शवदाह की आंच पर रोटी न सेंकें

किसी राजनैतिक पार्टी द्वारा आयोजित रैली में किसी किसान द्वारा आत्महत्या कर लेना अगर किसी को षड्यंत्र लगे, तो इससे उसकी संवेदनहीनता के चरम का पता चलता है. दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसी किसान ने आत्महत्या नहीं की, यह तो मानवता की हत्या थी. ऐसी घटना पर राजनीति करनेवाले व्यक्तियों को मानव नहीं कहा जा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 24, 2015 5:27 AM
किसी राजनैतिक पार्टी द्वारा आयोजित रैली में किसी किसान द्वारा आत्महत्या कर लेना अगर किसी को षड्यंत्र लगे, तो इससे उसकी संवेदनहीनता के चरम का पता चलता है. दिल्ली के जंतर-मंतर पर किसी किसान ने आत्महत्या नहीं की, यह तो मानवता की हत्या थी.
ऐसी घटना पर राजनीति करनेवाले व्यक्तियों को मानव नहीं कहा जा सकता. कोई मानव इतना असंवेदनशील नहीं हो सकता है.
अगर स्वतंत्रता के 68 वर्ष के बाद भी कोई किसान आत्महत्या कर ले, तो यह सरकारों की संयुक्त असफलता है. मीडिया के कैमरों के सामने नारे लगाना या पुतला जलाना गंभीरता को कम करना है.
जितना धन रैलियों पर खर्च होता है, उतने में न जाने कितने कि़सानों का भला हो जाए, लेकिन उनकी भलाई तो कोई मुद्दा ही नहीं है. ये महान लोग तो शवदाह की अग्नि पर भी राजनीतिक रोटी सेंकने में पीछे नहीं रहते.
प्रणव प्रकाश मिश्र, ई-मेल से

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