।। अवधेश कुमार ।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
घटनाओं के तीव्र संवेग के इस दौर में हमारे आस–पड़ोस की कई घटनाएं अपने महत्व के अनुरूप सुर्खियां नहीं बन पातीं. उसमें भी यदि मामला चीन और पाकिस्तान से संबंधित हो, तो हमारे यहां उस पर विचार करने का दृष्टिकोण प्राय: अलग हो जाता है.
चीनी सेना द्वारा हाल में घुसपैठ करने के कारण चीन हमारे लिए एक खलनायक बन रहा है, इसलिए वहां की ऐसी घटनाओं की भी पर्याप्त चर्चा नहीं हो रही, जो हमें सीख दे सकती हैं.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व वरिष्ठ नेता बो शिलाई पर 22 से 26 अगस्त तक जिनान शहर की अदालत में चला रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग का ‘ओपन ट्रायल’ ऐसा ही है. अभी इसका फैसला आना है. चीन में कम्युनिस्ट सत्ता के इतिहास में यह अपनी तरह का पहला मुकदमा है.
इसे पूरा चीन गहरी दिलचस्पी से देख रहा है और वहां इसकी व्यापक चर्चा हो रही है. हालांकि पश्चिमी दुनिया और चीन के अपने चरित्र के कारण अनेक विश्लेषक इसे कम्युनिस्ट नेतृत्व के सत्ता संघर्ष की परिणति मान रहे हैं, पर तटस्थ नजरिये से देखनेवाले बो पर लगे आरोप सच के करीब मान रहे हैं.
बीते पांच वर्षो से चीन की सत्ता संभालने वाली कम्युनिस्ट पार्टी ने संगठन से लेकर शासन तक फैल चुके भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग को सार्वजनिक चर्चा का विषय बनाया है. आरोपियों के खिलाफ मुदकमे चल रहे हैं, सजाएं हुई हैं. इसके लिए कानून बदले गये हैं, निर्णय प्रक्रिया में सुधार हो रहा है.
पिछले महीने ही पूर्व रेल मंत्री लियु झिजुन को भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग का दोषी करार देते हुए बीजिंग की एक अदालत ने मौत की सजा सुनायी. लियु झिजुन या बो शिलाई ऐसे इक्के–दुक्के शख्स नहीं हैं, जिनको जांच और न्यायिक प्रक्रिया का सामना करना पड़ा है. निचले स्तर से लेकर शीर्ष तक ऐसे नेताओं, अधिकारियों की एक लंबी सूची है.
चोंगकिंग में कम्युनिस्ट पार्टी के मुखिया रहे बो शिलाई पर लगे आरोपों में उनकी पत्नी के अलावा उनके कुछ पूर्व सहयोगी और पूर्व सुरक्षा प्रमुख रहे वांग लिजुन भी उनके खिलाफ गवाही दे रहे हैं.
उन पर एक ब्रिटिश व्यापारी नील हेवुड की हत्या की दोषी पायी गयी अपनी पत्नी गू काईलाई को बचाने के लिए पद का दुरुपयोग का आरोप लगा है. इसी के खुलासे के बाद ही शिलाई के कारनामों की पोल खुली. काईलाई को हेवुड की हत्या के जुर्म में मौत की सजा सुनायी गयी है.
काईलाई ने स्वीकारा कि हेवुड उनके बेटे बो गुआगुआ के लिए खतरा बन सकते थे. वांग को सत्ता के दुरुपयोग, हत्यारोपी को बचाने व रिश्वतखोरी के आरोप में 24 सितंबर, 2012 को 15 साल जेल की सजा सुनायी जा चुकी है. इससे पहले फरवरी, 2012 में वांग लुजिन ने चेंगदू में अमरीकी वाणिज्य दूतावास में अचानक शरण लेकर पूरे देश को भौंचक कर दिया था. इसके बाद मामले ने इतना तूल पकड़ा कि उसकी जद में बो को आना ही था.
बो पर गबन व भ्रष्टाचार से संपत्ति बनाने के आरोपों के तहत सबसे बड़ा आरोप उनकी पत्नी के खाते में पहुंची 50 लाख युआन (करीब पांच करोड़ रुपये) का मामला है. उस रकम की जांच में पाया गया कि यह डालियन सिटी में एक निर्माण परियोजना के लिए दी गयी घूस की रकम है. इसमें डालियन के पूर्व शहर नियोजन निदेशक वांग झेंगगेंग ने बो शिलाई के विरुद्ध गवाही दी.
वरिष्ठ नेता बो शिलाई को कम्युनिस्ट पार्टी में तेजी से उभरनेवाला शक्तिशाली नेता माना जाता था. 64 वर्षीय बो पार्टी की चोंगकिंग ईकाई के प्रमुख व कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य थे. माना जा रहा था कि उन्हें पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति में शामिल किया जायेगा.
उन्हें अपराध पर लगाम लगाने और पार्टी में पुराने मूल्यों को बढ़ाने के लिए जाना जाता है. परंतु यह कहना उचित नहीं होगा कि उन्हें वर्तमान चीनी नेतृत्व ने जानबूझकर फंसाया है. उन पर जो भी मामले हैं, वे सभी लगभग स्पष्ट हैं.
इसे चीनी नेतृत्व द्वारा सरकार एवं संगठन में घर कर चुके भ्रष्टाचार, अनैतिकता और सत्ता के दुरुपयोग का अंत करने के संकल्प के रूप में देखा जाना चाहिए. यही संकल्प चीनी राष्ट्र का चरित्र है, जिसे साधारण शब्दों में इस तरह व्यक्त किया जा सकता है– एक बार जो निश्चय किया तो फिर उसको हर हाल में साकार करना ही है, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े. भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई उसी संकल्प का अंग है.
उसकी चपेट में जितने भी बड़े नेता, मंत्री और अधिकारी आयेंगे, उनके खिलाफ जांच और कार्रवाई होगी. खैर, अभी फैसला बाकी है. वास्तव में इसे शंका की दृष्टि से देखने की बजाय भारत जैसे भ्रष्टाचार के दावानल में जल रहे देश को एक सीख के रूप में लेना चाहिए.