पाकिस्तान में राष्ट्रपति शी का ‘ग्रेट गेम’

पुष्परंजन दिल्ली संपादक, ईयू-एशिया न्यूज राष्ट्रपति शी बिना रॉक स्टार शो किये, बगैर प्रवासी चीनियों द्वारा नारे और मेगा प्रदर्शन के उस ‘ग्रेट गेम’ को अंजाम दे रहे हैं, जिसे लेकर पश्चिमी देश और अमेरिका तक के नेता प्रकंपित होते हैं. शी जैसा कूटनीतिक ‘परफॉर्मेस’ हमारे प्रधानमंत्री क्यों नहीं दे सकते? पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 23, 2015 2:09 AM
पुष्परंजन
दिल्ली संपादक, ईयू-एशिया न्यूज
राष्ट्रपति शी बिना रॉक स्टार शो किये, बगैर प्रवासी चीनियों द्वारा नारे और मेगा प्रदर्शन के उस ‘ग्रेट गेम’ को अंजाम दे रहे हैं, जिसे लेकर पश्चिमी देश और अमेरिका तक के नेता प्रकंपित होते हैं. शी जैसा कूटनीतिक ‘परफॉर्मेस’ हमारे प्रधानमंत्री क्यों नहीं दे सकते?
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के पैर इन दिनों जमीन पर नहीं हैं. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पाकिस्तान के विकास के लिए घोषणाओं की जिस तरह बारिश की है, उससे प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपनी विदेश नीति सफल होती नजर आ रही है. दक्षिण एशियाई देशों के नेताओं ने एक नया नुस्खा ढूंढा है, खुद के देश में भले असफल हों, विदेशी नेताओं से राब्ता रखिये, और उसे भुनाइये.
हिंसा, हड़ताल, बेरोजगारी, महंगाई, अस्थिरता और जहालत से ग्रस्त पाकिस्तान को संवारने में यदि चीनी राष्ट्रपति अहम भूमिका अदा करते हैं, तो उसकी सराहना की जानी चाहिए.
तीन साल के भीतर चीन पाकिस्तान को 10,400 मेगावाट बिजली मुहैया करा देगा, यहां तक तो ठीक है, लेकिन यह पता चले कि पाकिस्तानी कब्जेवाले कश्मीर में चीन परियोजनाओं का विस्तार कर चुका है, आठ पनडुब्बियां पाकिस्तान को दे रहा है, तो सतर्क हो जाइए. क्या किसी विवादित हिस्से में चीन को परियोजनाएं लगाने की अनुमति संयुक्त राष्ट्र देता है? भारत को इस सवाल को ध्यान में रख कर इसका पता करना चाहिए कि ‘पीओके’ में किस तरह की चीनी गतिविधियां चल रही हैं.
मई 2013 में चीन ने पाक कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में नीलम-ङोलम 959 मेगावॉट जल विद्युत परियोजना के लिए 44 अरब 80 करोड़ डॉलर लगाने की घोषणा की थी. 2013 में चीनी प्रधानमंत्री ली खछियांग नयी दिल्ली आये थे, और उन्हें भारत की इस चिंता से अवगत करा दिया गया था, फिर भी मुजफ्फराबाद से लगे नीलम-ङोलम परियोजना पर काम रुका नहीं.
2016 में यह परियोजना पूरी भी हो जायेगी. इससे पहले 2010 में ‘पीओके’ के कोहाला हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए 1.10 अरब डॉलर की राशि चीन ने मंजूर की थी. उस समय के चीनी प्रधानमंत्री वेन चियापाओ को यह बताया जा चुका था कि भारत इसे स्वीकार नहीं करता है, लेकिन कोहाला हाइड्रो प्रोजेक्ट पर काम रुका नहीं, बल्कि चीन ने पाक अधिकृत कश्मीर में सात सौ किमी सड़कें बनानी शुरू कर दीं. यानी, संदेश यह गया है कि भारत विरोध करता रहे, चीन का काम पाकिस्तान में चलता रहेगा. हम कर भी क्या सकते हैं?
संयुक्त राष्ट्र में इसके विरुद्ध जाने का मतलब है, खुद-ब-खुद पाकिस्तान के बिछाये जाल में फंसना. क्योंकि, पाकिस्तान किसी भी तरह कश्मीर विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना चाहता है. ‘पीओके’ में अभी पाकिस्तान और चीन, भारत को उकसानेवाली ऐसी कई परियोजनाओं को लेकर आयेंगे. इसका इलाज हमें ढूंढना होगा.
