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किसानों का दिल जीतना अभी बाकी

।।भूमि अधिग्रहण बिल पारित।।तृणमूल कांग्रेस के विरोध, वाम दल, बीजद और अन्नाद्रमुक के बहिष्कार के बावजूद भूमि अधिग्रहण बिल अगर लोकसभा में पास हुआ, तो इसका श्रेय केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के राजनीतिक कौशल को भी जाता है. उन्होंने प्रमुख विपक्षी दलों से बात कर कई संशोधनों को स्वीकारा और बिल पर सर्वसम्मति […]

।।भूमि अधिग्रहण बिल पारित।।
तृणमूल कांग्रेस के विरोध, वाम दल, बीजद और अन्नाद्रमुक के बहिष्कार के बावजूद भूमि अधिग्रहण बिल अगर लोकसभा में पास हुआ, तो इसका श्रेय केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के राजनीतिक कौशल को भी जाता है. उन्होंने प्रमुख विपक्षी दलों से बात कर कई संशोधनों को स्वीकारा और बिल पर सर्वसम्मति कायम करने के मकसद से सर्वदलीय बैठक भी बुलायी थी.

बहस के दौरान बिल के विरोध के स्वर इसलिए भी मंद रहे. कुछ सांसदों ने वक्फ की जमीन के अधिग्रहण की आशंका जतायी थी. इस मुद्दे पर अलग से बिल लाने की बात कह कर उन्हें भी मना लिया गया. बहरहाल, राजनीतिक कौशल से संसद में संख्या-बल को अपने पक्ष में करके किसी बिल को पारित करा लेना एक बात है, बिल के जरिये आमजन की जायज चिंताओं का संतोषजनक समाधान करना दूसरी बात. संशोधनों के चार दौर के बाद बिल का नया नाम ‘उचित मुआवजा और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनव्र्यावस्थापन में पारदर्शिता का अधिकार विधेयक 2012’ रखा गया है.

जैसा कि नाम से ही जाहिर है, बिल में मान कर चला गया है कि जमीन कैसी भी हो, अधिग्रहण जायज है बशर्ते उचित मुआवजा दिया जाये, साथ ही विस्थापित होनेवाली आबादी का पुनर्वास और पुनव्र्यावस्थापन कर दिया जाये. बिल में एकल ही नहीं, बहुफसली कृषि भूमि के भी अधिग्रहण की व्यवस्था है. बस मुआवजे की राशि बढ़ा दी गयी है. (ग्रामीण क्षेत्र में अधिग्रहण पर बाजार मूल्य का चार गुणा और शहरी क्षेत्र में बाजार मूल्य का दो गुना.) दिक्कत यह है कि कृषि भूमि की भरपाई के लिए अलग से कृषि भूमि विकसित करने जैसे मुद्दों पर बिल चुप है. देश में घटती कृषि भूमि का समाधान किसानों को नगदी थमा कर नहीं हो सकता. बिल पुनर्वास और पुनव्र्यवस्थापन की बात कहता है, लेकिन तथ्य यह है कि आजादी के बाद से औद्योगिकीकरण के नाम पर विस्थापित हुई करीब 10 करोड़ की आबादी में से मात्र 17 फीसदी का ही संतोषजनक पुनर्वास हो पाया है.

जनांदोलनों का तर्क है कि राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्वास बोर्ड के गठन के बिना इस दिशा में कोई वादा करना बेमानी है. अधिग्रहण से पहले किसानों की सहमति और फिर सामाजिक व पर्यावरणीय प्रभावों के आकलन जैसी बातें बिल को स्वागतयोग्य बनाती हैं, पर देश में जमीन अधिग्रहण को लेकर एक से ज्यादा कानून हैं. चिंता का विषय है कि बिल इन कानूनों को अपने दायरे में नहीं लेता. जाहिर है, बिल पारित करा कर यूपीए ने फौरी जीत भले हासिल की हो, किसानों का दिल जीतने के लिए अभी कोसों चलना होगा.

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