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गरीबों के नाम पर दूसरे काट रहे मलाई
यह विडंबना ही है कि हर कोई गरीब की गरीबी की बात करते नहीं थकता है. चाहे वह कोई बड़े से बड़ा नौकरशाह हो या फिर राजनेता, अमीर व्यापारी हो या फिर देश का कोई बड़ा सेलिब्रिटी, सभी गरीबों की दुहाई देते हैं. पिछली सरकार थी, तो उसका लक्ष्य देश से गरीबी मिटाना था और […]
यह विडंबना ही है कि हर कोई गरीब की गरीबी की बात करते नहीं थकता है. चाहे वह कोई बड़े से बड़ा नौकरशाह हो या फिर राजनेता, अमीर व्यापारी हो या फिर देश का कोई बड़ा सेलिब्रिटी, सभी गरीबों की दुहाई देते हैं.
पिछली सरकार थी, तो उसका लक्ष्य देश से गरीबी मिटाना था और अब नयी सरकार बनी तो उसने भी अपना वही लक्ष्य निर्धारित किया. गरीब और गरीबी के नाम पर सबकी रोटी चल रही है, लेकिन कोई ये नहीं सोचता कि जिस गरीब और गरीबी की वे बात कर रहे हैं, उसके दिल पर क्या गुजरती होगी?
इसमें कोई दो राय नहीं कि बीते कई सालों में गरीबों के उत्थान के लिए सरकारों ने कई योजनाओं को अमलीजामा पहनाया है, लेकिन सही मायने में उन योजनाओं का लाभ गरीबों को नहीं मिल रहा है.
यही बातें गरीबों को कचोटती है. देश में मनरेगा गरीबों के उत्थान के लिए बनाया गया, लेकिन ज्यादातर गरीब रोजगार कार्ड से वंचित हैं. उनका कार्ड मेठों के पास जमा रहता है और उनकी मेहनत की अधिकांश राशि मेठ आदि ही गटक जाते हैं.
इसी प्रकार अन्य कई योजनाएं गरीबों के उत्थान के लिए लागू की गयीं, लेकिन उनका लाभ गरीबों को मिलने के बजाय बिचौलिये हड़प लेते हैं. कहने के लिए गरीबों को सस्ता अनाज उपलब्ध कराने की योजना भी पूरे देश में चलायी जा रही है, लेकिन कुछ चुनिंदा और नकली गरीबों को आंशिक लाभ देकर अनाज दुकानों पर पहुंचा दिया जाता है.
खास कर झारखंड जैसे बीमारू राज्य में गरीबों के नाम पर इस तरह का गोरखधंधा अधिक प्रचलित है. यहां गरीबों के नाम पर दूसरों का रोजगार चल रहा है और गरीब अंतत: गरीब ही रह जाते हैं. सरकार को लाभुकों को लाभ देने के लिए कारगर कदम उठाने चाहिए.
बैजनाथ महतो, बोकारो
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