इंसान का जानवरों जैसा व्यवहार
अनुज कुमार सिन्हा वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर सिर्फ भारत के जानवर ही बांग्लादेश नहीं जाते हैं. वहां के जानवर भी इधर आते हैं. इसलिए जवानों को इसका ध्यान रखना चाहिए कि अगर भारतीय जवान बदले की कार्रवाई करने लगें, तो नुकसान भारत का कम, बांग्लादेश का ज्यादा होगा.बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) के जवान तो बहुत […]
अनुज कुमार सिन्हा
वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर
सिर्फ भारत के जानवर ही बांग्लादेश नहीं जाते हैं. वहां के जानवर भी इधर आते हैं. इसलिए जवानों को इसका ध्यान रखना चाहिए कि अगर भारतीय जवान बदले की कार्रवाई करने लगें, तो नुकसान भारत का कम, बांग्लादेश का ज्यादा होगा.बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) के जवान तो बहुत बहादुर निकले. अपनी बहादुरी निकाली एक निरीह हाथी पर.
उस हाथी पर, जो झारखंड के दलमा जंगल से रास्ता भटक कर मुर्शिदाबाद होते हुए पदमा नदी पार करते हुए बांग्लादेश की सीमा में घुस गया था. दलमा हाथियों का आश्रय स्थल है और वहां से हाथियों का झुंड आसपास के जिलों में खाने की तलाश में जाता रहता है. उस हाथी से गलती यह हो गयी कि वह देश की सीमा को पार कर गया.
उसे क्या पता कि सीमा क्या होती है. इसे तो मनुष्यों ने बनाया है. लेकिन बीजीबी के जवानों को क्या हो गया था कि सीधे गोली मार दी. उन्हें इतनी समझ तो होनी चाहिए थी कि पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं की अपनी दुनिया होती है. वे सीमाओं को नहीं समझते. पूरी दुनिया के पक्षी मौसम अनुसार एक देश से दूसरे देश में जाते रहते हैं. जानवर भी जंगलों से भटक जाते हैं और कहीं चले जाते हैं.
उस हाथी को इतनी समझ होती कि बांग्लादेश दूसरा देश है और वहां जाने से गोली मिलेगी, तो शायद वह नहीं जाता.यह घटना इस बात का संकेत है कि सीमा पर (चाहे वह भारत-पाक सीमा हो, भारत-बांग्लादेश सीमा हो या फिर भारत-चीन सीमा), कितना तनाव है. बांग्लादेश के जवानों को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि हर साल लाखों बांग्लादेशी भारत की सीमा में अवैध तरीके से प्रवेश करते हैं. जो घुस गये और नहीं पकड़े गये, उनकी तो चांदी रहती है. आज भी करोड़ों बांग्लादेशी भारत में अवैध तरीके से रह रहे हैं. यहां इंसानों की बात हो रही है, जिनके पास समझ होती है.
ये बांग्लादेशी इसलिए भारत आते हैं, ताकि इन्हें यहां रोजी-रोटी मिल सके. बांग्लादेश से आनेवालों (अवैध तरीके से) को जब बीएसएफ के जवान पकड़ लेते हैं, तो उन्हें जान से मारते नहीं हैं, बल्कि पुन: सीमा पर जाकर छोड़ देते हैं. इस तथ्य को अगर बांग्लादेश के जवान समझ लेते, तो शायद गोली नहीं चलाते.
बीजीबी के जवान चाहते, तो वन विभाग के अधिकारियों की सहायता से हाथी को भारत की सीमा में वापस भेज देते. देश के भीतर ऐसे काम होते रहते हैं, जब कोई जंगली जानवर रिहायशी इलाके में घुस जाता है, तो मारने की जगह उसे सुरक्षित स्थान पर भेजने का प्रयास किया जाता है. जानवरों के सीमा पार आने-जाने की यह कोई पहली घटना नहीं है.
तीन साल पहले भारत से हाथी नेपाल की सीमा में घुस गये थे, जिन्हें मशीन गन से मार दिया गया था. इस मामले में नेपाल भी असहिष्णु है. हाल में कई बार भारत से भटक कर नेपाल गये हाथियों को वहां मार दिया गया. 2004 में मिजोरम से लगभग 200 हाथी उत्तरी बांग्लादेश में घुस गये थे. वहां इन हाथियों ने फसल बरबाद की थी.
दलमा के हाथी ऐसे भी खाने की तलाश में जंगलों से निकल कर गांवों में घुस जाते हैं. कभी-कभी ग्रामीणों को मार डालते हैं. लेकिन इन हाथियों को तब तक नहीं मारा जाता, जब तक ये पागल नहीं हो जाते या फिर मनुष्य के लिए बहुत खतरनाक नहीं हो जाते. हाथी हो या कोई और जंगली जानवर, उन्हें बचाना इंसानों का ही काम है.
यह बहस का विषय है कि ये हाथी जंगलों में रहते हैं, तो फिर गांवों में क्यों जाते हैं? इसका जवाब बहुत मुश्किल नहीं है. जो जंगल जानवरों के लिए है, उसे मनुष्य खत्म कर रहे हैं. जंगली जानवरों के घरों में घुस कर उन्हें तबाह कर रहे हैं. ऐसे में जंगली जानवरों को भोजन के लिए भटकना पड़ता है.
जाहिर है, बांग्लादेश के जवानों ने निर्दयतापूर्ण काम किया है. अपना गुस्सा बेजुबान हाथी पर निकाला है. भारत सरकार के अधिकारियों ने बांग्लादेश के सामने आपत्ति जतायी है. अगर वह हाथी बांग्लादेश में तबाही मचा रहा होता, तो उसे मारने का आधार था. सीमा में घुसने पर अगर बांग्लादेश के जवान गोली चलाने लगे, तो कितने और जानवरों को मारेंगे. कितने पक्षियों को मारेंगे? भारत-बांग्लादेश सीमा पर गांव इतने सटे हुए हैं कि एक गांव के जानवर चरने के लिए दूसरे देश की सीमा में जाते हैं और शाम तक लौट आते हैं.
सिर्फ भारत के जानवर ही बांग्लादेश नहीं जाते हैं. वहां के जानवर भी इधर आते हैं. इसलिए जवानों को संयम से काम लेना चाहिए. इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि अगर भारतीय जवान बदले की कार्रवाई करने लगें, तो नुकसान भारत का कम, बांग्लादेश का ज्यादा होगा. भविष्य में ऐसी घटनाएं नहीं घटे, इसके लिए सबसे पहले अपने घर को ठीक करना होगा.
दूसरी ओर, लोगों को जागना होगा, अफसरों को चौकस रहना होगा, जंगल को बचाना होगा, ताकि जंगल में रहनेवाले जानवरों को भोजन के लिए जंगल से बाहर आकर अपनी जान नहीं गंवानी पड़े. चाहे बांग्लादेश के जवान हों या भारत के शिकारी, मासूम पशुओं के प्रति मानसिकता बदलनी होगी. क्रूरता खत्म करनी होगी और प्राकृतिक संतुलन के लिए यह अनिवार्य भी है.