सांस्कृतिक सहिष्णुता ही हमें बचायेगी

फिलहाल पूरा विश्व समुदाय विचित्र ऊहापोह व अशांत स्थिति में है. एक ओर अश्‍लील भाव मुद्राएं व लालसाएं आधुनिकता के नित नये आयाम से इठला रही हैं, तो दूसरी ओर चरमपंथी, कट्टरपंथी अट्टहास कर रहे हैं. इसके बीच सामान्य जन की निजी व वैश्विक समस्याएं भी मुंह बाये खड़ी हैं. सभ्यता की शुरुआत से ही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 16, 2015 1:46 AM
फिलहाल पूरा विश्व समुदाय विचित्र ऊहापोह व अशांत स्थिति में है. एक ओर अश्‍लील भाव मुद्राएं व लालसाएं आधुनिकता के नित नये आयाम से इठला रही हैं, तो दूसरी ओर चरमपंथी, कट्टरपंथी अट्टहास कर रहे हैं.
इसके बीच सामान्य जन की निजी व वैश्विक समस्याएं भी मुंह बाये खड़ी हैं. सभ्यता की शुरुआत से ही विभिन्न संस्कृतियों के बीच कहीं संघर्ष हुए, तो कहीं समागम. अंतत: मानव हित में कल्याणकारी संस्कृतियां ही स्वीकार की गयीं.
यह परंपरा आज भी जीवंत है. हमारा देश खुद कई विशिष्ट संस्कृतियों का उद्गम स्थल है. अपने देश की यह भी विशिष्ट परंपरा रही है कि अनेक आक्रमणकारी यहां आये. वे या तो यहीं के होकर रह गये या फिर यहां की संस्कृति को अपने साथ ढोकर ले गये. सबकी तृष्णा की तृप्ति यहीं आकर हुई. यह परंपरा सिंधु सभ्यता के समय हुए आर्य आक्रमण से लेकर सिकंदर, गजनी और अंगरेज शासन तक कायम रही. यह प्राचीन काल से चली आ रही खांटी देसी परंपरा है.
यहां कभी दुनिया को अपने अधीन करने की परंपरा नहीं पनपी. यहां वसुधैव कुटुंबकम् की परंपरा व संस्कृति का विकास हुआ. सांस्कृतिक संपदा के मामले में हमारा देश हमेशा विश्वगुरु रहा है, लेकिन कालक्रम में कई विकृतियों की चपेट में आकर यहां की संस्कृतियां उदासीनता और कट्टरता का शिकार होती रही हैं. फिर भी हमारी भारतीय संस्कृति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उसे कोई भी हिला नहीं सकता.
आज यदि मानवता को बचाने में कोई वस्तु सक्षम है, तो वह सांस्कृतिक सहिष्णुता ही है. इसके बिना आज की तारीख में मानवता के कल्याण की कामना नहीं की जा सकती. इसके लिए हमें अपनी संस्कृति और संस्कार का अनुसरण करना होगा.
महादेव महतो, तालगड़िया

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