शिक्षा व्यवस्था में सुधार की जरूरत
शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए समय-समय पर अनेक प्रयोग किये जाते रहे हैं. सभी चाहते हैं कि बुनियादी स्तर सेऐसी शिक्षा बच्चे को मिले, जिससे वह भविष्यमें बुलंदी के शिखर पर पहुंचे. आज शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है. अंगरेजी माध्यम वाले स्कूलों में दाखिला लेकर बच्चे को पढ़ाना गरीब को संभव नहीं है. […]
शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए समय-समय पर अनेक प्रयोग किये जाते रहे हैं. सभी चाहते हैं कि बुनियादी स्तर सेऐसी शिक्षा बच्चे को मिले, जिससे वह भविष्यमें बुलंदी के शिखर पर पहुंचे.
आज शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है. अंगरेजी माध्यम वाले स्कूलों में दाखिला लेकर बच्चे को पढ़ाना गरीब को संभव नहीं है. धनाढ्य तथा उच्च मध्यम वर्ग ही वहां पहुंच पाता है.
सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई नहीं होती. ज्यादातर गरीब परिवार के बच्चे मध्याह्न् भोजन के लालच में ही स्कूल आते हैं. अंगरेजी स्कूलों में पढ़ाई के साथ व्यक्तित्व विकास के अन्यान्य साधन उपलब्ध जरूर होते हैं, जो विद्यर्थी के कैरियर बनाने में सहायक होते हैं.
यहां एक बात ध्यान देनेवाली है कि नींव को मजबूत बनाना एवं बुनियादी शिक्षा यथासंभव मातृभाषा में देनी चाहिए, जिससे छात्र विषयवस्तु को पूरी तरह समझ सके एवं अपने तरीके से उन्हें व्यक्त कर सके. व्यवस्था ऐसी हो कि उसे रटने की जरूरत ही न पड़े. प्रश्न के हल निकालने के लिए उसे जब तक भलीभांति नहीं समङोंगे तो समाधान संभव नहीं है.
ऐसा लगता है कि कुछ अपवादों को छोड़ कर शिक्षण पद्धति के मानदंड में भी गिरावट आयी है. पहले के शिक्षक में जो आत्मीयता और समर्पण की भावना थी, वह आज देखने को नहीं मिलता है. आज की तुलना में वे निलरेभी तथा निष्ठापूर्ण होते थे. विद्यार्थी का उत्कर्ष उनके लिए सर्वोपरि था.
छात्र भी उन्हें गुरु का सम्मान देते थे. मेरा मानना है कि कुछ अपवादों को छोड़ कर अभिभावक भी बच्चे पर इतना ध्यान नहीं दे पाते. इसलिए जड़ कमजोर होने की संभावना होती है. वस्तुनिष्ठ प्रश्न की अधिकता के कारण छात्र की अभिव्यक्ति क्षमता कमजोर हो जाती है.
उदय चंद्र, रांची