सोची-समझी रणनीति या जुबान फिसलना!
अपने दोष की स्वीकृति और उसके लिए क्षमा मांगना उच्च चारित्रिक गुण माने जाते हैं. इस दृष्टि से देखें तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विरुद्ध की गयी नस्लभेदी टिप्पणी के लिए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का लोकसभा में खेद प्रकट करना स्वागतयोग्य है. खबरों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इस मंत्री को फटकार […]
अपने दोष की स्वीकृति और उसके लिए क्षमा मांगना उच्च चारित्रिक गुण माने जाते हैं. इस दृष्टि से देखें तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विरुद्ध की गयी नस्लभेदी टिप्पणी के लिए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का लोकसभा में खेद प्रकट करना स्वागतयोग्य है. खबरों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इस मंत्री को फटकार लगायी थी, जिसके बाद उन्होंने लोकसभा में बयान दिया.
उम्मीद है कि अब मौजूदा विवाद थम जायेगा. हालांकि प्रधानमंत्री और उक्त मंत्री को यह काम पहले ही कर देना चाहिए था. गिरिराज सिंह ने 31 मार्च को ही यह बयान दिया था. यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि मंत्री ने सदन में कहा है कि ‘अगर किसी को उनके बयान से ठेस पहुंची है, तो वे इसके लिए खेद प्रकट करते हैं.’ यानी उन्होंने सीधे तौर पर न तो गलती मानी है और न माफी मांगी है. खबरों में ‘खेद प्रकट करने’ को ‘माफी मांगना’ बताया जा रहा है, जो सही नहीं है.
इतना ही नहीं, एक तरफ खबर यह आयी कि प्रधानमंत्री ने उन्हें फटकार लगायी है, दूसरी ओर गिरिराज सिंह ने साफ कहा कि उनकी मोदी से कोई मुलाकात ही नहीं हुई है. यानी मोदी अन्य मामलों की तरह इस बार भी चुप हैं और अपने सहकर्मियों की ओछी हरकतों से उन्हें कोई गुरेज नहीं है. सत्तारूढ़ भाजपा और उसके सहयोगी दलों में गिरिराज सिंह जैसे कई मंत्री और सांसद हैं, जो गाहे-ब-गाहे भड़काऊ, सांप्रदायिक और महिला-विरोधी बयान देते रहते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री या पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने शायद ही उन पर लगाम लगाने की कोशिश की है.
ठीक एक साल पहले गिरिराज सिंह मोदी-विरोधियों को पाकिस्तान भेज रहे थे और अब अगर-मगर के साथ अपनी नस्लभेदी मानसिकता का स्पष्टीकरण दे रहे हैं. दुर्भाग्य की बात है कि गिरिराज सिंह, साध्वी प्राची, साक्षी महाराज, साध्वी निरंजन ज्योति, योगी आदित्यनाथ जैसे मंत्रियों-सांसदों को सरकारी नीतियों या सरकार के कामकाज के बारे में चर्चा करते कभी नहीं सुना जाता.
इसलिए इन नेताओं की लगातार बदजुबानी पर प्रधानमंत्री की चुप्पी टूटनी चाहिए और उन्हें कठोर कार्रवाई करनी चाहिए. ऐसा नहीं होता है, तो यही संदेश जायेगा कि यह सब एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जुबान फिसलने का मामला नहीं.