गाढ़ी कमाई ऐसे ही किसी को न सौंप दें
बैंकिंग और वित्तीय संस्थाओं के लिए तमाम नियम और कायदों के बावजूद हर रोज कहीं ना कहीं से यह खबरें पहुंचती हैं कि निवेशकों के करोड़ों रुपये डूबे. चिंताजनक बात यह है कि ये बड़े निवेशक नहीं होते. इनका पैसा भी काली कमाई का नहीं, गाढ़ी कमाई का होता है. यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड […]
बैंकिंग और वित्तीय संस्थाओं के लिए तमाम नियम और कायदों के बावजूद हर रोज कहीं ना कहीं से यह खबरें पहुंचती हैं कि निवेशकों के करोड़ों रुपये डूबे. चिंताजनक बात यह है कि ये बड़े निवेशक नहीं होते. इनका पैसा भी काली कमाई का नहीं, गाढ़ी कमाई का होता है.
यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसिल) की जादूगोड़ा, नरवा, तुरामडीह व अन्य इकाइयों के हजारों कर्मियों की गाढ़ी कमाई भी इसी तरह डूब गयी. एक-दो ने खुदकुशी कर ली, कुछ कर्ज से घर का खर्च चला रहे. इन्हें सब्जबाग दिखाने वाला कमल सिंह भले ही पुलिस की गिरफ्त में हो, लेकिन लोगों को नहीं पता कि उनका पैसा वापस मिलेगा या नहीं. पर सवाल यह है कि पढ़ा-लिखा तबका भी ऐसे सब्जबाग में धंसता चला गया. यह जानते हुए भी कि वह जिस कागज पर हस्ताक्षर कर रहे हैं, वह अधिकृत वित्तीय संस्थान या बैंकिंग का नहीं है.
जहां बैंकिंग संस्थान बमुश्किल आठ प्रतिशत ब्याज देते हैं, वहां हर महीने पांच फीसदी ब्याज का ख्याल कई बार दिमाग की जगह दिल की सुनने को मजबूर कर देता है. इसी का फायदा उठा कर सब्जबाग दिखाने वाले बड़ी पूंजी जमा होते ही खिसक लेते हैं. जब तक निवेशकों को सच का पता चलता है, काफी देर हो चुकी होती है.
तो क्या गलती सिर्फ कमल सिंह जैसे धोखेबाजों की है, या फिर सब्जबाग के झांसे में आनेवालों की है या फिर किसी और की? दरअसल, भारतीय अर्थव्यवस्था में छोटे निवेशकों का खासा ध्यान कभी रखा ही नहीं गया. उन्हें सुरक्षित निवेश के लिए प्रशिक्षित और प्रोत्साहित भी नहीं किया गया. कई वित्तीय संस्थाएं इस दिशा में प्रयास तो कर रही हैं, पर यह प्रयास काफी सीमित हैं. जबकि निवेश और निवेशकों का दायरा लगातार विस्तृत होता जा रहा है. जिस तरह केंद्र सरकार हर व्यक्ति को बैंक से जोड़ने का प्रयास कर रही है, उसी तरह हर छोटे निवेशक तक यह सूचना और जानकारी पहुंचनी चाहिए कि उनका पैसा किस-किस तरीके से सुरक्षित रह सकता है.
वित्त मंत्रलय और सरकारों को भी ऐसे चिटफंड कंपनियों और धोखाधड़ी करने वालों पर और सख्ती बरतनी होगी, जो अवैध तरीके से अधिक ब्याज का सब्जबाग दिखा कर लोगों की गाढ़ी कमाई हड़प रहे हैं. सरकारें भी कुछ खास नहीं कर पा रही हैं.