हार के बाद ही आत्ममंथन क्यों?

एक पुराना गाना ‘जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला’ याद आ गया. यह गीत आज की पारिवारिक परिस्थतियों तथा राजनीति में भी सटीक बैठता है. क्या कारण था कि आजादी के बाद एक ही पार्टी इतने दिनों तक सत्ता में रही तथा बाद में उसकी साख गिर गयी? उसकी यह साख […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 7, 2015 1:36 AM

एक पुराना गाना ‘जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला’ याद आ गया. यह गीत आज की पारिवारिक परिस्थतियों तथा राजनीति में भी सटीक बैठता है. क्या कारण था कि आजादी के बाद एक ही पार्टी इतने दिनों तक सत्ता में रही तथा बाद में उसकी साख गिर गयी?

उसकी यह साख सिर्फ पार्टी के नाम पर नहीं, बल्कि काम के दम पर अब तक टिकी रही. चहुंमुखी विकास के लिए पहले के नेताओं ने काफी कुछ किया. देश का उत्थान उनके लिए सर्वोपरि था. नींव मजबूत होने से हमारा देश आजत् ाक आगे बढ़ता रहा. आज राजनेताओं का नैतिक पतन हो गया है. भ्रष्टाचार व स्वार्थ की भावना हावी हो गयी है. कथनी और करनी में भारी अंतर आ गया है. हार के बाद नेता आत्ममंथन के बदले शासनकाल में ही विचार-विमर्श हो जाना चाहिए था. आखिर हार के बाद आत्ममंथन क्यों?

उदय चंद्र, रांची

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