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कॉरपोरेट धोखाधड़ी रोकने की चुनौती

वित्तीय घपले में सत्यम कंप्यूटर के बी रामालिंगा राजू समेत 10 लोगों को दंडित करने के निर्णय से यह उम्मीद जगी है कि बड़े उद्योगपति भी गलती करने पर कानून के शिकंजे में आ सकते हैं. इस घपले को देश की सबसे बड़ी कॉरपोरेट धोखाधड़ी माना जाता है, जिसमें राजू ने कंपनी के हिसाब में […]

वित्तीय घपले में सत्यम कंप्यूटर के बी रामालिंगा राजू समेत 10 लोगों को दंडित करने के निर्णय से यह उम्मीद जगी है कि बड़े उद्योगपति भी गलती करने पर कानून के शिकंजे में आ सकते हैं.
इस घपले को देश की सबसे बड़ी कॉरपोरेट धोखाधड़ी माना जाता है, जिसमें राजू ने कंपनी के हिसाब में 7,800 करोड़ की हेरा-फेरी और भारी मुनाफे के झूठे आंकड़े देकर निवेशकों को बरगलाया था. पर इस प्रकरण के विवरण कॉरपोरेट जगत, वित्तीय संस्थाओं, नेताओं और नौकरशाहों के बीच भयावह सांठ-गांठ की खतरनाक तसवीर प्रस्तुत करते हैं,
जिसका पूरा सच शायद ही कभी सामने आये. राजू के बेटे की कंपनी मायटास ने हैदराबाद में मेट्रो रेल परियोजना की घोषणा सार्वजनिक होने से पहले ही प्रस्तावित रेल मार्ग पर भारी मात्र में जमीन खरीद ली थी तथा बाद में उसे ही मेट्रो रेल के निर्माण का ठेका भी मिला था. धोखाधड़ी की बात मानते हुए कर्मचारियों को लिखे पत्र में राजू ने कहा था कि ‘वह एक ऐसे बाघ की सवारी कर रहा था, जिससे बचते हुए उतर सकने का तरीका उसे मालूम नहीं था’.
उसका कहना था कि वह कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य को सुधारने की कोशिश में लगातार गलतियां करता गया. चिंताजनक बात है कि इस धोखाधड़ी पर वित्तीय संस्थाओं और जांच एजेंसियों की नजर नहीं पड़ी थी. कुछ महत्वपूर्ण निवेशकों की आपत्तियों के बाद भी जांच नहीं की गयी थी. एजेंसियों की नींद तब खुली, जब खुद राजू ने गलती मान ली और शेयर बाजार औंधे मुंह गिर गया.
बहरहाल, ऐसी धोखाधड़ी करनेवाला राजू अकेला शख्स नहीं है. शेयर लेन-देन, चिट फंड, बैंकों की मिलीभगत से कालेधन का निवेश जैसे आपराधिक मामले अकसर सामने आते हैं. केंद्र सरकार के गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय के लिए तैयार एक फोरेंसिक रिपोर्ट के अनुसार, देश की सबसे बड़ी 500 कंपनियों में से एक-तिहाई कंपनियां अपने खातों व दस्तावेजों में हेर-फेर करती हैं. बड़ी कंपनियां बैंकों के कर्ज चुकाने से बचने के लिए भी दांव चलती हैं.
इस संबंध में कई कंपनियों की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा की जा रही है. सत्यम घोटाले पर फैसले से जगी उम्मीद तभी हकीकत में बदलेगी, जब सरकार और नियामक संस्थाओं द्वारा ठोस निगरानी तथा जरूरी कानूनी पहल हों.

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