जिंदगी हर किसी को एक बार ही मिलती है. इंसान जन्मजात गरीब होता है. कोई दो जून रोटी के लिए दर-दर की ठोकर खाता है, तो कोई सब कुछ पाने की चाहत में बहुत कुछ गंवा देता है. यह बात अलग है कि गरीबी कुछ खास समुदाय और लोगों के लिए अभिशाप बनी हुई है. उनकी जो स्थिति गुलामी के वक्त थी, वह आज भी बरकरार है.
झारखंड की राजधानी रांची में ही कांटाटोली बस स्टैंड के पास कबाड़ियों के 15-20 ऐसे परिवार रहते हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी यूं ही गरीबी का दंश ङोल रहे हैं. आजादी को छोड़ भी दें, तो झारखंड को अलग हुए 15 साल हो गये हैं, फिर भी इनकी जिंदगी की कायापलट नहीं हो सकी है. कचरा बीनने से शुरू हुई जिंदगी कचरे में ही समाप्त हो जाती है. इनके पास शिक्षा पाने की न तो कोई सुविधा है और न ही जागरूकता. इनके बच्चे सरकारी स्कूलों में जाने की सोचते भी हैं, तो पेट की आग बुझाने की चिंता इन्हें शिक्षा से दूर कर देती है. राज्य के नेताओं ने इस क्षेत्र के जिन लोगों के विकास के नाम पर झारखंड को बिहार से अलग किया था, वह समस्या आज भी मुंह बाये खड़ी है.
यहां के गरीबों के जीवन स्तर में न तो कोई बदलाव आया है और न ही उन्हें बुनियादी सुविधाएं मिली हैं. कचरे की सफाई करनेवालों की स्थिति ही दयनीय नहीं है. यहां की आदिम जनजातियों में बिरहोर आदिवासियों की भी स्थिति अच्छी नहीं है. आरक्षण के नाम पर जनजातीय समुदाय के लोगों को सुविधाएं मिलती हैं, लेकिन बिरहोर आजादी के पहले जिस स्थिति में जीवन गुजारने को विवश थे, आज भी उसी स्थिति में जीवन बसर कर रहे हैं. आज तक हमें यही समझ में नहीं आया कि गरीब होना पाप है या फिर गरीबी ही कुछ लोगों के लिए अभिशाप है?
हरिश्चंद्र महतो, बेलपोस, प सिंहभूम