खाद्य सुरक्षा के कुछ शेष प्रश्न!
खाद्य सुरक्षा बिल के कानून की शक्ल लेने के लिए अभी उसका राज्यसभा में पारित होना शेष है, पर संसद के राजनीतिक गणित को देखते हुए कह सकते हैं कि लोकसभा में पारित होने के साथ इसकी राह तैयार हो गयी है. इसमें देश की 67 फीसदी आबादी यानी करीब 82 करोड़ लोगों को प्रतिमाह […]
खाद्य सुरक्षा बिल के कानून की शक्ल लेने के लिए अभी उसका राज्यसभा में पारित होना शेष है, पर संसद के राजनीतिक गणित को देखते हुए कह सकते हैं कि लोकसभा में पारित होने के साथ इसकी राह तैयार हो गयी है. इसमें देश की 67 फीसदी आबादी यानी करीब 82 करोड़ लोगों को प्रतिमाह प्रतिव्यक्ति 5 किलो अनाज (चावल, गेहूं और मोटा अनाज) बतौर अधिकार अनुदानित मूल्य पर देने का प्रावधान है.
हालांकि केंद्र सरकार ने इस पर संसद की राय को महत्वपूर्ण न मानते हुए उसे अध्यादेश के रूप में लागू करने की हड़बड़ी दिखायी. अब लोकसभा में बहस के दौरान बिल की खूबियों के साथ-साथ खामियां भी सामने आ गयी हैं. इतनी बड़ी आबादी को अधिकार मान कर खाद्य-सुरक्षा देने के मामले में यह दुनिया की सबसे महत्वाकांक्षी योजना है. बिल में यह भी माना गया है कि शिशुओं, गर्भवती स्त्रियों, दुग्धपान करानेवाली माताओं और स्कूली बच्चों को पोषणगत सुरक्षा पाने का अधिकार है. यह भी बिल का एक उज्जवल पक्ष है. पर उपार्जन, भंडारण और वितरण से लेकर अवधारणा तक बिल में ढेरों कमियां भी हैं.
मसलन, सरकार ने कैसे मान लिया कि 33 फीसदी आबादी को खाद्य-सुरक्षा पाने का अधिकार नहीं है? जिस आबादी को छांटने की बात है, उसकी पहचान किन मानकों के आधार पर होगी? 82 करोड़ आबादी को खाद्य-सुरक्षा देने के लिए जितना खाद्यान्न भंडार होना चाहिए, उतने अनाज भंडारण की सुविधा भी देश में नहीं है.
फिर, प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह पांच किलो अनाज का मानक स्वयं में अपर्याप्त कहा जायेगा. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के मानदंड के हिसाब से सेहतमंद रहने के लिए व्यस्क व्यक्ति को प्रतिमाह 14 किलो और बच्चे को 7 किलो अनाज का भोजन मिलना चाहिए. यह बिल माताओं और शिशुओं को खाद्य-सुरक्षा देने की बात कहता है, पर इसे प्रति माता सिर्फ दो संतानों तक सीमित किया गया है. बिल बेघर-बेसहारा बुजुर्गो, एकाकी विधवा महिलाओं, आप्रवासियों व गंभीर बीमारी से पीड़ित बेसहारा लोगों की खाद्य-सुरक्षा के बारे में भी चुप है. सरकार का इरादा अनाज न दे पाने की सूरत में लोगों को नकदी देने का भी है, जिसका पुरजोर विरोध खाद्य-सुरक्षा के पक्ष में आंदोलनरत संगठनों ने किया है. बेहतर होता कि बिल की ज्यादातर कमियों को दूर करने की कोशिश की जाती और बाकी पार्टियों के सुझावों पर भी गौर किया जाता. बहरहाल, बिल अपने मौजूदा स्वरूप में देश से कुपोषण भले दूर न कर पाये, लेकिन भुखमरी दूर करने की दिशा में इसे सराहनीय और साहसिक कदम तो कहा ही जायेगा.