जुमलों से नहीं घटेगा किसानों का दुख

बेमौसम की बारिश से फसल बर्बाद होने के बाद किसानों के सामने जिंदगी और मौत का सवाल खड़ा हो गया है. कई किसानों ने आत्महत्या कर ली, तो कई की सदमे में जान चली गयी. सवाल फसलों के बर्बाद होने से बड़ा उनके कर्ज का है. सबसे बड़ी मुसीबत उन किसानों की है, जिन्होंने बैंकों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 23, 2015 2:03 AM
बेमौसम की बारिश से फसल बर्बाद होने के बाद किसानों के सामने जिंदगी और मौत का सवाल खड़ा हो गया है. कई किसानों ने आत्महत्या कर ली, तो कई की सदमे में जान चली गयी. सवाल फसलों के बर्बाद होने से बड़ा उनके कर्ज का है. सबसे बड़ी मुसीबत उन किसानों की है, जिन्होंने बैंकों और साहूकारों से कर्ज लिया और जमीन गिरवी रख दी.
फसलों के नुकसान से गमगीन किसानों के दुख जुमलेबाजी और मार्केटिंग सिखाने से कम नहीं होंगे. हालांकि, सरकार उन्हें मुआवजा देने की बात कह रही है, लेकिन क्या यह असली हकदारों तक पहुंच पायेगा?
यह एक बड़ा सवाल है. सरकार भले ही भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने की बात करती हो, लेकिन सच्चई यही है कि आज भी सिस्टम में भ्रष्टाचार मौजूद है. फिर ऐसे किसानों तक लाभ कैसे पहुंचेगा, जिन्हें सरकारी नियमों और कानून की जानकारी नहीं है? उत्तर भारत के सैकड़ों ऐसे गांव हैं, जहां आज भी छोटे और मझोले किसानों की तादाद ज्यादा है.
यह किसानों का वह तबका है, जो सरकार कानून और नियमों के लिहाज से आज भी निरक्षर है. खास कर उत्तर प्रदेश और बिहार में मनरेगा में काम करनेवाले मजदूरों के लिए एक बड़ी समस्या काम न मिलने पर बड़े किसानों से खेत पट्टे या बटाई पर लिये थे. इन मजदूरों ने निजी लोगों से कर्ज लेकर फसलें बोयी थीं.
चूंकि जिन खेतों में उन्होंने फसलें बोयी थीं, वे खेत उनके नाम नहीं है.इसलिए उन्हें न तो सरकार किसान मानेगी और न ही उन्हें मुआवजा मिलेगा. ऐसे किसानों के लिए सरकार क्या करेगी, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है. किसानों को संकट से उबारने के लिए सरकारों को हरसंभव कोशिश करनी चाहिए. मगर उसे मौसम के बदलते करवट को भी समझना होगा.
अनिल सक्सेना, जमशेदपुर

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