पैदा होते ही न्यूटन बनाने की कोशिश
गांव में बच्चे नहीं है और शहर में बचपन नहीं है. लोग नवजात को शेक्सपीयर, वेद व्यास और न्यूटन बनाने में लगे हैं, जबकि उसका मन धौनी होना चाहता है. अभी कोई बच्च यह क्यों याद रखेगा कि रावण को किसने मारा? अरे भाई! उसे ढंग से अपने हाथ की अंगुलियों को तो चूसने दो. […]
गांव में बच्चे नहीं है और शहर में बचपन नहीं है. लोग नवजात को शेक्सपीयर, वेद व्यास और न्यूटन बनाने में लगे हैं, जबकि उसका मन धौनी होना चाहता है. अभी कोई बच्च यह क्यों याद रखेगा कि रावण को किसने मारा? अरे भाई! उसे ढंग से अपने हाथ की अंगुलियों को तो चूसने दो.
उसे सलमान खान के डायलॉग के बजाय, चिड़ियों का चहकना सिखाओ, नानी-दादी की कहानी सुनाओ, चुटकुले सुनाओ. जबरन उसे स्मार्टफोन क्यों थमा रहे हो?
साल भर के बच्चे द्वारा स्मार्टफोन में रिंगटोन चेंज करना आना अभिभावकों को भले ही स्वाभाविक तौर पर खुशी देता हो, पर क्या इसी मोबाइल में उसका बचपन है?
बच्चे पड़ोस में नहीं जाकर गिल्ली-डंडा नहीं खेलेंगे, तो क्या न्यूटन के सेब से खेलेंगे. यहां भारत समेत पूरी दुनिया में बच्चे ही तो पैदा होंगे, पैदा होते कोई न्यूटन थोड़े बन जाता है?
आलोक रंजन, हजारीबाग