चीन ने पाकिस्तान के ऊर्जा, अधोसंरचना, रोड, रेलवे, फाइबर ऑप्टिक वगैरह के क्षेत्र में 46 अरब डॉलर के निवेश की जो घोषणा की है, उसमें उसका बहुत बड़ा स्वार्थ छिपा हुआ है. उसे पश्चिम एशिया और यूरोप के बाजार के लिए मलक्का जलडमरूमध्य को पार करना बहुत महंगा पड़ रहा है, उसका वैकल्पिक मार्ग पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से दिख रहा है. ग्वादर से काश्गर एक ऐसा शार्टकट रूट है, जिसके बनते ही चीन का व्यापार और तेजी से बढ़ेगा. राष्ट्रपति शी, 45 अरब डॉलर की लागत से बननेवाले तीन हजार किमी के इस आर्थिक गलियारे की घोषणा पिछले साल ही करना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तान में घरेलू अशांति के कारण उनकी यात्रा टल गयी थी.
शी ने इसका भी अहद किया कि अगले पांच साल में एक हजार पाकिस्तानी शिक्षकों को चीनी भाषा में पारंगत किया जायेगा, और दो हजार पाकिस्तानी युवा अलग-अलग उद्योगों के लिए प्रशिक्षित किये जायेंगे. इस बार उन्होंने पाकिस्तानी संसद में बड़े गर्व से कहा कि इस साल की हमारी यह पहली यात्राा है, जिसके बिना पर यह कहने में हमें यह हिचक नहीं कि पाकिस्तान हमारा ‘आयरन ब्रदर’(इस्पात जैसा मजबूत भाई) है.
उससे पहले पाकिस्तान, चीन का ऑल वेदर फ्रेंड (सदाबहार दोस्त) हुआ करता था. दोस्ती की शब्दावली बदल रही है, तो उसके मायने भी बदल रहे हैं.
चीन जब भी किसी को भाई बनाता है, तो समझ लीजिए कि उसके साथ घोखा होना है. 1962 में ‘चीनी-हिंदी भाई-भाई’ के छलावे से यदि इस्लामाबाद सबक नहीं लेता है, तो उसकी मर्जी. लेकिन पाकिस्तान की भू-सामरिक परिस्थितियां उसे चीन के बिछाये जाल में धकेल रही हैं.
पाकिस्तान दरअसल, कश्मीर और बलूचिस्तान के मोर्चे पर एक ऐसे दोस्त की मदद चाहता है, जिस पर वह भरोसा कर सके. पाकिस्तानी संसद को संबोधित करते हुए चीनी राष्ट्रपति शी ने कबीलाई क्षेत्र ‘फाटा’ (फेडरली ऐडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरिया) में विकास कार्य का संकल्प किया है.
इसे सुन कर यह नहीं भ्रम होना चाहिए कि चीन, फाटा और बलूचिस्तान में आतंकवाद के विरुद्ध कोई मोर्चा खोलने जा रहा है. शिनचियांग में उईगुर अतिवादियों और तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी से परेशान चीन, तालिबान अतिवादियों से किस प्रकार तालमेल बैठाने लगा, इसे लेकर जर्मन खुफिया बीएनडी और नाटो के कमांडर तक हैरत में हैं. पाकिस्तान तालिबान नेता और मुल्ला उमर के लोग कई बार चीन के दौरे लगा चुके हैं.
इसमें पाक सेना की मदद ली गयी है, इससे पश्चिमी खुफिया एजेंसियों को लग गया है कि इस्लामाबाद और काबुल के बीच में चीन कुछ पका रहा है. शी की इसलामाबाद यात्रा पर पश्चिम की खुफिया एजेंसियां उन खबरों को खोदने में सक्रिय हैं, जिनसे चीन-पाक के ‘ग्रेट गेम’ का पता चल सके. लेकिन पाकिस्तान में जो लोग आतंकवाद की दुकान चला रहे हैं, उन्हें नवाज शरीफ का यह कदम रास नहीं आ रहा है. इस समय पाकिस्तान की विभिन्न परियोजनाओं में 8,112 चीनी वर्कर काम कर रहे हैं.
उनकी हिफाजत के लिए पहले से ही पाकिस्तान अपने सुरक्षाबल और सैन्य टुकड़ियों को लगा रखा है. लेकिन पहली बार पाकिस्तान को चीनियों की सुरक्षा के लिए ‘विशेष सैन्य बल‘ की घोषणा करनी पड़ रही है. यह ऐतिहासिक है. इसे पाक सेना पर चीनी असर की दृष्टि से भी देख सकते हैं.
खैर! राष्ट्रपति शी का अगला पड़ाव इंडोनेशिया है, जहां बांगडुंग सम्मेलन का 60वां वार्षिकोत्सव मनाया जा रहा है. सवाल यह है कि हमें राष्ट्रपति शी से क्या सीखने की जरूरत है? राष्ट्रपति शी बिना रॉक स्टार शो किये, बगैर प्रवासी चीनियों द्वारा नारे और मेगा प्रदर्शन के उस ‘ग्रेट गेम’ को अंजाम दे रहे हैं, जिसे लेकर पश्चिमी देश और अमेरिका तक के नेता प्रकंपित होते हैं.
शी जैसा कूटनीतिक ‘परफॉर्मेस’ हमारे प्रधानमंत्री क्यों नहीं दे सकते? मई में प्रधानमंत्री मोदी को पेइचिंग जाना है, उसकी तैयारी के लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज फरवरी में वहां गयी थीं. सच तो यह है कि राष्ट्रपति शी, पाकिस्तान जाकर कई सारी चुनौतियां भारत के लिए छोड़ गये हैं!

Next Article

Exit mobile version