail.com