घरेलू खपत और निवेश बढ़ाइए
डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री तेल के गिरते मूल्यों के कारण देश में तेल की खपत बढ़ेगी, जो आयातों पर निर्भरता को बढ़ायेगी. इसलिए सस्ते तेल के जरिये देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के स्थान पर घरेलू खपत और निवेश को बढ़ा कर इस उभरते संकट का सामना करना चाहिए. विश्व अर्थव्यवस्था में गहराती मंदी […]
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
तेल के गिरते मूल्यों के कारण देश में तेल की खपत बढ़ेगी, जो आयातों पर निर्भरता को बढ़ायेगी. इसलिए सस्ते तेल के जरिये देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के स्थान पर घरेलू खपत और निवेश को बढ़ा कर इस उभरते संकट का सामना करना चाहिए.
विश्व अर्थव्यवस्था में गहराती मंदी के संकेत मिल रहे हैं. चीन की विकास दर 10 प्रतिशत से घट कर 7 प्रतिशत पर आ गयी है. जापान लंबे समय से मंदी की चपेट में है.
यूरोप के कमजोर देश जैसे ग्रीस, इटली और आयरलैंड लोन का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं. इस मंदी के कारण विश्व में तेल की मांग कम हो रही है. साथ-साथ अमेरिका में शेल ऑयल का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है. तेल की घटती मांग और बढ़ती आपूर्ति के कारण विश्व बाजार में तेल का दाम 100 डॉलर से घट कर 58 डॉलर प्रति बैरल रह गया है. इस गिरावट के कारण रूस और ईरान जैसे तेल उत्पादक देश संकट में हैं. भारत की स्थिति भी ऐसी ही है. नयी सरकार द्वारा उठाये गये तमाम सकारात्मक कदमों के बावजूद विकास दर 5-6 प्रतिशत के बीच टिकी हुई है. अमेरिका को छोड़ कर लगभग पूरा विश्व मंदी की चपेट में आता दिख रहा है.
अमेरिका की सुदृढ़ता के दो कारण हैं. 2008 के वैश्विक संकट के बाद अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने भारी मात्र में ऋण लेकर घरेलू अर्थव्यवस्था को स्टीमूलेट किया है. इस कारण अमेरिका फिलहाल आगे बढ़ रहा है. उसकी सुदृढ़ स्थिति का दूसरा कारण शेल ऑयल का बढ़ता उत्पादन है, जिस कारण अमेरिकी तेल कंपनियां कमा रही हैं और अमेरिका की आयातित तेल पर निर्भरता घट रही है. लेकिन शेल ऑयल का भविष्य संदिग्ध है. इसके उत्पादन में पानी का उपयोग बहुत होता है, जिससे जनता का विरोध पैदा हो रहा है.
शेल ऑयल की उत्पादन लागत लगभग 60 डॉलर प्रति बैरल है, जो क्रूड ऑयल से बने तेल से पांच गुना अधिक है. विश्लेषकों के मुताबिक, विश्व बाजार में तेल का दाम 40 डॉलर तक गिर सकता है. ऐसे में शेल ऑयल को तगड़ा झटका लगेगा.
जापान, चीन, यूरोप तथा रूस में गहराती मंदी को देखते हुए निवेशकों में भय व्याप्त है. बीते दिनों रूस की मुद्रा रूबल का दाम तेजी से गिरा, जिससे विदेशी निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा. भारत समेत दूसरे विकासशील देशों में भी यही स्थिति बनने का इन्हें भय है.
अत: मोदी सरकार के प्रयासों के बावजूद देश में बड़ी मात्र में विदेशी निवेश नहीं आ रहा है. विदेशी निवेश के आगमन में सुस्ती से हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की आवक कम है, जबकि मांग पूर्ववत् बनी हुई है. इसलिए रुपया भी 63 रुपये प्रति डॉलर पर टिका हुआ है.
विश्व अर्थव्यवस्था की इस गति का हम पर तीन प्रकार से प्रभाव पड़ता है – निर्यात, विदेशी निवेश तथा तेल के माध्यम से. मंदी के कारण हमारे निर्यात संकट में आयेंगे. इससे हमारी अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ेगा. विदेशी निवेशकों के पलायन से हमारे शेयर बाजार टूटेंगे. इनके पलायन से रुपया भी टूटेगा. रुपये के कमजोर होने से निर्यातकों को कुछ राहत मिलेगी, परंतु मूल गति नकारात्मक बनी रहेगी.
इन दोनों दुष्प्रभावों के विपरीत तेल के गिरते दाम से हमें राहत मिलेगी. लेकिन निर्यात और विदेशी निवेश के नकारात्मक प्रभावों के सामने यह राहत न्यून रहेगी जैसा कि पिछले 6 माह में देखा गया है. तेल के निरंतर गिरते मूल्य के बावजूद भारत की विकास दर ठंडी पड़ी हुई है.
इस संकट का सामना करने के लिए हमें शीघ्र कमर कसनी चाहिए. निर्यातों पर दबाव के कारण मांग की जो कमी आयेगी उसकी भरपाई के लिए सरकार को घरेलू मांग बढ़ाने के उपाय करने चाहिए. वर्तमान में सरकार के द्वारा भारी मात्र में खाद्यान्न, मनरेगा, मिट्टी तेल, फर्टीलाइजर, शिक्षा एवं स्वास्थ पर सब्सिडी दी जा रही है.
इन सब्सिडी पर हजारों करोड़ रुपये प्रति वर्ष खर्च किये जा रहे हैं. इस रकम के बड़े हिस्से का रिसाव हो जाता है. इसलिए सरकार को चाहिए कि इन तमाम सब्सिडी को समाप्त करके इस रकम को जनता के बैंक में सीधे जमा करा दे. रिसाव घटेगा, जनता के हाथ में क्रयशक्ति बढ़ेगी, बाजार में मांग उत्पन्न होगी और निर्यातों के कारण उपजी मंदी की खत्म हो जायेगी.
मंदी का दूसरा प्रभाव विदेशी निवेशकों के पलायन के कारण पड़ेगा. विश्लेषकों का मत है कि देश में आ रहे विदेशी निवेश का 80 प्रतिशत अपनी पूंजी की घर वापसी है. नेता, अधिकारी तथा उद्यमी देश से रकम को पहले विदेश भेज देते हैं. फिर विदेशी निवेश के रूप में इसे वापस ले आते हैं. अत: हमें अपनी पूंजी के पलायन को रोकना चाहिए. मंदी का तीसरा प्रभाव तेल के गिरते मूल्यों के माध्यम से पड़ेगा. हमारे द्वारा खपत किये जा रहे तेल का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा आयातों से आ रहा है. तेल के गिरते मूल्य हमारे लिए लाभकारी होंगे.
आयातों पर निर्भरता हमारी संप्रभुता के लिए खतरा है. तेल के गिरते मूल्यों के कारण देश में तेल की खपत बढ़ेगी, जो आयातों पर निर्भरता को बढ़ायेगी. इसलिए तेल पर टैक्स लगा कर खपत को कम करना चाहिए. सस्ते तेल के जरिये देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के स्थान पर घरेलू खपत और निवेश को बढ़ा कर इस उभरते संकट का सामना करना चाहिए.